ठंड सिर पर है और सोनभद्र में पिछले साल जबरन बेघर किए गए करीब दो सौ लोगों के ऊपर मौत का खतरा मंडरा रहा है। यहां करीब 35 परिवार हैं जिन्हें पिछले साल सर्दियों से ठीक पहले वन विभाग की पुलिस ने बिना नोटिस के उनके घर से दरबदर कर दिया था और अमानवीय तरीके से उनकी पिटाई की थी। ये परिवार यहां जमीन खाता संख्या 00387 पर पुश्तों से घर बनाकर रह रहे थे लेकिन 4 सितम्बर 2017 को इन्हें हमेशा के लिए वहां से उजाड़ दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि साल भर में इस कुनबे के पांच लोगों की खुले में रहने के चलते मौत हो गई। इनमें चार छोटे बच्चे हैं।
साल भर बीत गया लेकिन इन लोगों को प्रशासन ने पुनर्वासित नहीं किया और आज भी वे सोनभद्र के घने जंगल में खुले में जीवनयापन कर रहे हैं। पिछले साल जब इस समुदाय के लोगों ने बेघर किए जाने का विरोध किया तो कुछ को जेल भेज दिया गया। बनारस की संस्था मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने एक आपातकालीन विज्ञप्ति जारी कर के सीबीसीआइडी का ध्यान इस घटना की ओर आकर्षित किया है।
पिछले एक साल में यहां जिन लोगों की मौत हो चुकी है, उनमें चार बच्चे हैं: अस्मिता (7 वर्ष), निज़ाम (7 वर्ष), गुड्उू (5 वर्ष) और बानी (3 वर्ष)। इनके अलावा 42 वर्षीय यूसुफ़ की भी मौत हो खुले में रहने के चलते चुकी है। घर खाली कराते समय पुलिस ने इमाम नाम के 70 वर्षीय बुजुर्ग को इतनी बुरी तरह से पीटा कि वह हमेशा के लिए अपाहिज हो गया। साठ वर्षीय सजब के पिता जौहर की पुलिस की लाठियों से लगी चोटों के चलते मौत हो गई।
समिति ने इससे पहले इन विस्थापित लोगों को कुछ समय के लिए रहने की जगह मुहैया करायी थी और लगातार उनसे संपर्क में रही। हाल ही में समिति के लोगों ने पीडि़तों के पास जाकर उनकी मनोवैज्ञानिक मदद की और उनके साक्षात्कार लिए। अपील के साथ जारी पीडि़तों के साक्षात्कार भयावह हैं। जैसा विवरण पीडि़तों ने अपने ऊपर हुए अत्याचार का किया है, वह अभूतपूर्व है।
समिति का कहना है कि इन लोगों से ज़मीन को एक साजिश के तहत चुर्क बस्ती के लिए खाली कराया गया है। विस्थापित लोगों के ऊपर हुए उत्पीड़न की जांच के लिए समिति ने सीबीसीआइडी से अपील की है।