अंततः फिनलैंड की ओर से NATO (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) में शामिल होने का आधिकारिक एलान भी हो गया है। फिनलैंड और स्वीडन के, इस रक्षा गठबंधन में शामिल होने के लिए अंतिम कदम उठाने के कयास तो मई महीने की शुरुआत से ही लगाए जा रहे थे। लेकिन फिनलैंड के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने, अब एक साझा प्रेस रिलीज में इसकी पुष्टि कर दी है कि देश इस फ़ैसले के लिए तैयार है। इस प्रेस रिलीज़ में कहा गया है कि फिनलैंड को बिना देर किए नाटो सदस्यता के लिए आवेदन करना चाहिए।
क्यों हुआ ऐसा?
इस प्रेस रिलीज के अनुसार हाल में फिनलैंड में की नाटो सदस्यता की संभावना पर लगातार चर्चा होती रही है। इस पर संसद और समाज, दोनों ही अपना पक्ष रखने के लिए समय ले रहे हैं। इसके अलावा नाटो और उसके सदस्य देशों के साथ-साथ स्वीडन के साथ घनिष्ठ अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों के लिए चर्चा हो रही है। ये प्रेस रिलीज़ फिनलैंड के राष्ट्रपति सॉली निनित्सो और प्रधानमंत्री साना मरीन की ओर से जारी की गई है।
हालांकि इसके पहले फिनलैंड की ओर से ऐतेहासिक रूप से लगातार शीत युद्ध व अन्य मामलों पर तटस्थ रुख देखा गया है। लेकिन यूक्रेन पर पहले रूस के हमले और अब फुल स्केर इनवेज़न के एलान के बाद की बदली हुई भू-राजनैतिक परिस्थितियों में फिनलैंड की ओर से ये कदम उठाया जा रहा है। यहां पर ये जान लेना ज़रूरी है कि फिनलैंड की रूस के साथ तकरीबन 1,300 किलोमीटर लंबी सीमा है और रूस से लगी सीमाओं वाले ज़्यादातर देश, यूक्रेन पर हमले के बाद की परिस्थितियों में चिंतित हैं।
क्या कहा गया है फिनलैंड की ओर से?
सूत्रों की मानें, तो इस मसले पर 15 मई को फिनलैंड और संभवतः स्वीडन द्वारा भी आधिकारिक घोषणा की जाएगी कि वे नाटो की सदस्यता के लिए औपचारिक आवेदन दे रहे हैं। इस साझा प्रेस रिलीज़ को अगर हम अक्षरशः सामने रखें तो यह कहती है,
“फिनलैंड को बिना देर किए, नाटो सदस्यता के लिए आवेदन कर देना चाहिए।”
“हम उम्मीद करते हैं कि अगले कुछ दिनों में इस फैसले को लेने के लिए तेज़ी से राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाए जाएंगे।”
क्या कहा नाटो ने?
इस पर नाटो की ओर से बयान देते हुए, नाटो जनरल सेक्रेटरी जनरल जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि किसी भी तरह की सदस्यता प्रक्रिया को आसान और सहज बनाया जाएगा और फिनलैंड का गर्मजोशी से स्वागत होगा।
रुस की प्रतिक्रिया में क्या अहम?
इस पर रूस की प्रतिक्रिया वैसी ही आई है, जैसी कि उम्मीद की जा सकती है। क्रेमलिन के प्रवक्ता डिमिट्री पेसकोव ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा,
“नाटो का विस्तार और गठबंधन का हमारी सीमाओं की ओर बढ़ना, दुनिया को ज़्यादा स्थिर और सुरक्षित नहीं बनाता है।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या फिनलैंड की नाटो सदस्यता रूस के लिए ख़तरा है, तो उन्होंंने कहा,
“निश्चित रूप से..सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि ये प्रक्रिया कैसे होती है। नाटो का सैन्य ढांचा, हमारी सीमाओं से कितनी दूरी पर रहता है।”
ज़ाहिर है कि अब ये स्थिति फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने से आसान नहीं होने वाली है। बल्कि दरअसल क्योंकि इन देशों की सीमाएं, रूस से जुड़ी हुई हैं और नाटो का हिस्सा बनने पर रूस अपनी सीमाओं पर ख़तरा महसूस कर सकता है और युद्ध, जिसे कभी होना ही नहीं चाहिए – वो यूरोप के और हिस्सों या कहें कि रूस की और सीमाओं को अपनी ज़द में ले सकता है।