किसान की मेहनत पर लॉकडाउन, फसल खड़ी और मंडी बंद!

देवेश त्रिपाठी
ख़बर Published On :


देशव्यापी कोरोना लॉकडाउन ने केवल मज़दूरों का जीवन मुश्किल में नहीं डाला है, देश का अन्नदाता किसान भी बुरी मार झेल रहा है। इस बार रबी के सीजन में अच्छी फसल होने की चर्चा कई राज्यों में चल ही रही थी कि लॉकडाउन ने किसानों की किस्मत पर ताला जड़ दिया है। कटाई का मौसम है और कुछ राज्यों में रबी की फसलें तैयार हैं, लेकिन लॉकडाउन ने सबकुछ ठप कर दिया है। ऐसे में जो हमारे देश में किसान के साथ हमेशा होता आया है, देश के कई हिस्सों से निराश किसानों की आत्महत्याओं की खबरें आने लगी हैं।

बीते शनिवार उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के किसान रामभवन शुक्ला (52) ने गेहूं की फसल की कटाई के लिए मज़दूर न मिलने पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। परिजनों के अनुसार बेमौसम बारिश की वजह से पहले मसूर की तैयार फसल सड़ गयी थी, और अब खेत में खड़े-खड़े गेहूं की फसल भी खराब होने लगी थी। रामभवन कटाई के लिए मज़दूरों की तलाश में थे, पर लॉकडाउन होने की वजह से ऐसा नहीं हो पाया। माना जा रहा है कि इन्हीं बातों से परेशान होकर उन्होंने आत्महत्या कर ली।

वहीं, बीते बृहस्पतिवार के दिन कर्नाटक के तुमाकुरु जिले के शिरा तालुका के देहराहल्ली में गंगाधर (60) ने अपनी उपज न बेच पाने से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी। गंगाधर पर 4.4 लाख का कर्ज भी था।

फल और सब्जी उगाने वाले किसानों की मुसीबत

यूं तो किसी भी आम किसान की हालत ठीक नहीं है, पर लॉकडाउन से सबसे अधिक मार सब्ज़ी और फलों की खेती करने वाले किसानों को पड़ रही है. मसलन, तेलंगाना में तरबूज की कृषि-लागत बढ़ते जाने, दाम गिरते जाने को लेकर पहले से ही मुश्किल रही है, अब लॉकडाउन के बाद किसानों और खेतिहर मज़दूरों के लिए यह समय विपत्ति बनकर टूटने लगा है। मंडियों तक माल पहुंचने के रास्ते पहले से बंद हैं, और गांव-गांव जाकर बेचने पर कीमत इतनी कम मिल रही है कि आजीविका चलाना मुश्किल हो गया है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से देश के फल किसानों को 7000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ सकता है।

उधर, झारखंड में सब्जी किसानों की हालत खस्ता हो गयी है। बीते हफ़्ते रांची में 10 गांव के किसानों ने सरकार को चिट्ठी तक लिख दी थी कि सरकार ने मदद नहीं की तो वे आत्महत्या कर लेंगे। इसका कारण यह है कि स्थानीय बाज़ार भी बंद हैं, लॉकडाउन की वजह से दूसरे राज्यों में माल जाना बंद हो गया है। सब्ज़ियां खेतों में पड़े-पड़े सड़ जा रही हैं। दिल्ली के आजादपुर मंडी पर निर्भर रहने वाले मेरठ के सब्ज़ी किसानों का भी यही हाल है। हाल में, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने सरकार को इस तरफ़ ध्यान देने की बात कही थी, और कहा था कि अगर किसानों पर ध्यान नहीं दिया गया तो बीमारी से ज़्यादा मौतें भुखमरी से हो जायेंगी।

सरकार से मदद की आस 

अब सारा दारोमदार सरकार के ऊपर है कि कैसे वह किसानों की फसल कटाई से लेकर, उसकी उपज को बाज़ार तक पहुंचाने का उपाय ढूंढ़ती है। कृषिप्रधान देश कहलाने वाले भारत में पिछले तीन दशकों में साढ़े तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की है। किसानों के कर्ज माफ़ी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और एमएसपी डेढ़ गुना कर देने के वादे के साथ छः साल पहले सत्ता में आयी मोदी सरकार के कार्यकाल में किसान आत्महत्याएं 42 फीसदी (एनसीआरबी का डेटा) बढ़ गयी थीं. सरकार की नीतियों और वादाख़िलाफ़ी को लेकर किसानों का आंदोलन चलता रहा है। भारतीय किसान ऐसी परिस्थिति में दो ही रास्ते देख पाता है, या तो वह भूस्वामी से मज़दूर बन जाए या फिर जीवन त्याग दे। उसे इन दोनों ही परिस्थितियों से बचाना सरकार का दायित्व है। जब-जब प्रधानमंत्री ने देश को एकजुट होने की अपील की है, किसानों ने हमेशा उनका साथ दिया है, अब बारी प्रधानमंत्री और सरकार की है कि वो किसानों का साथ दे।