अप्रिय सवाल पूछने वाले पत्रकारों को फोन कर के हड़काने की घटनाएं अकेले भारत में ही नहीं होती हैं। विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) जैसे वैश्विक बहुपक्षीय संगठन के महानिदेशक पद पर बैठा आदमी भी ऐसी ओछी हरकत करता है। डब्लूटीओ के महानिदेशक रॉबर्टो अज़ेवेदो ने जिनेवा स्थित एक भारतीय पत्रकार रवि कांत के पूछे सवाल पर वॉशिंगटन ट्रेड डेली (डब्लूटीडी) के संपादक जिम बर्जर को फोन कर के हड़काया है। इस बारे में बर्जर ने विस्तार से अखबार के ब्लॉग पर एक पोस्ट लिखी है।
डब्लूटीडी के संपादक जिम बर्जर की 1 सितंबर 2016 को लिखी ब्लॉग पोस्ट के मुताबिक डब्लूटीओ के महानिदेशक रॉबर्टो अज़ेवेदो ने अगस्त के अंत में एक दिन अचानक डब्लूटीडी के दफ्तर में फोन कर दिया। बर्जर कहते हैं, ”पहली बार मुझे बात करने के लिए बुलाया गया था। कुछ देर हलकी-फुलकी बातें करने के बाद वे सीधे मुद्दे पर आ गए। उनका संदेश था: जिनेवा स्थित हमारा 15 साल पुराना वरिष्ठ रिपोर्टर शर्मिंदगी और सत्यानाश की वजह है। हमें बताया गया कि श्री रवि कांत झूठी कहानियां गढ़ते हैं, झूठी रिपोर्ट करते हैं और तथ्यों की उपेक्षा करते हैं। और सबसे ज्यादा अहम यह बात कि वे विकासशील देशों के नज़रिये के पक्ष में खड़े रहते हैं।”
बर्जर कहते हैं कि डब्लूटीओ के डीजी ने उन्हें रवि कांत के संबंध में दो घटनाएं सुनाईं जिनसे वे परेशान हैं। सबसे ताज़ा घटना जुलाई के अंत में उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछा गया एक सवाल था कि अगली बार उनके डीजी चुने जाने की संभावना क्या है चूंकि वे डब्लूटीओ के केवल एक सदस्य के हितों की नुमाइंदगी करते हैं- जो काफी ताकतवर और विशाल है। रवि कांत ने इस ताकत का नाम नहीं लिया यानी अमेरिका नहीं कहा।
इसके अलावा डीजी रवि कांत के लिखे लेखों से भी दुखी थे जिसमें डब्लूटीओ में औद्योगिक देशों के प्रभुत्व की आलोचना की जाती है।
रवि कांत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में एमए डिग्रीधारी हैं और वे दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान (आइआइएमसी) से पत्रकारिता की डिग्री भी ले चुके हैं। पिछले करीब दो दशक से वे बिज़नेस स्टैंडर्ड और डब्लूटीडी के साथ जुड़े हुए हैं और जिनेवा से रिपोर्टिंग करते हैं।
बर्जर आगे लिखते हैं, ”शुरू से ही साफ़ था कि मिस्टर अज़ेवेदो कांत के बारे में मुझसे बात करना चाहते थे। बातचीत के अंत में मैंने उनसे पूछा कि वे मुझसे क्या करने की उम्मीद रखते हैं। वे बोले कि उन्हें नहीं पता। मेरा खून खौलने लगा (ज़ाहिर था कि महानिदेशक साहब ने प्रशंसा करने के लिए नहीं बल्कि बलि लेने के लिए फोन किया था)। मैंने उनसे कहा कि वे आराम से सोचें कि वे क्या चाहते हैं और जब दिमाग बन जाए तो मुझे दोबारा फोन करें। उसके बाद से कोई जवाब नहीं आया।”