वेदप्रताप वैदिक
एनडीटीवी के मालिक के घर और दफ्तर पर सीबीआई ने छापे मारे। इसके विरोध में दिल्ली के बुजुर्ग और प्रसिद्ध पत्रकारों ने कल एक साथ हमला बोला। ये सारे पत्रकार सेवा-निवृत्त हैं। कोई भी कार्यरत टीवी एंकर या हिंदी और अंग्रेजी अखबार का संपादक इस गुस्साई सभा में क्यों दिखाई नहीं दिया? क्योंकि सब डरे हुए हैं। उनके मालिक सरकारी विज्ञापनों के मोहताज़ हैं। पत्रकारों को यह भी डर है कि उन्होंने ठकुरसुहाती नहीं कही तो कहीं उनकी ठुकाई न हो जाए। ‘गोरक्षक गण’ कहीं उनकी भी सेवा न करने लगें ?
देश के इन बुजुर्ग पत्रकारों ने नरेंद्र मोदी पर अपूर्व अहसान कर दिया है। इन्होंने सरकार को नींद से जगा दिया है। सीबीआई याने क्या ? पिंजरे का तोता ! सरकार के संकेत के बिना सीबीआई की क्या हैसियत है कि वह देश के किसी चैनल पर हाथ डाल सके ? इस मामले में सरकारी दखलंदाजी का शक इसलिए मजबूत होता है कि इस चैनल के प्रतिभाशाली एंकर गाहे बगाहे सरकार की खाट खड़ी करने से नहीं चूकते।
यह भी ठीक है कि यह चैनल प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ढपली बजाने के लिए खड़ा किया गया था। इसके लिए राजीव के सबसे खास अफसर श्री गोपी अरोरा दो बार मेरे घर भी आए थे। मेरे मना करने पर उन्होंने फिर दूसरा इंतजाम किया लेकिन यहां मूल प्रश्न यह नहीं है कि यह चैनल किसका समर्थक रहा है बल्कि यह है कि यदि यह मोदी का विरोध भी कर रहा है और गलत विरोध कर रहा है तो भी उसे करने देना चाहिए, क्योंकि लगभग सभी चैनल और अखबार तो ‘पालतू तोते’ बने हुए हैं। पूरा नक्कारखाना मोदी की जय-जयकार कर रहा है और एक तूती अगर अलग राग छेड़ रही है तो उससे डरना क्या?
आप डर रहे हैं, इसका मतलब क्या है? क्या यह नहीं कि आपके पांव डगमगाने लगे हैं, सांसें उखड़ने लगी हैं और 2019 का भूत अभी से आपकी छाती पर सवार हो गया है? आपको अपनी बंडलबाजियों की असलियत का पता चलने लगा है। यदि देश में एक विरोधी चैनल है तो उसे रहने देें। यह लोकतंत्र का प्रमाण है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दीपक है। आप उस पर सीधा प्रहार नहीं कर सकते और आप उसके एंकरों को पटा नहीं सकते। तब माना यह जाएगा कि उसके मालिक के निजी लेन-देन की जांच और उस पर छापा मारना तो एक झूठा बहाना है। किसी बैंक से लिए गए कर्ज पर ब्याज कम करवाने के लिए यदि उस टीवी मालिक ने कोई हेरा-फेरी की है तो बैंक अदालत में जाए। सरकार अपने पालतू-तोतों को उस पर क्यों दौड़ाए? बैंक तो चुप है और पालतू तोते भौंक रहे हैं! क्या इससे सरकार की इज्जत बढ़ रही है?
यह ठीक है कि इससे कुछ मीडिया मालिक डर जाएंगे लेकिन यह मानकर चलिए कि यह आपात्काल का कुआरंभ (शुभारंभ का उल्टा) है। मोदी सरकार को इन बुजुर्ग पत्रकारों का अहसानमंद होना चाहिए कि जैसे ही उसने अपनी कब्र खोदने के लिए पहला फावड़ा चलाया, इन पत्रकारों ने उसका हाथ पकड़ लिया।
वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार हैं