प्रेस विज्ञप्ति
5 मई 2018, काशीपुरः प्रगतिशील महिला एकता केंद्र का दूसरा सम्मेलन आज 5 मई 2018 को काशीपुर के पंजाबी सभा में संपन्न हुआ। कार्ल मार्क्स की 200वीं जन्मशती के दिन शुरू हुए इस सम्मेलन की औपचारिक कार्रवाई की शुरुआत प्रमएके की अध्यक्ष शीला शर्मा द्वारा किए गए ध्वजारोहण के साथ की गई।
सम्मेलन द्वारा देश-दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जनता के संघर्षों तथा आंदोलनों में मारे गए शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए दो मिनट का मौन रखा गया। चूंकि प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के दूसरे सम्मेलन की शुरुआत कार्ल मार्क्स की दो सौंवी जन्मशती के दिन हो रहा था अतः कार्ल मार्क्स के जीवन तथा उनके दर्शन के बारे में बात करते हुए सम्मेलन में भागीदारी कर रहे इंकलाबी मजदूर केंद्र से रोहित ने कहा कि मार्क्स ने पूंजी और मुनाफे के संबंध का दर्शन दुनिया को दिया था जिसे हम मार्क्सवाद के नाम से जानते हैं। मार्क्स ने बताया कि पूंजीपति का मुनाफा मजदूर की मजदूरी की लूट पर टिकी होती है और जब तक यह उत्पादन और वितरण के बीच का यह फर्क मौजूद रहेगा तब तक समाज में गैर-बराबरी, लूट और शोषण का आधार बना रहेगा। रोहित ने कहा कि मार्क्स ने कहा था कि महिला गुलामी की शुरुआत महिलाओं के सामाजिक श्रम से कटने के साथ हुई और महिलाओं की मुक्ति तभी संभव है जब महिलाएं सामाजिक श्रम में हिस्सा लेंगी।
सम्मेलन में प्रस्तावित राजनीतिक रिपोर्ट पर बातचीत करते हुए प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के विभिन्न साथियों ने कहा कि आज के दौर में भारत समेत समस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था अपने हर क्षेत्र में संकट का शिकार है। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं 2008 के बाद से ही मंदी की शिकार और हैं इन देशों की सरकारें अपने देश के पूंजीपति वर्ग के नुकसान की भरपाई अपने देश की जनता के अधिकारों में कटौती कर रही हैं। जिसकी वजह से दुनिया की व्यापक आबादी तबाही और बर्बादी की कगार पर पहुंची हुई हैं। अपनी इस तबाही बर्बादी से आक्रोशित जनता के आक्रोश का फायदा उठाते हुए तमाम देशों में दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता में आ रही हैं और वह जनता के इस गुस्से को अंध राष्ट्रवाद की तरफ धकेल रही हैं। भारत में भी 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से यही परिस्थितियां चल रही हैं। जहां एकतरफ राष्ट्रीय सेवक संघ केंद्र सरकार की संरक्षण में जनता के बीच सांप्रदायिकता था फासीवाद का जहर बो रहा है वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक एक करके पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए मजदूर मेहनतकशों के अधिकारों को छीन रहे हैं।
इन सभी संकटों सबसे तीखा प्रभाव न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर की महिलाओं के उपर पड़ रहा है। महिलाएं कुल कामगार आबादी का 50 प्रतिशत है जबकि उन्हें पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का 50 प्रतिशत वेतन मिलता है। मौजूदा आर्थिक मंदी ने न सिर्फ महिलाओं की मजदूरी में कटौती करते हुए उनके लिए रोजगार के अवसर कम हुए हैं बल्कि दक्षिणपंथी ताकतें महिलाओं को फिर से एक बार सामंती व्यवस्था की जकड़नों में जकड़ना चाहते हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र इन सभी अत्याचारों और गैरबराबरी के साथ संघर्ष करते हुए मार्क्स के सिद्धांतों पर आगे बढ़ते हुए एक बराबरी पूर्ण समाज के निर्माण का प्रयास करेगा।
द्वारा
शीला शर्मा, अध्यक्ष, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र