उच्‍च शिक्षा पर हमले के खिलाफ़ आज छात्रों-शिक्षकों का राष्‍ट्रीय जुटान

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उच्‍च शिक्षा संस्‍थानों समेत समाज में हर ओर लोकतांत्रिक स्‍पेस पर बढ़ते हमलों की पृष्‍ठभूमि में छात्रों के संगठनों, शिक्षकों के संघों, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओ सहित भारी संख्‍या में नागरिक समाज संगठनों ने मिलकर पीसीएसडीएस (सिकुड़ती जनतांत्रिक स्‍पेस पर जन आयोग) नाम का एक मंच पिछले दिनों बनाया था। इस मंच के बैना तले देश भर के कॉलेजों और विश्‍वविद्यालयों के छात्र, शिक्षक और कर्मचार आज से तीन दिन के लिए दिल्‍ली में जुट रहे हैं। पीसीएडीएस यहां के कांस्टिट्यूशन क्‍लब में 11 से 13 अप्रैल के बीच पहले ट्रिब्‍यूनल का आयोजन कर रहा है जहां छात्रों और शिक्षकों की 120 से ज्‍यादा गवाहियां प्रस्‍तुत की जाएंगी।

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पिछले कोई तीस महीनों के दौरान भारत के शिक्षा परिसरों एक अजीब किस्‍म का हमला जारी है। नब्‍बे के दशक के आरंभ में हुए नवउदारीकरण के बाद से ही उच्‍च शिक्षा के निजीकरण को राज्‍य लगातार सक्रिय प्रोत्‍साहन देता रहा है। इस क्रम में उसने शिक्षा का बुनियादी उद्देश्‍य ही बदल डाला है, जो पहले एक सक्रिय नागरिक का निर्माण करना होता था लेकिन अब बाजार आधारित अर्थव्‍यवस्‍था की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कार्यबल का निर्माण करना हो गया है।

पिछले तीन साल के दौरान हालांकि हमने देखा है कि उच्‍च शिक्षा के अग्रणी संस्‍थानों के अनुदान ढांचे पर बाकायदा प्रतिशोधात्‍मक तरीके से हमले बढ़ते जा रहे हैं। इतना ही नहीं, शिक्षा के ऐसे केंद्रों का भगवाकरण करने, इन पर एक विचार थोपने और इनका निगमीकरण करने के व्‍यवस्थित प्रयास भी हो रहे हैं। हमारे विश्‍वविद्यालय हमेशा से आधुनिक बौद्धिकता के केंद्र रहे हैं लेकिन आज उनके संवैधानिक मूल्‍य, भेदभावरहित दृष्टि और समानता के संकल्‍पों पर सीधा हमला हो रहा है।

ऐसे हमलों में व्‍यवस्थित तरीके से अनुदानों में कटौती किया जाना, किसी भी तरह की असहमति और विरोध को शांत कराने के लिए विभिन्‍न तरीके अपनाया जाना तथा वैकल्पिक राजनीति के दमन के लिए परिसर के भीतर और बाहर दक्षिणपंथी तत्‍वों को खुलेआम शह दिया जाना शामिल है। अब ऐसे हमले एक चलन की शक्‍ल लेते जा रहे हैं।

उच्‍च शिक्षा के परिसरों के भीतर राज्‍य की मशीनरी का इस्‍तेमाल विचारों, संगठनों, सभा व असहमति की आज़ादी को दबाने में किया जा रहा है। जो छात्र और फैकल्‍टी निरंकुश विचारधारा के सामने समर्पण करने को तैयार नहीं, उन्‍हें अपमानित और दंडित कर के शांत करवाया जा रहा है। लगातार छात्रों, शिक्षकों और अन्‍य कर्मचारियों का उत्‍पीड़न हो रहा है और उन्‍हें झूठे मुकदमों में फंसा कर, मनमौजी प्रशासनिक कार्रवाइयों के माध्‍यम से, शारीरिक हमलों से तथा दक्षिणपंथी समूहों की धमकी से डराया-धमकाया जा रहा है। असहमति को ”राष्‍ट्रविरोधी” ठहराने के लिए मीडिया के माध्‍यम से राज्‍य लक्षित प्रचार अभियान चला रहा है। तमाम ऐसे मामले हैं जहां राज्‍य ने छात्रों के ऊपर आइपीसी की धारा 124-ए के तहत 1960 का राजद्रोह कानून लाद दिया है। राज्‍य के वफादार तत्‍वों को बाकायदे संस्‍थानों पर थोपा जा रहा है ताकि असहमत स्‍वरों का दमन किया जा सके। विश्‍वविद्यालयों के भीतर हमने एक विचार को थोपे जाने के खिलाफ़ इधर बीच लगातार बढ़ते छात्र आंदोलन देखे हैं। अब हालांकि इस मुद्दे पर व्‍यापक सार्वजनिक विमर्श व संघर्ष की ज़रूरत पैदा हो गई है जिसे राज्‍य के उस मौजूदा व्‍यापक एजेंडे के संदर्भ में ही समझा जा सकता है जहां वह विविध विचारों का पोषण करने वाली तमाम जगहों को साफ़ कर देने की ख्‍वाहिश रखता है और भारत के बौद्धिक जीवन पर निरंकुश नियंत्रण कायम करना चाहता है।

इसे अपना प्राथमिक लक्ष्‍य मानते हुए सिकुड़ती जनतांत्रिक स्‍पेस पर जन आयोग (पीसीएसडीएस) ने सिकुड़ती जनतांत्रिक स्‍पेस पर अपनी स्‍थायी जन पंचाट (पीपीटीएसडीएस) के माध्‍यम से नवंबर 2017 में ”भारत के शिक्षण संस्‍थानों पर हमले” पर एक जन पंचाट का आवाहन किया था। इसी क्रम में इस बार का दूसरा ट्रिब्‍यूनल आयोजित किया जा रहा है जो पिछली बार से ज्‍यादा भव्‍य पैमाने पर होगा।

ट्रिब्‍यूनल के निर्णायक मंडल में प्रो. रोमिला थापर, रिटायर्ड जस्टिस एपी शाह, रिटायर्ड जस्टिस होस्‍बेट सुरेश, रिटायर्ड जस्टिस बीजी कोलसे पा‍टील, प्रो. अमित भादुड़ी, प्रो. उमा चक्रवर्ती, प्रो. टीके उम्‍मेन, प्रो. वासंती देवी, प्रो. केएम श्रीमाली, प्रो. घनश्‍याम शाह, प्रो. मेहर इंजीनियर, प्रो. कल्‍पना कन्‍नाबीरन और पामेला फिलीपोज़ होंगे। इस जूरी के समक्ष कई विशेषज्ञ भी अपनी गवाहियां प्रस्‍तुत करेंगे।

 


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