ईद मुबारक।
यह कुछ शताब्दियों पुराना चित्र है। इसमें भगवान कृष्ण हैं जो गोपियों-ग्वालों और तमाम लोगों के साथ ईद का चाँद देखने-दिखाने के लिए आए हैं। यही असल में भारत की साझी सांस्कृतिक विरासत है। इसे बनाए रखना ही भगवान कृष्ण को मानना है।
आप सभी को ईद की दिली मुबारकबाद।
और याद रखिए कि हिंदुस्तान में मुसलमान बाहर से तो बहुत बाद में आए। सबसे पहले उन लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया जो क़रबला की लड़ाई में हिंदुस्तान से गए थे। उन्हें हम आज भी हुसैनी बिरहमन के नाम से जानते हैं। मतलब इस्लाम कुबूल करने वाले सबसे पहले बिरहमन थे।
इसलिए ईद को सबके साथ खुशी से मनाइए।
यह मध्यकाल के एक चित्रकार (संभवतः बीकानेर के हामिद रुक़्नूद्दीन) की कल्पना है। जैसे उस काल के कवि अपनी कविता में ईश्वर-अल्लाह के साथ सखा-मित्र भाव में बातचीत करते हैं, उसी भाव का यह चित्र है। कवि और कलाकार अपनी रचना में समय को रचते हैं तो काल निरपेक्ष हो जाते हैं। जैसे इस चित्र में द्वापर के कृष्ण 17वीं सदी में आकर ईद का चाँद देख-दिखा रहे हैं। यह वैसा ही है जैसे रहीम, रसखान, पद्मावत वाले मलिक मोहम्मद जायसी, सूर, मीरा, तुलसीदास, रैदास, नजीर और अनेक कवियों की कविता में हम देखते हैं।
प्रेमचंद गाँधी की फ़ेसबुक दीवार से साभार।