मीडियाविजिल संवाददाता
दिल्ली में इरोम शर्मिला आईं और चली गईं, किसी को कानोकान ख़बर नहीं हुई। कुछ एक अखबारों व पत्रिकाओं को छोड़ दें तो तकरीबन पूरा मीडिया 15 मई की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस से गाफि़ल बना रहा जिसमें उत्तर-पूर्व के लोगों ने अफ्रीका के प्रवासियों के साथ हाथ मिलाते हुए भारत में उभर रही नस्लवादी प्रवृत्तियों से लड़ने की कसम खाई।
सोमवार की दोपहर भयंकर गर्मी और लू के बीच दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित असोसिएशन ऑफ अफ्रीकन स्टूडेंट्स इन इंडिया (एएएसआइ) की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पैर रखने की तिल भर भी जगह नहीं थी। बावजूद इसके जबरदस्त गर्मी और घुटन के बीच छोटे से कमरे के भीतर कुछ अफ्रीकी छात्र और इरोम शर्मिला लगातार बैठे रहे। उन्हें सुनने वाले भी टस से मस नहीं हुए। सब ने मिलकर संकल्प लिया कि भारत में पनप रही नस्लवादी प्रवृत्तियों के खिलाफ वे मिलकर संघर्ष करेंगे और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इधर बीच हुए नस्लवादी हमलों के मामलों को उठाएंगे।
गौरतलब है कि ग्रेटर नोएडा में 27 मार्च 2017 को अफ्रीकी छात्रों पर भीड़ द्वारा किए गए हमले के महीना भर बाद भी सैयद कबीर अब्दुल्लाही, सैयद अबूबकर अब्दुल्लाही, अदामू उस्मान, मोहम्मद आमिर ज़कारी याउ और अब्दुल कादिर उस्मान नामक अफ्रीकी छात्रों के पासपोर्ट पुलिस के पास ज़ब्त पड़े हुए हैं और उन्हें लौटाया नहीं गया है। इन छात्रों पर हत्या जैसे संगीन आरोप लगाए गए हैं हालांकि पुलिस अब तक घटना का पूरा विवरण नहीं दे पाई है।
एएएसआइ का कहना है कि देश भर में दाखिल शिकायतों के आधार पर देखा जाए तो अफ्रीकी प्रवासियों पर सिलसिलेवार हुए नस्लवादी हमलों की संख्या पांच तक पहुंच चुकी है लेकिन भारत सरकार की ओर से अब तक कोई संतोषजनक कार्रवाई नहीं की गई है। संगठन ने अफ्रीकी मूल और अल्पसंख्यक प्रवासियों पर हो रहे हमलों के संदर्भ में भारत सरकार के सामने 12 सूत्रीय मांग रखी है जिसे प्रेस कॉन्फ्रेंस में पढ़ा गया।
असाधारण बात यह है कि इन नस्ली हमलों के खिलाफ अफ्रीकी छात्रों के साथ उत्तर-पूर्व के छात्रों की भी एकजुटता कायम हुई है, जिसकी नुमाइंदगी करने के लिए इरोम शर्मिला सोमवार को दिल्ली आई थीं। उन्होंने अपने वक्तव्य में साफ़ कहा कि इस किस्म का भेदभाव भारत जैसे लोकतंत्र में स्वीकार नहीं किया जा सकता और सभी पीडि़तों को साथ आकर अपनी आवाज़ उठानी होगी।