मंच पर उत्तर प्रदेश के कानून एवं न्यायमंत्री ब्रजेश पाठक। किसी तरह घिसटकर मंच पर पहुँचते विकलाँग जन। ना कोई रैम्प और ना कोई व्हील चेयर। मंत्री जी किसी तरह अपनी कुर्सी से खड़े हुए और मंच की फ़र्श पर घिसटकर पहुँचे विकलाँगों को कथित रूप से सम्मानित कर दिया। हाँ, यह कथित ही है, क्योंकि अगर यह सम्मान है तो अपमान क्या होगा।
लखनऊ में कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में यही दृश्य था। ‘अग्रणी विकलांग फाउंडेशन’ के इस कार्यक्रम में डा.शकुंतला मिश्र राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.निशीथ राय के सामने यह सब घटा। ‘अग्रणी विकलांग फाउंडेशन’ एक एनजीओ है जिसने खेल के क्षेत्र में प्रतिभा दिखाने वाले विकलांगों को सम्मानित करने के लिए 13 अप्रैल को लखनऊ पुस्तक मेले में यह आयोजन किया था। लेकिन सारी संवेदनशीलता अतिथियों को ज़ोरदार स्वागत तक सीमित थी। विकलाँग तो बस अपना खाता-बही दुरुस्त करने का एक मोहरा भर थे।
आख़िर यह कैसे संभव है कि विकलाँगों के लिए काम करने वाली संस्था यह भी ध्यान ना रखे कि सम्मानित किए जाने वाले विकलांगों को मंच तक सम्मान सहित पहुँचने के लिए रैम्प और व्हील चेयर की व्यवस्था की जाए। प्रदेश के मंत्री की संवेदनशीलता पर भी विकलांगों का घिसटने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यूजीसी की तमाम गाइडलाइन्स हैं कि विश्वविद्यालय में विकलांगों की सुविधा के लिए क्या-क्या किया जाए, लेकिन एक कुलपति के सामने यह अपमानजनक व्यवहार होता है और वे चुप रहते हैं। या फिर उनके लिए यह सब स्वाभाविक है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विभाग और योजनाओं से विकलांग शब्द हटाकर दिव्यांग लिखने का निर्देश दिया है। लेकिन सिर्फ नाम बदलने से क्या होगा। असल चीज़ है सोच बदलना। वैसे भी विकलांगता को दिव्यता बताकर समस्या पर पर्दा डालने की कोशिश है। यह बात सत्ता और शक्तिशाली लोग समझें ना समझें, हम विकलांग लोग अच्छी तरह समझते और महसूस करते हैं।
और हाँ, अख़बारों में मंत्री जी का भाषण तो छपा, विकलांगों के इस अपमान की चर्चा कहीं नहीं थी।
लेखक विकालांगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले युवा वकील हैं।