कार्ल मार्क्‍स की जयंती पर इंदौर के शहीद भवन में विचार परिचर्चा

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इतिहासकार और साहित्यकार और भी न जाने क्या क्याकार्ल मार्क्स के 201वे जन्मदिन पर 5 मई 2019 को उन्हें और उनके विचारों को थोड़ा नज़दीक से जानने की रुचिकर कोशिश हुई इंदौर के शहीद भवन में। 

शुरुआत में वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता श्री एस. के.  दुबे ने कार्ल मार्क्स के जीवन के मुख्य कार्यों से परिचय करवाने वाला एक परचा पढ़ा। उन्होंने बताया कि जर्मनी में पैदा होने के बाद क्रन्तिकारी सोच के कारण मार्क्स युवावस्था से ही एक के बाद दूसरे देश से निकाले जाते रहे। उन्होंने अपने दोस्त फ्रेडेरिक एंगेल्स के साथ मिलकर दुनिया के मेहनतकशों को क्रांति के लिए आह्वान करने वाला महान दस्तावेज कम्युनिस्ट घोषणापत्र तैयार किया। पूँजीवाद की शोषण की गतिकी का रहस्य समझाने वाला ग्रन्थ “कैपिटल” तैयार किया।  वरिष्ठ लेखक सुरेश उपाध्याय ने कहा कि मार्क्स के विचारों को आज के परिप्रेक्ष्य में रखकर समझना ज़रूरी है ताकि पूँजीवाद के मौजूदा स्वरूप को समझकर उसे परास्त किया जा सके। कैलाश गोठानिया, अजय लागू, एवं अन्य अनेक भागीदारों ने कहा कि मार्क्स के विचार आज भी बहुत प्रासंगिक हैं और उन्हें जनता के बीच ले जाने का प्रयत्न करना चाहिए।  

विजय दलाल ने कहा कि भारत में मार्क्सवाद के सिद्धांतों के आधार पर खड़ी हुईं राजनीतिक पार्टियां ट्रेड यूनियन आंदोलन पर अधिक आश्रित हो गईं और इसीलिए वे भारत में कमज़ोर हुई हैं। प्रकाश पाठक ने कहा कि वे बचपन से होमी दाजी को देखते सुनते आये हैं इसलिए भले ही उन्होंने कभी मार्क्स को नहीं पढ़ा लेकिन वे इस विचारधारा को अच्छी मानते हैं। योगेंद्र महावर ने कहा कि जनपक्षीय और गरीबों के हक़ की विचारधारा होने के कारण वह आकर्षक है लेकिन इसे पढ़ना चाहिए।

प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने सबसे पहले मार्क्स के निजी जीवन से थोड़ा परिचय करवाते हुए बताया कि जेनी से उनका प्रेम विवाह कैसे हुआ और यह भी कि स्वयं जेनी काफी पढ़ी-लिखी महिला थीं और वे खुद भी कला समीक्षक थीं। मार्क्स के सात बच्चों में से अधिकांश की अल्पायु में ही बीमारी और अभावों की वजह से मृत्यु  हो गयी थी। जेनी ने और मार्क्स के दोस्त एंगेल्स ने उनका बहुत साथ दिया। उनकी लड़कियां लौरा और एलेनोर ने मार्क्स के अनेक कार्यों का अन्य भाषाओँ में अनुवाद किया और कम्युनिस्ट आंदोलन को आगे बढ़ने में अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने वैज्ञानिक समाजवाद का सिद्धांत दिया और धर्म की वैज्ञानिक तर्कपरक व्याख्या दी। उन्होंने अपने से पूर्व के दार्शनिकों के सिद्धांतों का गहन अध्ययन कर उनमे सुधार किया जिसकी वजह से द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत सामने आया।

वरिष्ठ अर्थशास्त्री जया मेहता ने कहा कि मार्क्स के बारे में सबसे पहली बात यह समझनी ज़रूरी है कि मार्क्स ने खुद ही यह कहा था कि मेरे लिखे को किसी धार्मिक ग्रन्थ की तरह न माना जाये। मार्क्स ने हमें दुनिया को समझने और परिस्थितयों का विश्लेषण कर क्रांति का रास्ता तलाश करने की दृष्टी दी है जिसका इस्तेमाल लेनिन ने रूस की क्रांति में किया और कामयाब रहे। इसी तरह हमें भी मार्क्स को एक क्रन्तिकारी सोच के साथ पढ़ना चाहिए न कि सिर्फ भक्तों की तरह। जया मेहता ने कहा कि मार्क्स का अतिशेष मूल्य का सिद्धांत यह बताता है कि मार्क्स के मुताबिक शोषण में ज़ुल्म ज़्यादती होना ज़रूरी नहीं है। पूँजीवाद की व्यवस्था में शोषण अन्तर्निहित  होता है। इसलिए कल्याणकारी राज्य आ भी जाये, कुछ नीतियां मज़दूरों के हक़ में बन भी जाएँ तो भी यह नहीं समझना चाहिए कि वह समाजवाद है। समाजवाद और पूँजीवाद की पहचान के लिए मार्क्सवाद का गहन अध्ययन ज़रूरी है।

सत्यनारायण वर्मा, अशोक दुबे, कैलाश लिम्बोदिया, अरुण चौहान, सी. एल. सर्रावत, सोहन लाल शिंदे, सुंदरलाल, दुर्गादास सहगल, भारत सिंह ठाकुर, रुद्रपाल यादव, तौफ़ीक़ गोरी, रामआसरे पाण्डे, अंजुम पारेख, विवेक, दीपिका आदि ने भी कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी की। कार्यक्रम भाकपा, माकपा, एटक, सीटू द्वारा प्रलेस, इप्टा, रूपांकन, और सन्दर्भ की ओर से आयोजित किया गया था।


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