“रामपुर का रुस्तम” के बहाने जावेद इस्लाम ने इस समय के सबसे नाज़ुक सवाल को उठाया है। यह कहानी बताती है कि भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे की नींव को खोखला करने की दक्षिणपंथियों की साजिश किस तरह एक खतरनाक मंजिल तक जा पहुंची है कि आज गोमांस के शक में पूरी की पूरी भीड़ किसी की हत्या तक कर डालती है। यह सब देश को बरबादी की ओर ले जाने वाला मंजर है।
उक्त विचार वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति के हैं जो उन्होने मऊ जिले के मेउड़ी कलाँ गाँव में आयोजित प्रथम यशोदा देवी गाँव के लोग कथा सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुये व्यक्त किया। शिवमूर्ति ने कहा कि ‘आज से पच्चीस साल पहले मैंने ‘त्रिशूल’ नामक उपन्यास लिखा जिसमें कठमुल्ला हिन्दुत्व के लंपटों को मारीच का वंशज कहा था। वे मारीच के वंशज आज चारों दिशाओं में फैल गए हैं। त्रिशूल के मुख्य पात्र महमूद का धर्म जानकर उसके सीने पर त्रिशूल गड़ा देने वाले अपने घिनौने उद्देश्यों को लेकर आज मोब लिंचिंग तक बढ़ आए हैं। जावेद इस्लाम ने इस संवेदनशील मुद्दे को अपनी कहानी का विषय बनाकर एक समकालीन प्रश्न को बहुत शिद्दत से उठाया है। यह कहानी अपने दृष्टिकोण में तो उल्लेखनीय है ही, इतनी सहजता से इन्होंने बिना क्लिष्ट हुये, बिना कठिन हुये, बिना शब्दों और भाषा का आतंक पैदा किए पात्र के मन में जो डर है, दूसरे समुदाय को लेकर जो शंकाएँ हैं उसे अत्यंत सहज और विश्वसनीय ढंग से लिखा है।’
गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट की ओर से यह सम्मान झारखंड (बरही) के कथाकार और पत्रकार जावेद इस्लाम को गाँव के लोग पत्रिका में प्रकाशित उनकी कहानी ‘रामपुर का रुस्तम’ के लिए दिया गया। इसके तहत शॉल, स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र और पाँच हज़ार रुपए प्रदान किए गए । लखनऊ से आए समाजसेवी सदानंद कुशवाहा ने शॉल ओढ़ाकर सम्मान राशि दी। कथाकार शिवमूर्ति सम्मान पत्र और गोरखपुर से आए वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन स्मृति चिन्ह देकर जावेद इस्लाम को सम्मानित किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुये सम्मान समिति की संयोजक/महासचिव तथा गाँव के लोग की कार्यकारी संपादक अपर्णा ने बताया कि ‘यह गाँव के लोग सम्मान देने का दूसरा वर्ष और सातवाँ सम्मान है। पिछले वर्ष 26 मई को नई दिल्ली के नारायण दत्त तिवारी भवन सभागार में प्रख्यात पत्रकार, अनुवादक और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता आनंद स्वरूप वर्मा, सुप्रसिद्ध आलोचक और विद्वान वक्ता प्रोफेसर चौथीराम यादव को क्रमशः पेरियार ललई स्मृति गाँव के लोग सम्मान 2017 और 2018, वरिष्ठ कथाकार और समयान्तर पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट को राम प्रताप दास स्मृति सम्मान 2018 से सम्मानित किया था। हीरु राम स्मृति गाँव के लोग सम्मान 2017 और 2018 क्रमशः जाने-माने भाषा वैज्ञानिक प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह तथा प्रख्यात अंबेडकरवादी चिंतक और ग़ज़लकर दिवंगत मूलचंद सोनकर को दिया गया। किन्हीं कारणों से इन दोनों विभूतियों के सम्मान समारोह अभी नहीं हो पाये हैं लेकिन जल्दी ये सम्पन्न किए जाएँगे।
गाँव के लोग से जुड़े मित्र और टीम के सदस्यों ने अपने पूर्वजों की स्मृति में साहित्य, समाजकार्य और मानव अधिकारों के लिए किए गए कार्यों के प्रोत्साहन हेतु गाँव के लोग सम्मानों की स्थापना की है। इनमें कथाकार रामजी यादव के पिता हीरू राम, जाने-माने कवि-कथाकार और सिनेमा तथा संस्कृति के गंभीर अध्येता राकेश कबीर के दादा राम प्रताप दास, कवि-कथाकार, विधिवेत्ता और गाँव के लोग पत्रिका के कानूनी सलाहकार हरिन्द्र प्रसाद की माता श्रीमति यशोदा देवी की स्मृति में सम्मान तय किए गए हैं जिसके तहत दी जानेवाली छोटी-छोटी सम्मान-राशि परिवार के सदस्यों द्वारा दी जाती है। इसके अतिरिक्त आजीवन सामाजिक अन्याय के विरुद्ध लड़नेवाले योद्धा, रचनाकार और चिंतक ललई सिंह यादव, जिन्हें जनमानस में पेरियार ललई के रूप में आदर प्राप्त है, की स्मृति में गाँव के लोग पत्रिका ने एक सम्मान स्थापित किया है जो अब तक आनंद स्वरूप वर्मा और प्रोफेसर चौथी राम यादव को दिया जा चुका है। प्रतिवर्ष उत्कृष्ट कहानी लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए जाने-माने कहानीकार रतन कुमार सांभरिया ने अपनी माताजी की स्मृति में एक सम्मान देने का प्रस्ताव दिया है जिसकी शीघ्र ही घोषणा की जाएगी।
सम्मानित कहानी का पाठ करते हुये जावेद इस्लाम ने कहा- मैं कोई सिद्धहस्त लेखक नहीं हूँ इसलिए मेरी कहानियों में कोई कलात्मक ऊंचाई आपको न मिलेगी लेकिन मेरे आस-पास जो घटनाएँ घट रही हैं उनकी अनदेखी करना मेरे लिए मुश्किल है। इसलिए जो भी जैसा भी बन पड़ा मैंने लिखने की कोशिश की है।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित जाने माने कथाकार और उपन्यासकार मदन मोहन ने कहा- ‘गाँव के लोग’ पत्रिका यद्यपि मेरे पास किसी न किसी माध्यम से आती रहती है लेकिन जावेद की कहानी जिस अंक में थी वह मुझे नहीं मिल पाया। बाद में मैंने कहानी मंगाकर पढ़ा और सचमुच अवाक रह गया कि बिलकुल जो हमारे दौर में घट रहा है उसपर इतनी बढ़िया कहानी लिखी जा सकती है। मेरा मानना है कि जावेद इस्लाम एक सिद्धहस्त लेखक हैं और उन्हें अच्छी तरह पता है कि किस विषय को कहाँ से कैसे उठाना चाहिए। और किस तरह उसका निर्वाह करना चाहिए। और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि जावेद की राजनीतिक दृष्टि बिलकुल स्पष्ट है। इस कहानी के माध्यम से उन्होने सामाजिक सम्बन्धों का ताना-बाना जिस तरीके से बुना है वह इसका बहुत उल्लेखनीय पहलू है। ऐसा नहीं है कि हिंदी में ऐसी कहानियाँ पहले नहीं लिखी गईं। मुझे तत्काल इब्राहीम शरीफ की कहानी ‘अंदेशा’ और स्वयं प्रकाश की कहानी ‘पार्टिशन’ याद आ रही हैं। ये दोनों कहानियाँ सांप्रदायिक कारणों से मनुष्यों के बीच पनप चुके अविश्वास को बहुत मार्मिक ढंग से व्यक्त करती हैं।
रामप्रकाश कुशवाहा ने साम्प्रदायिकता को एक सामूहिक मनोरोग या पागलपन कहा। उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भों में बात को आगे बढ़ाते हुये कहा कि ब्रिटिश सत्ता की विभाजन की साजिश ने इस क्षेत्र को आधुनिकता से वंचित कर दिया है। जावेद इस्लाम को इस उपेक्षित और संवेदनशील विषयको खुलकर विमर्श का विषय बनाने के लिए सराहना की जानी चाहिए। युवा कवि-फिल्मकार अनुपम ने इस कहानी पर लघु फिल्म बनाने की घोषणा की।मेउड़ी गाँव के पूर्व प्रधान सूर्यनाथ यादव ने देश का सामाजिक माहौल बिगाड़ने वाली ताकतों की सख्त आलोचना करते हुये कहा कि हम अब प्रेम और भाईचारे का महत्व समझते हैं। यह सदियों का संबंध है और जो भी इसमें जहर घोलेगा हम उसकी खिलाफत करेंगे।
इस कहानी के चयन के बारे में अपने विचार रखते हुये रामजी यादव ने कहा कि पत्रिका में पिछले साल अनेक उल्लेखनीय कहानियाँ छपीं लेकिन जावेद की यह कहानी एक अलग धरातल पर वर्तमान समय की एक ज्वलंत समस्या को जिस तरह उठाती है वह इसके चयन का आधार बनी। इस कहानी में भय और आशंका के बीच के पंद्रह सोलह घंटे का तनाव जिस तरीके से चित्रित हुआ है और अंततः जिस तरह से इसका अंत होता है वह इसे समकालीन कहानी में एक अलग जगह पर खड़ा करता है। कार्यक्रम में मऊ से जयप्रकाश धूमकेतु, बलिया से आशुतोष यादव, विनोद कुमार विमल और इलाहाबाद से जगदीश मौर्य समेत सौ से अधिक ग्रामीण लोग उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत और धन्यवाद ज्ञापन हरीन्द्र प्रसाद ने किया।
प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित