यूपी के कासगंज में दंगे को दो महीने होने जा रहे हैं। गणतंत्र दिवस की सुबह 26 जनवरी 2018 को भड़के इस दंगे की चर्चा शुरुआती हफ्ते भर तो समूचे मीडिया में होती रही लेकिन जल्द ही इस प्रकरण को भुला दिया गया। किसी ने फॉलो अप करने की कोशिश नहीं की कि जो लोग पकड़े गए थे उनका क्या हुआ। जिनकी दुकानें फूंकी गई थीं उन्हें मुआवज़ा मिला कि नहीं। जो लोग अपने घर छोड़कर भागे थे वे लौटे या नहीं। अब, जबकि दंगे की धूल बैठ गई है तो कासगंज के पीडि़त अपनी गवाहियां देने दिल्ली आ रहे हैं।
मानवाधिकार जन निगरानी समिति (पीवीसीएचआर) और मीडियाविजिल के संयुक्त प्रयास से यह आयोजन बुधवार, 21 मार्च को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में होने जा रहा है। ध्यान रहे कि कासगंज के दंगे पर सबसे शुरुआती रिपोर्ट मीडियाविजिल ने ही चलाई थी जबकि पीवीसीएचआर के कासगंज दफ्तर से संस्था के कुछ कार्यकर्ताओं को पुलिस उठा ले गई थी, जो दंगे रुकवाने की कोशिश कर रहे थे। बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मीडियाविजिल की स्टोरी और पीवीसीएचआर की याचिका के आधार पर प्रशासन को नाटिस भेजकर जवाब तलब किया था।
कासगंज के दंगे की कहानी मोटे तौर पर छुपी ही रही, पूरी तरह खुल नहीं सकी। इस मामले में जो लोग वास्तव में दोषी थे वे कैद से बचे रहे जबकि कई बेगुनाहों को जेल में डाल दिया गया। अब चूंकि दोनों पक्षों के लोग अपनी गवाहियां देने आ रहे हैं, तो उम्मीद की जा रही है कि समग्रता में कासगंज की दुर्भाग्यपूर्ण घटना को समझा जा सकेगा।
कासगंज से आने वालों में प्रमुख नागरिक हैं अतुल, बाबर, राहुल यादव, धर्मेन्द्र, सुरेश चन्द्र, हाजी आरिफ उर्फ़ पूजा किन्नर, इखलास अहमद, राजू यादव, नसीम बानो और अन्य। करीब दस नागरिकों की लिखित गवाहियां मीडियाविजिल के पास हैं जिन्हें हम अगली कड़ी में छापेंगे।