अभिषेक श्रीवास्तव
लखनऊ में नेशनल मीडिया क्लब नाम की एक संस्था ने ऐन हिंदी पत्रकारिता दिवस के दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम का इस्तेमाल करते हुए कुछ वरिष्ठ पत्रकारों को बदनाम करने का काम किया है। इस संस्था ने 30 मई को एक ऐसा भयंकर पुरस्कार घोटाला किया है जिसमें 60 साल की उम्र पार कर चुके ऐसे पत्रकारों को पुरस्कार दिलवा दिया गया जिन्हें न तो अब तक पुरस्कार मिलने की ख़बर है, न ही वे वहां सशरीर मौजूद थे और जिन्होंने पुरस्कार की पेशकश पर अपनी सहमति तक नहीं दी थी।
सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि ‘मीडिया रत्न’ नाम का यह पुरस्कार विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित और उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कुछ पत्रकारों को दिया जब मुख्यमंत्री कार्यक्रम से जा चुके थे, लेकिन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के मुख्य अतिथि होने के नाते इसके प्रचार और प्रेस रिलीज़ आदि में मुख्यमंत्री के नाम से पुरस्कार दिए जाने की बात कही गई। क्लब द्वारा जारी सूची में कुल 38 पत्रकारों का नाम शामिल है और क्लब का दावा है कि सभी वहां मौजूद थे, लेकिन मीडियाविजिल की छानबीन में पता चला है कि यह सरासर झूठ है।
मीडियाविजिल ने जब इस बारे में नेशनल मीडिया क्लब के फेसबुक पृष्ठ पर छपे कार्यक्रम के न्योते में दिए मोबाइल नंबर 8285002222 पर बात की, तो पहले वहां से पुरस्कारों की पुष्टि करते हुए एक प्रेस रिलीज़ भेजी गई जिसमें 38 पत्रकारों के नाम शामिल थे। दूसरी बार फोन लगाकर जब यह पूछा गया कि क्या ये सभी पत्रकार वहां उपस्थित थे पुरस्कार लेने के लिए, तो क्लब के प्रतिनिधि ने इसका हां में जवाब दिया जो कि सरासर झूठ था।
सच्चाई का पता चार पत्रकारों से सीधे और दूसरे माध्यमों से बात कर के चला। मीडियाविजिल के पास मौजूद जानकारी के मुताबिक पुरस्कृत पत्रकारों की सूची में शामिल वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र सेंगर, रामकृपाल सिंह, कमलेश त्रिपाठी और अनिल शुक्ला वहां न तो मौजूद थे, न ही इन्हें ख़बर थी कि इनके नाम पर कोई पुरस्कार दिया गया है।
मीडियाविजिल से बात करते हुए नवभारत टाइम्स के पूर्व कार्यकारी संपादक रामकृपाल सिंह ने कहा, ”मुझे तो पता ही नहीं। मेरे पास दिनेश श्रीवास्तव का फोन आया था तो मैंने मना कर दिया था कि मैं उस दिन शहर में नहीं रहूंगा। मेरा पुरस्कार आदि से क्या लेना देना है।” मीडियाविजिल के आग्रह पर जब एक वरिष्ठ पत्रकार ने वीरेंद्र सेंगर से योगी आदित्यनाथ के हाथों पुरस्कार लेने की बात पूछी, तो वे चौंकते हुए बोले, ”सवाल ही नहीं उठता।” अनिल शुक्ला भी कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे। उनके पास बेशक पुरस्कार से संबंधित एक चिट्ठी आई थी लेकिन उन्होंने उसका कोई जवाब ही नहीं दिया। सहमति ज़ाहिर करने की तो बात ही दूर की है।
नेशनल मीडिया क्लब को रमेश अवस्थी नाम के एक सज्जन चलाते हैं और कार्यक्रम के आयोजन व प्रचार में उनके बेटे सचिन अवस्थी का नाम बार-बार आया है। जब एक पत्रकार ने रमेश अवस्थी से मुख्यमंत्री के हाथों पुरस्कार दिए जाने की बाबत पूछा कि वहां तो तमाम पत्रकार गए ही नहीं थे जिनके नाम से उन्होंने विज्ञप्ति जारी की है, तो वे बचाव की मुद्रा में आ गए और उन्होंने माना कि कुछ गलती हो गई है। उन्होंने उसे तुरंत दुरुस्त करने की बात कही।
इसकी ख़बर हालांकि प्रेस रिलीज की मार्फत कुछ जगहों पर पहले ही छप चुकी है और यह बात प्रचारित कर दी गई है कि तमाम वरिष्ठ पत्रकारों ने योगी आदित्यनाथ के हाथों पुरस्कार ले लिया है। हकीकत यह है कि योगी उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अवश्य थे, लेकिन पत्रकारों को पुरस्कारों की घोषणा होने से पहले वहां से निकल चुके थे।
क्लब द्वारा जारी प्रेस रिलीज़ कहती है, ”पत्रकारिता दिवस के अवसर पर मीडिया रत्न सम्मान के साथ स्वच्छता सम्मान देने के लिये नेशनल मीडिया क्लब की सराहना करते हुये सकारात्मक खबरों को प्रमुखता दिये जाने पर मुख्यमंत्री योगी ने जोर दिया।” प्रेस रिलीज़ में सम्मानित पत्रकारों की संख्या कुल 38 है।
मीडियाविजिल को अभी केवल चार मामले पता चले हैं जो इस सूची को फर्जी साबित करते हैं और यह बात साफ़ हो जाती है कि पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारिता पुरस्कारों के नाम पर लखनऊ में भारी घोटाला हुआ है। मुख्यमंत्री के नाम की आड़ लेकर न केवल विश्वसनीय और वरिष्ठ पत्रकारों के साथ छल किया गया है, बल्कि पत्रकारिता के पेशे को भी कलंकित किया गया है।