भगत सिंह विश्वास नहीं, विचारों के आधार पर नास्तिक थे

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इंदौर, 23 मार्च, 2019: शहीद दिवस की शाम शहर के कलाकारों और वामपंथी कार्यकर्ताओं ने मिल कर भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के साथ पंजाब के क्रान्तिकारी कवि अवतार सिंह पाश को श्रद्धांजलि दी और उनके विचारों को समकालीन समय के बरक्स रखकर याद किया। यह कार्यक्रम वल्लभ नगर स्थित शहीद भवन में किया गया। शहीदों को याद करते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी, श्रमिक संगठन सीटू के राज्य सचिव मंडल सदस्य कैलाश लिम्बोदिया और भारतीय महिला फेडरेशन की राज्य सचिव सारिका श्रीवास्तव ने अपने विचार साझा किये।

सारिका जी ने बताया कि भगत सिंह की क्रांति ऐसी राज-सत्ता हासिल करने के पक्ष में थी जिसमें सभी का हित हो और किसी इंसान का शोषण न किया जा सके। भगत सिंह क्रांति के लक्ष्य के बारे में स्पष्ट थे और उनका मानना था कि हमें क्रांति सोलह आने चाहिए, एक आने या दो आने नहीं। क्रांति करके वे केवल अंग्रेज़ों को भारत से बाहर नहीं निकालना चाहते थे बल्कि वो शोषण की ब्यवस्था का ख़ात्मा चाहते थे। 

कैलाश लिम्बोदिया ने कहा कि भगत सिंह दूसरे क्रांतिकारियों से अलग इसलिए है क्योंकि वह हमेशा अपने विचारों को ले कर स्पष्ट रहे। उस दौर में आज़ादी की चाह तो सभी के दिल में थी लेकिन आज़ादी के बाद का भारत कैसा होगा, भगत सिंह इस बारे में स्पष्ट सोच रखते थे। उन्होंने सोवियत रूस की क्रांति से प्रेरणा ली थी और वे लेनिन से बहुत प्रभावित थे। उनकी समझ केवल अपने देश की आज़ादी पर ही नहीं रूकती थी बल्कि वे साम्राजयवाद और सम्रज्य्वादी युद्ध से दुनिया को  मुक्त करवाना चाहते थे। 

विनीत तिवारी ने कहा की भगत सिंह की राजनीतिक समझ तब साफ़ हुई जब उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ कानपूर में मज़दूर संगठनों के साथ नज़दीक से काम किया। तभी उन्होंने अपनी पार्टी का नाम ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” से बदलकर “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” रखा और समाजवाद को आज़ादी के संघर्ष का एक प्रमुख लक्ष्य  बनाया। साथ ही उन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा असेम्ब्ली में बम फेंकने के पीछे की वजहो पर प्रकाश डालते हुए  “पब्लिक सेफ्टी बिल” और “ट्रेड यूनियन बिल” के बारे में बताया जो आम जनता के विरोध के अधिकार और मज़दूरों के हड़ताल के अधिकार को छीनने के लिए अँगरेज़ सरकार इस तरह के कानून बनाना चाहती थी। उन्होंने कहा कि भगत सिंह के बारे में यह तो बताया जाता है कि वे क्रन्तिकारी थे और उन्होंने बम फेंका था लेकिन अक्सर यह बात छिपा ली जाती है  कि बहुत अध्ययन-मनन के बाद वे वैचारिक आधार पर नास्तिक थे और हर धर्म के ईश्वर को अकाट्य तर्कों के साथ चुनौती देते थे। भगत सिंह अराजकतावाद से समाजवाद तक आये थे। उन्होंने हिंसा की हिमायत नहीं की लेकिन उन्हें उग्र राष्ट्रवाद के प्रतिनिधि के रूप में दिखाया जाता है जबकि वे खुद ही कहते थे कि क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है। मोहम्मद सलीम अंसारी ने बताया कि आज दुनिया भर में फैली हुई जंग की मानसिकता सिर्फ और सिर्फ पूँजीवादी ताकतों द्वारा किये जा रहे शोषण का परिणाम हैं।  

इस मौके पर पंजाब के इंक़लाबी कवि पाश को भी याद किया गया। पाश को याद करते हुए विनीत तिवारी ने भगत सिंह के ऊपर ही लिखी हुई उनकी कविताओं का पाठ भी किया। चुन्नीलाल वाधवानी ने जानकारी दी कि भगत सिंह से प्रभावित होकर हेमू कालानी नामक नौजवान ने भी आज़ादी की लड़ाई में शहादत दी और हेमू कालानी का 23 मार्च को जन्मदिन होता है।  सभा ने हेमू कालानी को भी श्रद्धांजलि दी। 

इसके बाद प्रोजेक्टर से भगत सिंह पर केंद्रित एनडीटीवी के प्राइम टाइम कार्यक्रम और लल्लनटॉप के कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग के अंश दिखाए गए जिसमे रवीश कुमार ने भगत सिंह के बारे में तथ्यपूर्ण जानकारी दर्शकों को बताई गयी और फैलाये जाने वाले झूठों का पर्दाफाश किया। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी  अन्य क्रांतिकारियों तथा गाँधी – नेहरू के बारे में मिथ्या प्रचार किया। अजय देवगन अभिनीत फिल्म “भगत सिंह” का वह अंश दिखाया गया जिसमे बड़ी चालाकी से बम बनाने का फार्मूला वो देश भर में अख़बार के माध्यम से प्रसारित कर देते हैं।  कबीर कला मंच द्वारा तैयार किया गया और शीतल साठे द्वारा गाया गया गीत ‘ऐ भगत सिंह तू ज़िन्दा है’ को भी सुनाया गया। युवा कलाकार राज लॉगरे और पत्रकार मृगेंद्र सिंह ने भी सुखदेव और राजगुरु के बारे में जानकारियाँ साझा कीं।

कार्यक्रम में इस बात पर भी जोर दिया गया कि भगत सिंह के लेख और विचारों को ज़्यादा से ज़्यादा युवाओं तक पहुँचाया जाना चाहिए क्योंकि आज के युवा के लिए भगत सिंह ही एक आदर्श व्यक्तित्व हैं। इस बात पर चिंता भी जताई गई की भगत सिंह का इस्तेमाल एक तरफ तो बाज़ार में उग्र राष्ट्रवाद को बेचने के लिए किया जा रहा है तो  साथ ही कुछ मौकापरस्त और साम्प्रदायिक लोग भगत सिंह को केवल देशभक्त साबित कर उनके समाजवादी विचारों को गायब कर देने के लिए प्रयासरत है जबकि भगत सिंह हमेशा ही साम्राज्यवाद, जातिवाद और साम्प्रदायिकता के मुखर विरोधी रहे थे। कार्यक्रम में यह भी स्पष्ट किया गया कि समाजवाद का असली अर्थ एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां इंसान के द्वारा इंसान का शोषण न हो सके।

इस अवसर पर अशोक दुबे के बनाये गए युद्ध विरोधी कविता पोस्टरों की प्रदर्शनी भी लगाई गयी। कार्यक्रम के बाद सभी साथियों ने राजमोहल्ला चौराहे पर स्थित भगत सिंह प्रतिमा पर जा कर भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और पाश को श्रद्धांजलि दी।कार्यक्रम में रुद्रपाल यादव, कैलाश गोठानिया, भारत सिंह ठाकुर, अशोक दुबे, आनंद शिंत्रे, हर्ष जोशी, आदिल, अजीत बजाज, प्रबोध, प्रणय, अनिकेत, दुर्गादास सहगल, आर. के. मिश्रा, ओमप्रकाश खटके, केसरीसिंह चिड़ार, गौरीशंकर शर्मा, मालती, ज़ाकिर हुसैन, अनुराधा, कार्तिक आदि अनेक युवा और वरिष्ठजन शामिल थे। 


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