चार साल पहले अदालत से बरी हुए ‘विद्रोही’ के संपादक सुधीर ढावले सहित चार UAPA में गिरफ्तार

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महाराष्‍ट्र के भीमा कोरेगांव में जनवरी में हुई हिंसा से एक दिन पहले आयोजित एलगार परिषद के मामले में पुणे पुलिस ने कुछ अहम लोगों की गिरफ्तारियां की हैं और इनके माओवादी होने का संदेह जताया है। इनमें विद्रोही पत्रिका के संपादक और मशहूर दलित कार्यकर्ता सुधीर ढावले व चर्चित अधिवक्‍ता सुरेंद्र गाडलिंग के साथ दलित कार्यकर्ता महेश राउत और रोना विल्‍सन शामिल हैं। सुधीर ढावले को मुंबई, गाडलिंग व राउत को नागपुर और विल्‍सन को दिल्‍ली से गिरफ्तार किया गया है।

सुबह वर्धा विश्‍वविद्यालय में प्रोफेसर शोमा सेन की गिरफ्तारी की भी ख़बर आई थी लेकिन वह अपुष्‍ट थी। ख़बर थी कि पुलिस उनके आवास की तलाशी ले रही है हालांकि कई खबरों में उनकी गिरफ्तारी की भी बात कही जा रही है।

दिलचस्‍प है कि सुधीर ढावले को इससे पहले भी जनवरी 2011 में माओवादी होने के संदेह में गिरफ्तार कर के 40 महीना जेल के भीतर रखा गया था लेकिन पुलिस उनके माओवादी संबंधों का कोई साक्ष्‍य पेश नहीं कर पाई थी। इस कारण से उन्‍हें गोंदिया के सत्र न्‍यायालय ने मई 2014 में मुकदमे से बरी कर दिया था। उनके खिलाफ ऐसा कुछ भी नहीं पाया गया जो माओवादियों से उनके संबंधों को दिखाता हो, बल्कि भायखला स्थित निवास से ज़ब्‍त किताबें सारी या तो ऑनलाइन या दुकानों पर उपलब्‍ध्‍ध थीं जिन्‍हें आधार बनाया गया था।

उस वक्‍त करीब 100 पन्‍ने के अपने फैसले में सत्र न्‍यायाधीश आरजी अस्‍मार ने साफ लिखा था कि जांच में भारी कमियां हैं और सबूत पर्याप्‍त नहीं हैं। इस घटना के चार साल बाद एक बार फिर से पुलिस ने ढावले को उन्‍हीं आरोपों में यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया है। ढावले एलगार परिषद और भीमा कोरेगांव जंग की 200वीं सालगिरह पर हुए कार्यक्रम के आयोजकों में एक थे, यह कोई छुपी हुई बात नहीं है।

ढावले के अलावा सुरेंद्र गाडलिंग चर्चित अधिवक्‍ता हैं जो इंडियन असोसिएशन ऑफ पीपुल्‍स लॉयर्स के महासचिव भी हैं। गाडलिंग ने कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मुकदमों को लड़ा है। वे फिलहाल दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साइबाबा का मुकदमा लड़ रहे थे।

ये सारी गिरफ्तारियां पुणे के विश्रामबाग थाने में भीड़ को उकसाने संबंधी एक मुकदमे से जुड़ी हैं। पुलिस के मुताबिक वह भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित माओवादी लिंक को तलाश रही है। दिलचस्‍प ये है कि इससे पहले मिलिंद एकबोटे नाम के जिस शख्‍स को हिंसा के लिए मुख्‍य आरोपी के रूप में गिरफ्तार किया गया था, वह हिंदुत्‍ववादी नेता है जिसका पूरा करियर सांप्रदायिक ताकतों को उकसाने का रहा है। उसके खिलाफ अब तक कुल सात मुकदमे सा्रपदायिक हिंसा के संबंध में हैं। भीमा-कोरेगांव में उसके साथ संभाजी भिड़े नाम के एक स्‍वयंभू सामाजिक कार्यकर्ता के खिलाफ़ भी एफआइआर हुई है।

संभाजी भिड़े को लंबे समय से इस मामले में गिरफ्तार करने की मांग की जा रही है लेकिन पिछले दिनों एक आरटीआइ में पता चला था कि महाराष्‍ट्र सरकार ने उन्‍हें पद्मश्री पुरस्‍कार देने की सिफारिश केंद्र से की थी। भिड़े गुरुजी कहे जाने वाले संभाजी के प्रशंसकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक हैं।

गिरफ्तार लोगों में एक रोना विल्‍सन दिल्‍ली में कमेटी फॉर रिलीज़ ऑफ पॉलिटिकल प्रिज़नर्स नामक संगठन का काम देखते हैं। यह संगठन राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए काम करता है। इन गिरफ्तारियों के समानांतर ही नागपुर में प्रो. शोमा सेना के घर की तलाशी ली गई है। उन्‍हें भी गिरफ्तार किए जाने की ख़बरें हैं।


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