साल 2000 में उच्च शिक्षा पर बिरला-अंबानी रिपोर्ट आई थी जिसमें देश के विश्वविद्यालयों को निजी हाथों में सौंपने की वक़ालत की गई थी ताकि शिक्षा एक ‘लाभदायी व्यवसाय’ बन सके। ज़ाहिर है, यह मनुष्य को ज्ञानी, न्यायी और तार्किक बनाने के बुनियादी उद्देश्य से हटाकर शिक्षा को ‘धंधे’ में तब्दील करने की सलाह थी, जो उदारीकरण के साथ यूँ भी शुरू हो गई थी।
इस रिपोर्ट पर उस समय हल्ला ज़रूर मचा था, लेकिन साल दर साल सरकारें इसी दिशा में गईं। अटल बिहारी वाजपेयी के बाद मनमोहन सिंह के आने से भी यह दिशा बदली नहीं, जो यूँ भी उदारीकरण के जनक माने जाते हैं। लेकिन मोदी-राज में तो हद ही गई है। पिछले साल नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने स्कूलों और कॉलेजों को निजी हाथों में सौंपने की ज़ोरदार वक़ालत की थी और अब सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को समाप्त करने का इरादा बना लिया है। आयोग यानी यूजीसी तमाम विश्वविद्यालयों के लिए मानक तय करता है और उन्हें ग्रांट देता है।
इस सिलसिले में सरकार की तेज़ी देखने लायक़ है। सरकार ने यूजीसी खत्म करके एक उच्च शिक्षा आयोग बनानेका फ़ैसला किया है। सरकार ने प्रस्ताविक एक्ट का ड्रॉफ्ट भी चर्चा के लिए जारी कर दिया है। इसे ‘उच्च शिक्षा कमीशन ऑफ इंडिया एक्ट 2018’ नाम दिया गया है। शिक्षा मंत्री प्रकाश जावडे़कर लोगों से अपील की है कि वो इस ड्रॉफ्ट पर मंत्रालय की वेबसाइट पर 7 जुलाई तक टिप्पणी और सलाह दें। ड्रॉफ्ट के अनुसार प्रस्तावित उच्च शिक्षा आयोग एक नियामक होगा जिसका पास दंडित करने का अधिकार होगा। फिलहाल यूजीसी जनता को सूचित करने के लिए अपनी वेबसाइट पर फर्जी संस्थानों के नाम जारी करता है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है।
प्रस्तावित आयोग में 12 सदस्य होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार नियुक्त करेगी। इसमें अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को शामिल नहीं किया जाएगा। सदस्यों में उच्च शिक्षा , मिनिस्ट्री ऑफ स्किल डिवेलपमेंट और डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सचिवों के साथ AICTE और NCTE के चेयरपर्सन और दो वर्किंग वाइस चांसलरों को शामिल किया जाएगा।
लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन ‘डूटा ‘ (DUTA) ने इस फ़ैसले पर संदेह जताया है। अपनी तात्कालिक प्रतिक्रिया में डूटा की ओर से अध्यक्ष राजिब रे और महासचिव विवेक चौधरी की ओर से जारी बयान में कहा गया है-
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय यूजीसी एक्ट को खत्म करके उच्च शिक्षा आयोग बनाना चाहता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कैसे काम करेगा और इससे उच्च शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन कैसे होगा।
- वर्तमान ढाँचे को पूरी तरह ख़त्म किया जा रहा है, लेकिन यूजीसी की उपलब्धियों और नाकामियों के संबंध में किसी तरह का विस्तृत अध्ययन नही किया गया है। सरकार ने इसी तरह हायर एजूकेशन एम्पावरमेंट रेगुलेशन एजेंसी (हीरा) बनाने का प्रयास किया था लेकिन विरोध को देखते हुए प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। ऐसा लगता है कि सरकार एक बार फिर उसी दिशा में प्रयास कर रही है।
- अनुदान देने का अधिकार मंत्रालय के पास चले जाने से सरकार का हस्तक्षेप बहुत बढ़ जाएगा।
- मौजूद यूजीसी एक्ट उस पर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने से जुड़ी हुई तमाम ज़िम्मेदारियाँ डालता है। इसलिए यह कहना ग़लत है कि यूजीसी सिर्फ़ अनुदान देने वाली संस्था है।
- नए एक्ट के प्रस्ताव में भी लगभग यूजीसी एक्ट जैसी बातें ही हैं। मान्यता देने और संस्थाओं के वार्षिक मूल्यांकन की प्रक्रिया, अति नियमन की ओर ले जाएगा।
- उच्च शिक्षा आयोग को प्रस्तावित एक्ट संस्थानों की स्वायत्ता बढ़ाने की ज़िम्मेदारी दे रहा है, लेकिन अगर वह पाठ्यक्रमों के ‘लर्निंग आउटकम’ जैसी छोटी-छोटी चीजें भी निर्धारित करेगा, तो स्वायत्ता का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
7.यह सीधे-सीधे उच्च शिक्षा के कारपोरेटीकरण का प्रयास लगता है। इसका मकसद एकरूपता लाना है। संस्थाओं को अपनी विशिष्टता को बरकरार रखते हुए विकसित होने की छूट नहीं होगी।8. कमीशन के प्रस्तावित 12 सदस्यों में अनुसूचित जाति/ जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/ महिला जैसी श्रेणियों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है। सुधार या बदलाव के लिए ज़रूरी है कि इसमें समाज के सभी तबकों की भागीदीरी सुनिश्चित की जाए।