दिल्ली युनिवर्सिटी ने एक बार फिर 1978 के बीए परीक्षा के रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने की मांग को यह कह कर खारिज कर दिया है कि आरटीआइ कार्यकर्ताओं का आवेदन एक ”सस्ते प्रचार का तरीका” है। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी साल इस विश्वविद्यालय से कथित तौर पर स्नातक किया है।
पिछले महीने रजिस्ट्रार टीके दास द्वारा दायर हलफनामे में आवेदकों पर ऐसा ही हमला किया गया था। अब मंगलवार को आरटीआइ आवेदकों अंजलि भारद्वाज, निखिल डे और अमृता जौहरी पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने आरोप लगाया है कि ये लोग ”जबरन दखलंदाजी करने वाले लोग हैं जो इस मामले में गलत तरीके से हस्तक्षेप कर रहे हैं”।
आवेदन को यहां पढ़ा जा सकता है:
https://drive.google.com/file/d/13IlGU3ewqGcPIhIDO9LZ2pmPHXBlVk5w/view
पिछले साल दिसंबर 2016 में केंद्रीय सूवना आयोग ने इस दावे को खारिज कर दिया था कि परीक्षा के रिकॉर्ड थर्ड पार्टी की सूचना है और युनिवर्सिटी को निर्देश दिया था कि 1978 में बीए पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड सार्वजनिक करे।
इस बार जो आवेदन लगा था, उसमें अदालत का ध्यान आरटीआइ कानून की धारा 8(3) की ओर दिलवाया गया था जिसके तहत प्रावधान है कि यदि सूचना बीस साल से ज्यादा पुरानी हो तो सूचना के संबंध में अधिकतर रियायतों को हटाया जा सकता है। आवेदन में कहा गया है कि सूचना छुपाने से यह आशंका पैदा होती है कि युनिवर्सिटी सूचना को छुपाने की कोशिश कर रही है।
इस मसले पर वरिष्ठ पत्रकार शीतल सिंह लिखते हैं:
साभार Livelaw.in