आधुनिक शिक्षा का एक उद्देश्य बच्चों को जातिव्यवस्था जैसी बुराइयों से मुक्त करके उन्हें मनुष्य बनाना है। लेकिन अगर शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में ही जाति का ज़हर पड़ा हो तो यह उद्देश्य कैसे पूरा होगा। दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (डीएसएसबी) के तहत 13 अक्टूबर को हुई प्राइमरी शिक्षकों की परीक्षा के प्रश्न पत्र में एक आपत्तिजनक जातिसूचक सवाल पूछा गया जिसने काफ़ी विवाद पैदा कर दिया है।
बहुत लोगों को लगता होगा कि डीएसएसबी दिल्ली सरकार के अधीन है, लेकिन हक़ीक़त यह है कि यह सीधे उपराज्यपाल के नियंत्रण में है। सुप्रीम कोर्ट में अधिकारों को लेकर दिल्ली सरकार के पक्ष में हुआ फ़ैसला अभी ‘सेवाओं’ पर प्रभावी नहीं है। इसके लिए अलग से उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हो रही है। ज़ाहिर है केंद्र सेवाओं से अपना नियंत्रण हटाना नहीं चाहता। यही वजह है कि दिल्ली सरकार के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने प्रश्नपत्र में हुई गड़बड़ी को लेकर एलजी से संज्ञान लेने की अपील की।
यह मामला सोशल मीडिया पर भी काफ़ी तेज़ी से फैला। नतीजा ये हुआ कि डीएसएसबी को इसके लिए खेद जताते हुए कहना पड़ा कि इस प्रश्न के नंबर नहीं जोड़े जाएँगे। डीएसएसबी ने कहा है कि यह अनजाने में हुई ग़लती है और अगर किसी की भावना को इससे ठेस पहुँची हो तो बोर्ड खेद जताता है। प्र्श्न पत्र सेट करने वालों को संवेदनशील बनाने का प्रयास किया जाएगा।
जो भी हो, प्रश्नपत्र के इस प्रश्न ने उन लोगों की दिमाग़ी बुनावट के बारे में प्रश्न तो खड़े ही कर दिए हैं जो पूरे समाज से उत्तर माँगना अपना पुश्तैनी हक़ समझते हैं। साथ ही, सोशल मीडिया में हुई तीक्ष्ण प्रतिक्रिया बताती है कि ऐसा बहुत दिन चलेगा नहीं।