केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री या तो चुप रहेंगे या बेशर्मी भरा ख़त लिखेंगे…लोग मरते रहेंगे

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को पूरा देश ढूंढ रहा था लेकिन वो कोरोना के इस आपातकाल में भी चुप थे, गायब थे…देश में दरअसल कोई स्वास्थ्य मंत्री ही नहीं था। लेकिन डॉ. हर्षवर्धन बाबा रामदेव की कोरोनिल को कोरोना का इलाज बताने के लिए चले जाते हैं, वे मटर छीलते हुए (जो कि उनके लिए मुहावरा हो सकता है) अपनी तस्वीर ट्वीट कर देते हैं और अब वो अचानक फिर सामने आए हैं। उन्होंने एक चिट्ठी लिखी है, जी हां…कोविड 19 के देश में त्रासद हालात पर एक शब्द न बोलने-लिखने वाले डॉ. हर्षवर्धन ने 3 पन्नों की चिट्ठी लिखी है।

ये चिट्ठी पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के उस पत्र के जवाब में लिखी गई है और अहंकार-कृतघ्नता का आदर्श उदाहरण है कि कैसे – अपने अनुभव के आधार पर, सरकार की मदद करने के लिए, सलाह दे रहे एक पूर्व पीएम की चिट्ठी के जवाब में, उसकी सलाह पर किसी तार्किक जवाब या फिर आभार जताने या फिर तर्क के आधार पर उसे खारिज करने की जगह केवल बात को इधर-उधर घुमा कर, उल्टा आरोप लगाकर, एक ज़िम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति राजनैतिक भाषा में चिट्ठी लिखता है।

डॉ. मनमोहन सिंह ने सरकार को कोविड 19 की आपातकालीन भयावह स्थिति से निपटने के लिए कुछ सलाह देते हुए, प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखी थी। इसका जवाब पीएम की ओर से तो नहीं आया क्योंकि वे चुनावी रैलियों में व्यस्त हैं। लेकिन लंबे समय से बिल्कुल मौन साधे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इसका 3 पन्ने लंबा जवाब लिख डाला।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने, अचानक स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रधानमंत्री को डॉ. मनमोहन सिंह की चिट्ठी का जवाब लिख कर, न तो उनकी सलाह पर सोचने की बात कही है, न ही उस पर किसी अमल की और न ही उस के लिए कोई औपचारिक धन्यवाद ही दिया है। बल्कि इस पत्र में, डॉ. मनमोहन सिंह ने जो सलाह दी हैं – उनका कोई तार्किक जवाब तक नहीं है। मनमोहन ने मोदी को लिखी चिट्ठी में सलाह दी थी कि जिम्मेदार एजेंसियों द्वारा अप्रूव्ड की गई विदेशी वैक्सीन्स को भारत में ट्रायल की शर्त बिना मंगाकर, लाइसेंस सिस्टम तय कर के – फ्रंट लाइन वॉरियर की कैटेगरी तय करने का अधिकार राज्यों को दिया जाए।

इसके अलावा डॉ. मनमोहन सिंह ने और भी 4 सुझाव दिए थे। लेकिन डॉ. हर्षवर्धन ने इस को लेकर कांग्रेस पर हमला बोल दिया। ये वही डॉ. हर्षवर्धन हैं, जिनको हमने कोविड की ऐसी बुरी हालत में भी, एक शब्द बोलते नहीं सुना। लेकिन वे इस चिट्ठी में भी न तो ये बताते हैं कि स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर उनके पास क्या कार्ययोजना है बल्कि वो जवाब में लिखते हैं;

“मनमोहन सिंह ये मानते हैं कि वायरस से लड़ाई में सबसे अहम हथियार वैक्सीन है, लेकिन ये बात चौंकाती है कि उनकी पार्टी कांग्रेस के नेता ही इसके असर पर सवाल उठाते हैं।”

इस पूरी चिट्ठी में कहीं भी सरकार के कदमों का कोई विवरण ठीक से नहीं है। किसी भी पंक्ति में, एक बार भी कार्ययोजना का कोई खुलासा नहीं है। मनमोहन सिंह के सुझावों की तार्किक काट या उत्तर भी नहीं है। यानी कि ऐसे मुश्किल समय में भी लगातार चुप रहने वाले स्वास्थ्य मंत्री के पास एक पूर्व पीएम की सलाह का, राजनैतिक जवाब देने का समय तो है। लेकिन आप ज़मीन पर उन्हें कहीं नहीं पाएंगे।

ज़ाहिर है कि अपनी सरकार के मुखिया की ही तरह, डॉ. हर्षवर्धन का भी ध्यान राजनीति और राजनीतिक हमलों पर ही ज़्यादा है न कि ज़मीन पर हालात संभालने में। देश के हालात बिगड़ रहे हैं और सरकार कहीं ज़मीन पर नहीं दिख रही है। हां, वह चुनाव में दिख रही है। चुनाव, जो जनता के जीवन की रक्षा के लिए सरकार चुनने का तरीका हैं।


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