हाशिमपुरा हत्‍याकांड: 31 साल बाद आया इंसाफ़, 16 पीएसी वालों को उम्रकैद

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आज़ाद भारत के सबसे नृशंस हत्‍याकांडों में एक 1987 के हाशिमपुरा हत्‍याकांड में दिल्‍ली के उच्‍च न्‍यायालय ने निचली अदालत द्वारा 2015 में दिए गए फैसले को उलटते हुए सभी दोषियों को उम्रकैद की सज़ा तामील की है।

कुल 31 बरस के बाद आज हाशिमपुरा में मारे गए मुसलमानों के परिजनों को इंसाफ़ मिला है। जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोयल की खंडपीठ ने कहा, ‘’इंसाफ पाने के लिए 31 साल तक पीडि़तों को इंतज़ार करना पड़ा और मौद्रिक राहत उन्‍हें हुई हानि की भरपाई नहीं कर सकता।‘’

अदालत ने हत्‍याकांड को पुलिस द्वारा निशस्‍त्र और निस्‍सहाय लोगों की ‘’‍लक्षित हत्‍या’’ करार दिया है।

22 मई 1987 की रात उत्‍तर प्रदेश के मेरठ स्थित हाशिमपुरा से कोई 42 मुसलमानों को यूपी पीएसी ने सांप्रदायिक दंगे के बाद अगवा कर लिया था और उसी रात 35 को पीएसी ने जान से मार कर नहर में फेंक दिया। 2015 में निचली अदालत ने सभी 16 जीवित पीएसी कर्मियों को बरी कर दिया था।

इसके बाद शिकायतकर्ता जुल्फिकार नासिर ने फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट में अपील की थी। बाद में इस अपील में राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी पार्टी बना दिया गया। वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता रेबेका जॉन ने नासिर और वकील वृंदा ग्रोवर ने एनएचआरसी की ओर से इस मामले में हाइकोर्ट में पैरवी की।


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