कोविड की दूसरी लहर की भयावहता की एक तस्वीर यूपी की राजधानी लखनऊ से आयी है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सीलॉजी रिसर्च (भारतीय विष अनुसंधान संस्थान) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि दूसरी लहर के समय जिस बड़ी तादाद में शव जलाये गये, वह भी लखनऊ में प्रदूषण बढ़ने का कारण बना।
कोविड की दूसरी लहर के दौरान अप्रैल और मई में कोरोना की वजह से आशिंक रूप से कर्फ्यू लगा हुआ था। इसके बावजूद प्रदूषण का नियंत्रण सीमा से बाहर जाना चौंकाने वाला था। इसी को देखते हुए संस्थान की ओर पर्यावरण दिवस यानी 5 जून को रिपोर्ट जारी की गयी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड की दूसरी लहर के बीच दवाओं और आक्सीजन को लेकर मची अफरा तफरी की वजह से लोग घर के अंदर रहने के बजाय सड़क पर राहत के लिए दौड़ भाग करते रहे। बड़ी तादाद में मौतें हुईं जिससे श्मशान में लगातार लाशें जलीं, जिसने वायु प्रदूषण बढ़ा दिया।
ग़ौरतलब है कि जब लखनऊ में कोरोना की दूसरी लहर के चरम दौर में शवदाह के लिए लंबी लाइनें लगी थीं। जलती लाशों के मीडिया में प्रचारित होने से नाराज़ सरकार ने श्मशान स्थलों के बाहर बैरीकेडिंग करके फोटो खींचने पर पाबंदी लगा दी थी। विपक्ष लगातार सरकार पर मरने वालों की तादाद छिपाने का आरोप लगाता रहा।
बहरहाल, यह रिपोर्ट साफ़ तौर पर बता रही है कि कोरोना ने कैसा क़हर ढाया था। हैरानी की बात ये है कि इस रिपोर्ट को मीडिया में कहीं तवज्जो नहीं मिली। जिन इक्का-दुक्का अख़बारों ने छापा भी, उन्होंने भी शवदाह को सुर्खी में जगह नहीं दै।
रिपोर्ट के मुताबिक चारबाग़ और गोमतीनगर लखनऊ के सबसे ज़्यादा प्रदूषित इलाके रहे। आप इस रिपोर्ट को नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
Pre-Monsoon English Report Final 2021