‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की वर्षगांठ पर ‘कॉरपोरेट भगाओ, किसानी बचाओ’ आंदोलन

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9 अगस्त 1942 के ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन की वर्षगांठ के मौके पर किसान-मजदूर संगठन ‘कॉरपोरेट किसानी छोड़ो’ नारे के साथ देश भर में आंदोलन करेंगे। यह आंदोलन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) के आह्वान पर आयोजित किया जा रहा है। इस दिन केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूर भी आंदोलन करेंगे।

‘कॉरपोरेट भगाओ-किसानी बचाओं’ नारे के साथ हो रहे इस आंदोलन में किसान-मजदूर संगठनों की 9 प्रमुख मांगे हैं। (1) कर्जा मुक्ति– शुरुआत में सरकार इस साल कोरोना दौर के लिए सभी किसानों की रबी फसल का कर्ज माफ करे और खरीफ, फसल के लिए केसीसी जारी करे। (2) पूरा दाम– प्रत्येक फसल, सब्जी, फल और दूध का एमएसपी कम से कम सी-2 लागत से 50 फीसदी अधिक घोषित हो । (3) दिनांक 03-06-2020 को जारी तीनों किसान विरोधी अध्यादेश रद्द हों। (4) डीजल का रेट आधा किया जाए। (5) विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को वापस लिया जाए। (6) इस साल किसान को हुए नुकसान की भरपाई की जाए। (7) इस साल मनरेगा के तहत काम की गारंटी को बढ़ाकर 200 दिन की जाए। (8) कोरोना संकट के पूरे दौर में सरकार हर व्यक्ति को पूरा राशन उपलब्ध कराए। (9) देश में किसानों-आदिवासियों की खेती की जमीन कंपनियों को देने पर रोक लगायी जाए।

इसके अलावा किसान मजदूर संगठनों की मांग है कि सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण और राष्ट्रीय परिसंपत्तियों को कार्पोरेटों को सौंपने की मुहिम पर रोक लगाई जाए, आदिवासी समुदायों को जल-जंगल-जमीन-खनिज पर हक़ दिया जाए और विकास के नाम पर उन्हें विस्थापित करना बंद किया जाए, मनरेगा की मजदूरी 600 रुपये मजदूरी दी जाए, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को सार्वभौमिक बनाया जाए और सभी लोगों का कोरोना टेस्ट किया जाए।

देशव्यापी आंदोलन में शामिल सैंकड़ों किसान संगठनों का ज्ञापन भी प्रधानमंत्री को सौंपा जाएगा। ये ज्ञापन समन्वय समिति के दिल्ली कार्यालय में पहुंच चुके हैं। इन ज्ञापनों के जरिये इस देश के किसानों की मांगों को केंद्र सरकार के समक्ष रखा जाएगा।

‘कॉरपोरेट भगाओ-किसानी बचाओ’ अभियान में लाखों किसान शामिल होंगे- राजाराम सिंह

एआईकेएससीसी के बिहार-झारखंड प्रभारी व बिहार के पूर्व विधायक राजाराम सिंह ने कहा कि देशव्यापी आह्वान पर देश के किसानों को विदेशी कम्पनियों व भारतीय कॉरपोरेट से बचाने के लिए, भारत छोड़ो आन्दोलन की वर्षगांठ पर ‘कॉरपोरेट भगाओ, किसानी बचाओ’ अभियान शुरु होने जा रहा है, जिसमें लाखों किसान भाग लेंगे।

राजाराम सिंह ने कहा कि केन्द्र की आरएसएस-भाजपा नेतृत्व वाली मोदी सरकार ने एक  अभूतपूर्व कदम उठाते हुए तीन कृषि अध्यादेश पारित किए, जिन्होंने किसान समुदाय के पूर्व में जीते हुए कई अधिकार छीन लिये। इनमें से कई अधिकार राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र में आते थे, लेकिन विपक्षी दलों व उनकी राज्य सरकारों ने भी विरोध नहीं किया कि कहीं कॉरपोरेट नाराज ना हो जाएं।

उन्होंने कहा कि मंडी समिति के नियमन से जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों पर नियंत्रण हटा दिया गया है और कम्पनियां अब सीधा किसानों से खरीददारी करेंगी; और बड़े कॉरपोरेट- वालमार्ट, मान्सेन्टो, पेप्सी आदि को ठेका खेती करने के लिए खुला निमंत्रण दिया जाएगा, जिसमें वे गांव के दलालों के माध्यम से छोटी उपज वालों को अपने पीछे बांध लेंगे, उन्हें अपनी मंहगी लागत के सामान खरीदवाएंगे और फसल बेचने के लिए उन्हें बाध्य करेंगे। जीवन निर्वाह लायक खेती समाप्त हो जाएगी और खाद्यान्न सुरक्षा भी।

उन्होंने कहा कि सरकार धन उगाही के लिए अपने ही लोगों कर बढ़ा रही है। डीजल और पेट्रोल पर नवम्बर 2014 में एक्साइज ड्यूटी रु 3.46 व रु  9.20 थी, जिसे उसने बढ़ा कर रु 31.83 और रु 32.98 कर दिया है। वहीं बिजली पर छूट समाप्त कर रही है और दरें कई गुना बढ़ाने जा रही है। सरकार ‘कल्याणकारी योजनाओं’ पर दिखावे के रूप में खर्च कर रही है, जबकि असल में ईंधन, खाना,  खाद,  मनरेगा,  पेंशन,  आदि सभी में फंड घटा रही है और सबको पीएम किसान के नाम रख रही है।

9 अगस्त को लोकतंत्र बचाओ दिवस के रूप में मनाएं- अखिलेंद्र प्रताप सिंह

‘लोकतंत्र बचाओ अभियान’ ने राष्ट्रव्यापी विरोध कार्यक्रम का समर्थन करते हुए रिहाई, काले कानूनों का खत्मा, कमाई, दवाई और पढाई के सवालों पर लोकतंत्र बचाओ दिवस आयोजित करने का निर्णय लिया है। ‘लोकतंत्र बचाओ अभियान’ से जुड़े लोग बैनर, पोस्टर के साथ इस कार्यक्रम को मनायेंगे और सोशल मीडिया ट्वीटर, फेसबुक, वाट्सअप, इंट्साग्राम आदि के जरिए इसे प्रचारित व प्रसारित करेंगे। लोकतंत्र बचाओ अभियान की बैठक में 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर संवाद समूह द्वारा राष्ट्र निर्माण की शपथ के कार्यक्रम को भी करने का निर्णय हुआ। बैठक की अध्यक्षता ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी और संचालन दिनकर कपूर ने किया।

बैठक को संबोधित करते हुए अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कोरोना महामारी के दौर में प्रवासी मजदूरों के लिए पहल लेने और योगी सरकार द्वारा काम के घंटे 12 करने की कोशिश को वर्कर्स फ्रंट द्वारा विफल करने के प्रयास की सराहना की। साथ ही आइपीएफ द्वारा हाईकोर्ट में हस्तक्षेप कर कोरोना महामारी के दौरान सरकार द्वारा सरकारी व निजी अस्पतालों में बंद की गयी सामान्य स्वास्थ्य व्यवस्था को पुनः चालू कराने की पहल का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि आरएसएस और भाजपा देश में वित्तीय पूंजी के सक्रिय सहयोग से मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को अधिनायकतंत्र में तब्दील करने में पूरी ताकत से लगी हुई है। उनके इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा ही राम मंदिर का निर्माण भी है। आरएसएस ने भूमि पूजन के लिए 5 अगस्त की तारीख का चुनाव भी इसीलिए किया क्योंकि इसी दिन मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन करने का दुस्साहिक कदम उठाया था। जिसके दुष्परिणाम आज भारत-चीन सीमा विवाद, पाकिस्तान का मनोबल बढ़ना, जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों व लोकतंत्र की हत्या के रूप में सामने आ रहे है।

अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश लोकतंत्र पर हमले का मॉडल बन रहा है। पुलिस राज में तब्दील होता जा रहा प्रदेश अपराधियों-माफियाओं के हवाले हो गया है और आम नागरिकों का जीवन असुरक्षित है। वित्तीय पूंजी के लिए आरएसएस-भाजपा द्वारा लाए जा रहे अधिनायकवाद और सामाजिक-सामुदायिक विषमता के विरूद्ध लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समता और भाईचारा कायम करना हमारा लक्ष्य है। उन्होंने रिहाई, दवाई, कमाई, पढाई यानी राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं की बिना शर्त रिहाई, काले कानूनों का खत्मा, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा के अधिकार पर 9 अगस्त को लोकतंत्र बचाओ दिवस के रूप में आयोजित करने की अपील की।

बैठक में मौजूद यूपी के पूर्व डी.जी पुलिस बिजेन्द्र सिंह ने डा0 अम्बेडकर के विचार को मानने वालों समेत अन्य जनपक्षधर समूहों की एकजुटता पर जोर देते हुए कहा कि इस ऐतिहासिक कमी को पूरा करने के लिए ली जा रही पहल सराहनीय है। पूर्व न्यायधीश बी0 डी0 नकवी ने कहा कि आज फासीवाद का खतरा वास्तविक खतरा बनके उभरा है और यह दुनियाभर में बढ़ रहा है। हिन्दुस्तान में विरोध की हर आवाज को कुचलने की कोशिश हो रही है। आनंद तेलतुम्बड़े, वरवर राव, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, कफील खान जैसी प्रतिभाओं और हस्तियों को जेल में बंद रखा गया है। इसके विरूद्ध सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक समवेत पहल की जरूरत है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष लाल बहादुर सिंह ने कहा कि कोरोना महामारी से निपटने में मोदी और योगी सरकार विफल रहा है। इस महामारी ने मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्था के संकट को भी सामने लाने का काम किया है। इसी दौर में तेजी से आरएसएस अपने कॉरपोरेट परस्त एजेंड़े को लागू करने के लिए ढांचागत बदलाव कर रही है। नई शिक्षा नीति, सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण आदि इसके जीवंत उदाहरण है।

हाईकोर्ट के अधिवक्ता नीतिन मिश्रा ने प्रशांत भूषण पर चलाई जा रही अवमानना याचिका पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे न्यायापालिका की प्रतिष्ठा पर गहरा आधात हो रहा है। संवाद समूह के आलोक ने 15 अगस्त के कार्यक्रम के बारे में विस्तार से रखते हुए कहा कि इस दिन देशभर में सभी सहमना संगठन अपने वीडियों के जरिए एक लोकतांत्रिक भारत निर्माण के संकल्प को लेंगें। युवा मंच संयोजक राजेश सचान ने कोरोना महामारी के दौरान पैदा हुए रोजगार के भयावह संकट पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए रोजगार के अधिकार के लिए अभियान चलाने की आवश्यकता को रेखाकिंत किया।

बैठक का समापन करते हुए आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी ने उत्तर प्रदेश के पुलिस राज में तब्दील होने पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि योगी राज में तो संविधान और सुप्रीम कोर्ट तक के आदेशों की लगातार अवमानना हो रही है। प्रदेश में आम जन की आवाज उठाने पर राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न हो रहा है। कोरोना महामारी से निपटने की घोषणाएं तो बहुत हो रही है लेकिन जमीनी स्तर पर इलाज के अभाव में लोग लगातार मर रहे है, कोरंटाइन सेंटरों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं है। दरअसल योगी सरकार ने सत्ता में रहने का नैतिक अधिकार खो दिया है।

छत्तीसगढ़ में 25 किसान संगठन करेंगे विरोध प्रदर्शन

“ये देश बिकाऊ नहीं है, कॉर्पोरेट भगाओ- किसानी बचाओ और कर्ज नहीं, कैश दो” के नारों के साथ 9 अगस्त को छत्तीसगढ़ के 25 किसान संगठन आंदोलन करेंगे।मजदूर-किसानों के इस आंदोलन को प्रदेश की पांच वामपंथी पार्टियों ने भी समर्थन देने की घोषणा की है।

किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन से जुड़े विजय भाई और छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि छत्तीसगढ़ में इस आंदोलन में शामिल होने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), किसान महापंचायत, आंचलिक किसान सभा, सरिया, परलकोट किसान संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी आदि संगठन प्रमुख हैं।

इन सभी संगठनों का मानना है कि अध्यादेशों के जरिये कृषि कानूनों में किये गए परिवर्तन किसान विरोधी है, क्योंकि इससे फसल के दाम घट जाएंगे, खेती की लागत महंगी होगी। ये परिवर्तन पूरी तरह कॉरपोरेट सेक्टर को बढ़ावा देते हैं और उनके द्वारा खाद्यान्न आपूर्ति पर नियंत्रण से जमाखोरी व कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा। इन सभी किसान संगठनों का आरोप हैं कि कोरोना संकट की आड़ में मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण के जरिये देश की राष्ट्रीय संपत्तियों को बेच रही है, ठेका खेती की इजाजत देकर और कृषि व्यापार में लगे प्रतिबंधों को खत्म करके देश की खाद्य और बीज सुरक्षा और खेती-किसानी को तहस-नहस कर रही है। ये सभी किसान संगठन “वन नेशन, वन एमएसपी” की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इतने बड़े देश में एक बाजार की कल्पना करना वास्तव में किसानों के हितों से खिलवाड़ करना और कॉरपोरेटों के हितों को पूरा करना है।

विजय भाई और पराते ने कहा कि छत्तीसगढ़ की सरकार भी केंद्र की तरह ही कोरोना महामारी और इसके अर्थव्यवस्था में पड़ रहे दुष्प्रभाव से निपटने में गंभीर नहीं है। साढ़े तीन लाख कोरोना टेस्ट में 11000 से ज्यादा लोगों का संक्रमित पाया जाना दिखाता है कि प्रदेश में कम-से-कम 7-8 लाख लोग संक्रमित होंगे, लेकिन वे स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच से दूर है। प्रवासी मजदूरों और ग्रामीणों को मुफ्त राशन तक नहीं मिल रहा है। बोधघाट और कोयला खदानों के निजीकरण के द्वारा आदिवासियों के बड़े पैमाने पर विस्थापन की योजना को अमल में लाया जा रहा है, जबकि वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को क्रियान्वित नहीं किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार, दोनों को ऐसी नीतियों को लागू करने की जरूरत है, जिससे लोगों के हाथों में खरीदने की ताकत आये, ताकि बाजार में मांग पैदा हो। इसके लिए सार्वजनिक कल्याण के कामों में सरकार को पैसे लगाने होंगे। तभी हमारे देश की अर्थव्यवस्था मंदी से निकल सकती है। देशव्यापी मजदूर-किसान आंदोलन की मांगें इसी समस्या को केंद्र में रखकर सूत्रबद्ध की गई है। भाजपा-कांग्रेस की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ आम जनता को राहत देने का यह वैकल्पिक कार्यक्रम है। इसके साथ ही 9 अगस्त का मजदूर-किसान आंदोलन देश के संघीय ढांचे और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और समानता के मूल्यों को बचाने और एक समतापूर्ण समाज के निर्माण का भी संघर्ष है।


 


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