वास्तविकता से कम हैं कोरोना से संक्रमण और मृत्यु के आँकड़े !

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हर रोज़, हर घंटे हम किसी न किसी अख़बार में, किसी वेबसाइट अथवा सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर कोविड-19 के आंकडें देखते हैं। इन आंकड़ों को मुख्य तौर पर चार श्रेणियों में विभाजित करके दिखाया जाता है। कितने लोगों का परीक्षण किया गया, कितने पोजिटिव पाए गये, कितने ठीक हो गए और कितने संक्रमित लोगों की मृत्यु हो गई।  

विश्व भर से आ रहे आंकड़ों से यह तो स्पष्ट है कि कोरोना वायरस से संक्रमित अधिकतर लोग ठीक हो रहे हैं। ठीक होने वाले मरीजों की संख्या से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है मृतकों की संख्या; और इस संख्या की स्पष्टता और प्रामाणिकता।

12 अप्रेल तक भारत में कोरोना वायरस से 531 मौतें दर्ज हो चुकी थीं। इस आंकड़े को समझने की आवश्यकता है। 

12 अप्रेल तक भारत में 194,032 लोगों का परीक्षण किया गया था, इनमें से  9,157 लोग यानि कुल टेस्ट किये जाने वाले लोगों का करीब 4.7 फीसदी पोजिटिव पाए गये। यह संख्या चिंताजनक प्रतीत नहीं होती। 

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर से वायरस विज्ञान के सेवानिवृत प्रोफेसर टी. जेकब जॉन और थिरुमलाई मिशन अस्पताल के निदेशक एवं मेडिसिन के सेवानिवृत प्रोफेसर डॉक्टर शेषाद्रि इस संख्या पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि अगर पर्याप्त मात्रा में कुशल परीक्षण हो तो यह संख्या कहीं अधिक होनी चाहिए।  

डा. जेकब और डा. शेषाद्रि कहते हैं कि इस बारे में कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है कि जिन लगभग दो लाख लोगों का टेस्ट किया गया उनमें से कितने लोग ऐसे थे जिन्हें कोरोना के लक्षणों के कारण नहीं अपितु उनके यात्रा-इतिहास की वजह से टेस्ट किया गया। इनमें वे लोग शामिल हैं जो विदेशों से लौटे थे अथवा विदेश से लौटे लोगों के सम्पर्क में आये। दूसरी ओर ऐसे कितने लोगों का परीक्षण किया गया जिनमे दरअसल कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए। 

सवाल उठता है कि टेस्ट किन लोगों के किये गये अथवा किये जा रहे हैं?

केरल 2018 में निप्हा वायरस से  काफी कुछ सीख चुका था। भारत में, 30 जनवरी को कोविड-19 का पहला केस प्रकाश में आया था। तब तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत सरकार को कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किये थे; परन्तु केरल ने परीक्षण प्रारंभ कर दिए।  

चीन के वुहान से लौटने वाले मेडिकल छात्रों को एयरपोर्ट से सीधे क्वारंटीन में भेज दिया गया।  फरवरी के पहले सप्ताह में उनमें से तीन छात्र कोरोना पोजिटिव पाए गये। उनके सम्पर्क में आने वाला कोई व्यक्ति संक्रमित नहीं हुआ। केरल ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया और उस उदाहरण का बाद में अन्य राज्यों और केंद्र ने भी अनुसरण करना शुरू किया।  

उद्देश्य यह था कि आयातित संक्रमण यहाँ के लोगों में न फ़ैल सके। संक्रमण जब यूरोप और अन्य पश्चिमी एशियाई देशों तक पहुंचा और वहां रह रहे भारतीय जब स्वदेश लौटने लगे तो बिना परीक्षण के संक्रमण भारत में भी दाखिल हो गया। 

भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद ने अध्ययन के लिए 41 अस्पतालों के लगभग छह हज़ार ऐसे लोगों का परीक्षण किया जो गम्भीर निमोनिया के कारण आई सी यू में भर्ती थे। इनमें से 104 मरीज कोविड-19 पोजिटिव पाए गये। ये पोजिटिव मरीज़ भारत के 20 राज्यों अथवा केंद्र शाषित प्रदेशों से सम्बंधित थे। इस अध्ययन से यह तय हो गया था कि संक्रमण दूर-दूर तक पहुँच चुका है और कोविड निमोनिया शुरू तो हो गया है मगर यह निमोनिया की दूसरी शक्ल में छिपा बैठा है। 

अगर विशिष्ट रूप से परीक्षण न किये जाएँ तो कोविड 19 के गंभीर केस भी सामने नहीं आयेंगे। इसलिए जिन 194,032 लोगों का परीक्षण किया गया और जो 9,157 लोग पोजिटिव पाए गये, के आंकड़े को कोविड से मृत्यु की दर का पैमाना नहीं बनाया जा सकता।

सिर्फ वायरस के संक्रमण से मृत्यु नहीं होती, मृत्यु गंभीर बीमारी की उपस्थिति से होती है। 

वैश्विक स्तर पर यह पाया गया है सार्स अथवा कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर तीन से पांच प्रतिशत है। भारत के लिए अगर इस संख्या को 4 प्रतिशत मान लें तो 12 अप्रेल को कोविड संक्रमण से मौतों की संख्या 531 का 25 गुणा यानि 13,275 बनती है।  

कोविड19 से संक्रमित मरीज को संक्रमण के पश्चात मौत में तीन से चार सप्ताह का समय लगता है। इसका अर्थ यह हुआ कि ये 13,275 लोग 12 मार्च के आसपास संक्रमित हो चुके थे। 

संक्रमित लोगों की संख्या दोगुना हो जाने की अवधि अगर एक सप्ताह भी हो तो 12 मार्च से 12 अप्रेल तक चार चक्र पूरे हो जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि 12 मार्च को जितने संक्रमित लोग थे, 12 अप्रेल को उनकी संख्या 16 गुणा बढ़ जायेगी। इस गणना के अनुसार भारत में 12 अप्रेल को संक्रमण के शिकार लोगों की अनुमानित संख्या  13,275 X16 = 212,400 है। 

इन संक्रमित लोगों में अगर मृत्युदर को चार फीसदी मान लिया जाए तो यह संख्या 8,496 होगी। प्रस्तुत 531 मौतों का आंकड़ा इस अनुमानित संख्या का मात्र  6.25 फीसदी है। 

12 अप्रेल को संक्रमित लोगों का दर्ज 9,157 लोगों का आंकड़ा अनुमानित संक्रमण 212,400 का मात्र 4.3 फीसदी है। 

इस अनुमान के आधार पर वायरस से संक्रमित लोगों और मृत्यु के आंकड़ों को विश्वसनीय और पूर्ण नहीं माना जा सकता। 

अगर यह मान लिया जाए कि देश में संक्रमित कुल लोगों के 30 फीसदी को ही चिन्हित किया जा सका है तो कुल संक्रमित लोगों की संख्या अनुमानित रूप से 212,400 x 33 = 700,920 होगी। और मृत्यु दर अगर चार फीसदी है तो यह संख्या 28,036 बैठती है। 

भारत में जन-स्वास्थ्य पर वास्तविक समय में संक्रामक रोगों से पीड़ित लोगों और उससे मरने वालों लोगों की संख्या को निगरानी कर पाने वाली कोई  भी प्रमाणिक प्रणाली उपलब्ध नहीं है। 

इसलिए यह सभी आंकड़े वास्तविक से बहुत कम प्रतीत होते हैं। 

लॉकडाउन के दौरान अधिकांश अनुमानित संक्रमित लोग अपने परिवारों के साथ घरों में बंद हैं। जैसे ही लॉकडाउन हटेगा संक्रमित लोगों और उनके सम्पर्क में आये परिवार के लोगों, जिनमें कोई लक्षण नहीं दिख रहा था, के माध्यम से वायरस के प्रसार की पूरी आशंका है। 

इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है लॉकडाउन खुलने के बाद जब सामाजिक सम्पर्क शुरू हो जायेंगे तो हर किसी को मास्क पहनना और हाथ धोने जैसी क्रियाओं का सख्ती से पालन करना होगा। 

अर्थव्यवस्था को भी दोबारा शुरू करने के लिए सामाजिक सम्पर्क आवश्यक होंगे। उस स्थिति में भी संक्रमण के बढ़ने का खतरा बना रहेगा। 

यह एक अभूतपूर्व चुनौती होगी जिसका सामना करने के  लिए हम नौसिखिए ही  हैं।

तालाबंदी की इस स्थिति को हर जिले में “सामाजिक लामबंदी”  करके ही  खोला जाना चाहिए इसके लिए योजना बनाने और उसके कार्यान्वयन का काम प्रशासन और नागरिकों की परस्पर भागीदारी द्वारा सावधानीपूर्वक किये जाने की आवश्यकता है।


क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर (केरल) से वायरस विज्ञान के सेवानिवृत प्रोफेसर टी जेकब जॉन और थिरुमलाई मिशन अस्पताल के निदेशक एवं मेडिसिन के सेवानिवृत प्रोफेसर डॉक्टर शेषाद्रि के ‘द टेलीग्राफ’ में प्रकाशित अध्ययन पर आधारित मीडियाविजिल के लिए कुमार मुकेश द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट 

 

 


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