केन्द्र और राज्य सरकारें कोरोना महामारी से देशवासियों को बचाने के लिए उठाए गए कदमों को लेकर लगातार दावे कर रही हैं. लेकिन इनके दावे और वादे जमीनी सच्चाई से मेल नहीं खा रहे हैं. कोरोना से लड़ रहे डॉक्टरों व पूरी मेडिकल टीम के साथ-साथ सफाइकर्मियों व सेनेटाइज कर रहे मजदूरों का जीवन असुरक्षित होते जा रहा है. कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में ताली, थाली, घंटी, शंख के साथ आतिशबाजी तो हुई लेकिन आज तक इन कोरोना वॉरियर्स को खुद के बचाव के लिए भी पर्याप्त सुरक्षा किट उपलब्ध नहीं कराये गये.
कोरोना वॉरियर्स के प्रति सरकार की लापरवाही का ही नतीजा है कि 15 अप्रैल को झारखंड के हजारीबाग जिला के विष्णुगढ़ प्रखंड के चानो गांव को सेनेटाइज कर रहे दो मजदूरों नागेश्वर महतो और हीरामन महतो की पीठ केमिकल से बुरी तरह झुलस गई.
दरअसल इसी विष्णुगढ़ प्रखंड में दो कोरोना के पॉजिटीव मरीज पाये गये हैं. जिस कारण कई गांवों को पंचायत के मुखिया की देखरेख में सेनेटाइज कराया जा रहा है. जब चानो गांव में मुखिया ने इन दोनों लोगों को सेनेटाइज करने का काम सौंपा, तो इन्हें कोई विशेष पोशाक (सुरक्षा किट) नहीं दिये गये. मजदूरों ने अपने पीठ पर ही सेनेटाइजर बॉक्स को टांगकर काम करना शुरू कर दिया, जिस कारण सेनेटाइजर बॉक्स से कैमिकल का रिसाव होने के कारण दोनों मजदूरों का पीठ बुरी तरह से झुलस गयी.
दोनों मजदूरों को आनन-फानन विष्णुगढ़ सीएचसी ले जाया गया, जहं डॉक्टरों ने इन दोनों का इलाज किया. इलाज करने वाले डॉक्टर अरूण कुमार ने बताया कि बगैर स्पेशल पोशाक धारण किये हुए सेनेटाइज करना अनुचित था, क्योंकि सेनेटाइज करने के लिए जहरीले पदार्थ का छिड़काव किया जाता है.
इससे पहले भी मार्च के अंत में हजारीबाग नगर निगम के दो-तीन कर्मचारी सेनेटाइज करने के दौरान झुलस गये थे, जिसके बाद नगर निगम के कर्मचारियों ने काफी हंगामा भी किया था. हंगामे के बाद उपमेयर ने इन कर्मचारियों को रेनकोट उपलब्ध कराये थे.
इससे पहले झारखंड में कोरोना वारियर्स के प्रति सरकार की बड़ी लापरवाही 13 अप्रैल को भी सामने आयी थी, जब बोकारो जनरल अस्पताल की लगभग 300 नर्सों ने कार्य का बहिष्कार कर दिया था. बता दें कि झारखंड में कोरोना से पहली मौत इसी अस्पताल में हुई थी. इन नर्सों का अस्पताल प्रबंधन पर आरोप था कि अस्पताल में कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने कोरोना से नर्सों के बचाव के लिए कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं किये हैं. यहां तक कि सीसीयू को सेनेटाइज भी नहीं कराया गया है.
साथ ही कोविड-19 वार्ड में नर्सों से लगातार 8 घंटे ड्यूटी करायी जा रही है जबकि डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार 4 घंटे की ही शिफ्ट कोविड-19 वार्ड में होनी चाहिए. नर्सों ने यह भी आरोप लगाया था कि कोरोना से बचाव के लिए सुरक्षा किट मांगने या फिर अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही का विरोध करने पर रजिस्ट्रेशन रद्द करने व एफआईआर करने की धमकी दी जाती है.
हमारी सरकारें कोरोना वारियर्स की सुरक्षा के लिए कितनी चिंतित है, झारखंड की ये दो घटनाएं तो मात्र उदाहरण हैं. केन्द्र की सरकार हो चाहे राज्य सरकार हो, किसी को भी कोरोना वारियर्स की सुरक्षा की चिंता नहीं है. ये सरकारें सिर्फ व सिर्फ अपना पीठ खुद से ही थपथपाना चाहती हैं. चाहे मजदूरों की पीठ झुलस ही क्यों ना जाए, इन्हें सिर्फ अपनी पीठ थपथपानी है.
आज जब दुनिया भर की सरकारें अपने कोरोना वारियर्स को भरपूर सुरक्षा इंतजाम देने की कोशिश कर रही है. ऐसे हालात में हमारे देश की सरकारें सिर्फ व सिर्फ भाषणबाजी से काम चलाना चाहती है और उनके सिपहसालार कोरोना फैलाने की जिम्मेवारी एक विशेष समुदाय के मत्थे मड़कर सरकार को जिम्मेदारी से मुक्त कर देना चाहते हैं.
रूपेश कुमार सिंह