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फ्रांसीसी क्रांति के पहले और क्रांति के दौरान पेरिस और लंदन की पृष्ठभूमि में चार्ल्स डिकेन्स ने एक उपन्यास लिखा था ‘ए टेल ऑफ टू सिटीज’ जो बहुत चर्चित हुआ. इस उपन्यास में कही हुई बातें और विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस दौर में थे.
डिकेन्स इस उपन्यास के माध्यम से कहते हैं कि समय के अलग-अलग दौर होते हैं. हर दौर में समय के मायने भी बदल जाते हैं. कुछ लोगों के लिए वो प्रकाश का समय है तो कुछ लोगों के लिये अंधेरे का समय है. कुछ के लिये आशाओं का झरना है तो कुछ के लिये घोर निराशा की सर्दी. कुछ लोगों के लिये विश्वास का युग है तो कुछ लोगों के लिये अविश्वास का युग.
आज कोरोना संकट के समय चार्ल्स डिकेंस के ये विचार सटीक बैठ रहे हैं. कोरोना संकट ने दुनिया के सभी देशों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. किन्तु जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे कुछ देश जहां उम्मीद दिखा रहे हैं वहीं ईटली और ईरान जैसे कुछ देशों से नाउम्मीदी मिल रही है.
जहां तक बात भारत की जाए तो विदेशों में रहने वाले भारतीय लोगों को तत्काल एयर लिफ्ट करवाया गया. ऐसी खबरें भी आई कि कुछ वर्तमान संसद सदस्य लॉक डाउन के बावजूद अपने गाड़ियों से अपने अपने राज्यों में गए जबकि आम लोगों के लिए सब बन्द हैं.
बिहार राज्य के वर्तमान बीजेपी के एम.एल.ए. ने लॉक डाउन में अपने रुतबे का प्रयोग करते हुए स्पेशल पास जारी करवाया और कोटा से अपनी बेटी को घर ले गए. जाहिर सी बात है इन लोगों के लिए इस संकट की घड़ी में भी कुछ आशाओं के बिंदु हैं.
दूसरी तरफ वे बदनसीब दिहाड़ी मजदूर, भिखारी, घुमन्तू समुदाय, टपरीवास, पशुपालक और श्रमिक लोग हैं जो या तो जानवरों की तरह किसी बाड़े में कैद हैं जहां उन्हें फेंक कर खाना दिया जा रहा है या वे दिन भर में मात्र एक बार ही भोजन कर पा रहे हैं. उनके लिए जहाज तो दूर रहा साइकिल भी नहीं हैं. पैदल ही भूखे प्यासे अपने घर की ओर चल पड़े हैं. सरकार की किरकिरी होने के बाद, एक महीना बीत जाने के बाद अब उनकी सुध ली गई है, जब अन्य राज्यों ने अपने हाथ खड़े कर दिए. इन लोगों के लिए ये समय ये घोर निराशा की सर्दी है.
हमारे सामने एक तरफ तो केरल, गोवा, छत्तीसगढ़ तथा उत्तर पूर्व के राज्यों का विचार है जो आशा की किरण जगाता है. वहीं दूसरी तरफ उतर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र राज्य में एक अन्य विचार भी दिखलाई पड़ता है. जो डर, नाउम्मीदी और अंधकार को फैलाता है.
आखिर कैसे इन राज्यों की सरकारों ने अपनी बद इंतजामी, लापरवाही और असंवेदनशील कार्यवाही की वजह से इस संकट को घोर निराशा की सर्दी में तब्दील कर दिया? और कैसे कुछ राज्यों ने उसी संकट की घड़ी में अपनी सूझ-बूझ, ईमानदारी और कड़ी मेहनत से उसे कम से कम समस्या पर ही रोक लिया.
जहां तक केरल राज्य का सवाल है तो समय रहते वहां चार पहलुओं पर काम किया गया. आइसोलेशन, डेटा कलेक्शन एवं लॉक डाउन तथा ड्रोन से स्थिति पर नज़र. कोच्चि शहर के पुलिस कमिश्नर सखारे ने कहा, ‘यह सब हमारी रणनीति की बदौलत हो पाया. मूल रूप से हमारी रणनीति तीन कदमों पर आधारित है. इसका मकसद यह है कि लोग आपसी मेलमिलाप से बचें और संक्रमण ना फैले.’
पहला कदम- आइसोलेशन
कोच्चि के पुलिस कमिश्नर विजय सखारे ने बताया कि विदेशों से, खासकर खाड़ी देशों से आए Covid-19 संक्रमित लोगों के सीधे और परोक्ष रूप से संपर्क में आए लोगों को न पूरी तरह से आइसोलेट करने के अभियान के तहत ये कदम उठाए गए. उन्होंने कहा, ‘पहले कदम के तहत पुलिस व्यवस्था के पारंपरिक तरीके अपनाए गए. जैसे सड़क को बंद किया गया, हर जगह गश्त बढ़ा दी गई. इस तरह हम लोगों को घरों से निकलने से रोकने में कामयाब रहे.
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दूसरा कदम- डेटा कलेक्शन
दूसरे कदम के तहत, सभी संक्रमित मामलों, घर पर क्वारंटीन में भेजे गए लोगों, दूसरे देशों से आए सभी लोगों और संक्रमित लोगों के सीधे या परोक्ष रूप से संपर्क में आए लोगों का स्थानिक आंकड़ा तैयार किया गया. उन्होंने कहा, ‘इससे बहुत दिलचस्प तस्वीर उभरी. हमने पाया कि सारे संक्रमित मामले जिले के पांच थानों के तहत सात इलाके से ही आए हैं. हमने इलाके की घेराबंदी कर दी. इलाके की सभी सड़कों को बंद कर दिया. किसी को भी ना जाने दिया गया ना बाहर निकलने दिया गया.’
सखारे के अनुसार, विदेश से आए जिन लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई, उन लोगों ने अपने किन रिश्तेदारों, दोस्तों से मुलाकात की, इसकी भी सूची बनाई गई. इन सबकी पहचान के बाद तीसरा कदम उठाया गया.
तीसरा कदम- ड्रोन से निगरानी
तीसरे कदम के तहत हमने उनके घरों के बाहर पहरा लगा दिया. हमने प्रभावित लोगों के 10-12 घरों तक के लिए पुलिस को गश्त पर तैनात किया. पुलिसकर्मी उनके पास जाकर घरों में रहने का महत्व उन्हें समझाते थे. इसके अलावा, उनके संपर्क में आए लोगों की निगरानी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया.’
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चौथा कदम- सेफ्टी एप्प
कोच्चि के पुलिस कमिश्रर विजय सखारे ने बताया कि सीधे या परोक्ष रूप से, संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों के मोबाइल फोन में कोविड-19 के सेफ्टी ऐप भी डाउनलोड करवाए गए. पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘अगर कोई अपने घरों से निकलने की कोशिश करता तो हम चौकस हो जाते थे.
ऐसी स्थिति में ऐसे लोगों को सरकारी आइसोलेशन सेंटर में भेजते हुए उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी शुरू की गई. तीसरे कदम के तीन दिन बाद हमने 107 लोगों को सरकारी सेंटर भेज दिया क्योंकि उनका बर्ताव समाज के लिए खतरनाक था.’
पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘घर में क्वारंटीन किए गए 10,700 से ज्यादा लोगों के मोबाइल फोन में ऐप डाउनलोड किया गया. जिला पुलिस ने इन इलाकों में घरों तक जरूरी सामग्री पहुंचाने की व्यवस्था की ताकि लोग बाहर ना निकलें. घर तक सामान पहुंचाने की व्यवस्था बाद में पूरे जिले में लागू की गई.’ उन्होंने बताया कि पुलिस ने कासरगोड सुरक्षा ऐप की शुरुआत की. इसके जरिए बीमार लोगों को डॉक्टर से परामर्श लेने की सुविधा मिली.
इसका एक अन्य उदाहरण राजस्थान राज्य के रुप मे हमारे सामने हैं. राजस्थान में जहां एक तरफ उम्मीद की किरण दिखलाई पड़ती है तो दूसरी तरफ घोर निराशा दिखलाई पड़ती है.
निराशा के बिंदु
संकट की इस घड़ी में जहां कुछ लोगों ने अपनी सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का एक जरिया समझा जैसे भीलवाड़ा मॉडल. सच्चाई तो यह है कि ऐसा कोई मॉडल कभी था ही नहीं. जिसकी बुनियाद झूठ पर टिकी हो ज्यादा समय तक नहीं चलता है और यह मॉडल भी विकास के मॉडल की तरह से भरभरा कर गिर गया. आखिरकार कलेक्टर को यह लिखित आदेश जारी करना पड़ा कि कोई भी भीलवाड़ा मॉडल पर बात नहीं करेगा.
जैसलमेर के सम में 50 डिग्री तापमान और तपती रेत पर सैकडों घुमन्तू लोगों को लॉकडाउन के नाम पर मरने के लिए रोक रखा है. वहां न पानी है न ही कोई पेड़. अधिकारी एयर कंडीशनर में मस्त हैं. बीडीओ से पूछा गया तो उसने अपना पल्ला झाड़ लिया. कलेक्टर को फुर्सत नहीं हैं बात सुनने की.
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अजमेर जिले में क्वॉरेंटाइन के नाम पर चार-चार सौ लोगों को एक बड़े हॉल में एक साथ रख दिया. ताजुब्ब की बात तो ये है कि उनकी स्क्रीनिंग तक नहीं की गई. जब लोगों को समस्या होने लगी और कुछ लोग गेट कूदकर भागे जिसे मीडिया के कवर किया उसके बाद उनको स्क्रीन किया गया. यहां से बड़े स्तर पर कोरोना पॉजिटिव मरीज सामने आए हैं. अजमेर में बदइंतजामी का आलम यह कि एक खानाबदोश व्यक्ति भूख से, रोड़ किनारे मर गया. वहां कार्यवाही करना तो दूर रहा, उसका शव रोड पर पूरे 10 घंटे तक पड़ा रहा. जब स्थानीय लोगों ने हंगामा किया तब जाकर उसके शव को उठाया गया.
जोधपुर जिले में इस संकट की इस घड़ी में अपने आधिकारिक वेबसाइट के नंबर तक को नहीं बदला है. अधिकांश अधिकारियों के जो नंबर दर्ज है वो अधिकांश बंद हो चुके हैं. जोधपुर ग्रामीण क्षेत्र में ना कहीं राशन की सप्लाई है ना कोई शिकायत सुनने वाला है. जिला कलेक्टर को फ़ोन किया गया तो कोई रेलस्पांस नहीं मिला. उनको व्हाट्सएप मैसेज भेजा उसका भी कोई रिप्लाई नहीं. यही हालत कोटा, नागौर और भरतपुर ज़िले के हैं.
आशा का झरना
वहीं दूसरी तरफ उदयपुर और श्रीगंगानगर संभाग के साथ पुष्कर तहसील भी है. वैसी ही बल्कि ज्यादा खराब परिस्थितियों में अच्छा काम पेश किया है.
श्रीगंगानगर और उदयपुर संभाग क्यों खास?
श्रीगंगानगर और उदयपुर सीमा पर जिले हैं. श्रीगंगानगर एक तरफ हरियाणा और दूसरी तरफ पंजाब से लगा हुआ है. वहीं उदयपुर की सीमा अहमदाबाद से लगी हुई है. ये पर्यटक स्थल है. जहां पर्यटकों का आना लगा रहता है. यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है. यहां शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं है.
श्रीगंगानगर का मंडी मॉडल
श्रीगंगानगर में कोरोना कहर बनकर नहीं बरसा, इसका क्रेडिट वहां के कलेक्टर शिव प्रसाद का मंडी मॉडल भी है. उन्होंने मंडी में किसानों के आने का समय रात 8 बजे से सुबह 8 तक कर रखा है, ताकि वे अन्य लोगों के संपर्क में न आए, साथ मंडी में भीड़ भाड़ भी न रहे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस मॉडल की तारीफ की. साथ ही अन्य जिलों को भी इस तरह का मॉडल अपनाने की सलाह दी है.
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एक और नव प्रयोग किया गया वहां. लॉकडाउन में पुलिस के साथ आयुष डॉक्टर और शिक्षकों की नियुक्ति की गई, जिससे आने वाले लोगों की स्क्रिनिंग हो सके. पंचायत स्तर पर पहले से कंट्रोल रूम शुरू कर दिए गए, ताकि बाहरी व्यक्ति की सूचना उपलब्ध करवाई जा सके. वहां ड्रोन से निगरानी भी रखी जा रही है. बता दें कि पन्द्रह अप्रैल तक वहां पंद्रह लाख लोगों की स्क्रीनिंग हो गई थी. एक भी पॉजिटिव केस नहीं मिला.
लॉकडाउन की तैयारियों में जुटे थे
उदयपुर संभागीय आयुक्त विकास भाले ने इस पूरे क्षेत्र को अपनी दूर दृष्टि से बेहतर तरीके से संभाला. जब सारा देश थाली बजा रहा था उस समय ये रोकथाम के उपाय लागू कर रहे थे. यहां लॉकडाउन से पहले ही प्रिवेंटिव कदम उठाए गए.
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क्षेत्र को विभिन जोन्स में बांट दिया गया. गांवों में कोरोना केंद्र स्थापित कर दिए. जहां से सीधी सूचना मिले. बाजारों में पहले से ही 20 लोगों की संख्या निर्धारित कर दी गई थी. चैक पोस्ट बना दिये गये. इन सब कारणों से लॉकडाउन लगने के बाद आसानी से स्थिति पर काबू पा लिया.
एक व्यक्ति भी भूखा न सोये
विकास भाले ने पूरे देश के सामने अपनी काबिलियत, सोच और दमदार इरादों से महत्वपूर्ण काम संभाला. राशान सामग्री की किट व पक्का भोजन हर जरूरतमंद लोगों के घरों में पहुंचा दिया गया ताकि लोग घरों से बाहर ही न निकले. क्योंकि राशन दुकानों पर ये लोग भीड़ लगा देते इससे व्यवस्था बिगड़ सकती थी.
सोशल मीडिया का उपयोग करके चुरू ज़िले की एस.पी. तेजस्विनी गौतम ने लॉकडाउन का पालन कराया. फेसबुक पेज पर हर रोज विभिन्न सत्र आयोजित हो रहे हैं. हर रोज शाम को देश के जाने माने चेहरे फेसबुक पेज से जुड़ते हैं. जिनको लाइव देखने उनसे अपने सवाल करने हेतु ज़िले के करीब 40 हज़ार लोग जुड़ते हैं.
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तेजस्विनी ने धर्म विशेष के खिलाफ लिखने वालों को जेल में डाल दिया. कोरोना महमारी को लेकर के चलाए जा रहे धार्मिक उन्माद के खिलाफ तेजस्विनी गौतम ने 25 एफआईआर और 80 गिरफ्तारियां की हैं. अफवाहों का खंडन करने के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है. जहां निरंतर उस पर सही जानकारियां प्रस्तुत की जा रही हैं.
अपने सिपाहियों का मनोबल बढ़ाने के लिए रात भर गस्त करती हैं और उनके लिए चाय लेकर जाती हैं. यहां तक कि लॉकडाउन होने से पहले ही तेजस्विनी ने पुलिस लाइन में वर्दी के रद्दी कपड़े से करीब 8000 मास्क सिलवाकर अपने जवानों तथा उनसे जुड़े कर्मियों में वितरित करवा दिए थे.
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चूरू रेंज के आईजी जोश मोहन का कहना है कि हमारे रेंज में हम लोग बहुत ही अलग तरह काम कर रहे हैं. इसकी वजह से हमारे यहां विकट परिस्थितियां होते हुए भी हमने कोरोना को संक्रमित होने नहीं दिया. हमारे संभाग के चोरों तरफ जिस तरह की परिस्थितियां हैं उसके बावजूद तेजस्वी ने बेहतक काम किया है.
आईजी जोश महोन का कहना है कि श्रीगंगानगर भी बॉर्डर पर लगता है. जहां एक तरफ हरियाणा दूसरी तरफ पंजाब है. उसके बावजूद हमारे ऑफिसर्स ने कर्फ्यू और लॉकडाउन का सख्ती से पालन करवाया. जिसकी वजह से वह अकेला एक इस तरह का द्वीप बन गया है जहां पर कोई पॉजिटिव नहीं है. जबकि उसके चारों तरफ कितने पॉजिटिव मरीज हैं. हमारा सबसे पहला उद्देश्य है वह है कॉन्फिडेंस बिल्डिंग. इस मामले में हमारे संभाग में चूरू और श्रीगंगानगर वही काम कर रहे हैं. हम फील्ड पर निरन्तर नजरें जमाएं हुए हैं.
जहां अजमेर जिला बड़े इंतजाम की पनाहगाह बन गया है वहीं पुष्कर तहसील में एसडीएम देविका तोमर ने अपने कार्यों से कर दिखाया. सुरमई सी आंखें. चेहरे पर चुटीली मुस्कान. औसत कद काठी. सलवार कमीज पहने. किसी भी समय ड्यूटी के लिए निकल पड़ती हैं. इसी का नतीजा है कि अजमेर में इतनी बदइंतजामी इतनी विकट परिस्थितियों के बावजूद पुष्कर बेहतर कर रहा है.
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पुष्कर में बने क्वॉरेंटाइन सेंटर में जिन लोगों को रखा गया है. यह लोग मध्य प्रदेश के प्रवासी दिहाड़ी मजदूर हैं. इनके लिए देविका तोमर ने पुष्कर के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर भजन संध्या का आयोजन करवाती हैं. वे इस बात का ध्यान रखती हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहे.
देवीका तोमर कहती है कि यह लोग क्वॉरेंटाइन में हैं. जेलों में बंद कोई कैदी नहीं हैं इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है. इनके मनोरंजन के लिए इस तरह की भजन संध्या का आयोजन करवा रहे हैं. जिससे यह लोग यह महसूस कर सकें कि अपने घर में ही रह रहे हैं.
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देविका तोमर सुबह शाम वहां बनने वाले भोजन तथा उसके वितरण पर आंखें जमाए रखती हैं. कोई भी मजदूर, घुमंतू खानाबदोश व्यक्ति भूखा ना सोए इसकी वह व्यवस्था देखती हैं. हर जरूरतमंद व्यक्ति के पास खाद्य सामग्री पहुंचे इसकी व्यवस्था करती हैं. पुष्कर में रहने वाले कालबेलिया गोपीनाथ भाट बंजारे गाड़िया लोहार देविका तोमर को बड़की दीदी कह कर बुलाते हैं.
सहायता करनी है, शर्मिंदा नहीं करना
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी अखिल अरोड़ा की पहल पर सरकार ने ये सुनिश्चित किया यदि कोई व्यक्ति भोजन वितरित करते हुए किसी असहाय व्यक्ति की फोटो लेता है, तो इसे आपराधिक गतिविधि में शामिल किया जाएगा. संदेश स्पष्ट है, केवल भोजन देना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उस मजबूर व्यक्ति की इज्जत और सम्मान का भी ध्यान रखना जरूरी है.
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कोई फ़ुटपाथ पर न सोए
इसी के साथ विभाग की ओर से खाली पड़े हॉस्टलों में संकट में फंसे लोगों के साथ ही फुटपाथों पर रहने वाले लोगों के ठहरने की व्यवस्था भी करवाई. इसमें सोशल डिस्टेंस का भी ध्यान रखा गया.
इन उदाहरणों से हम यह समझ पाते हैं कि कुछ लोग उन प्रतिकूल परिस्थितियों को कैसे उम्मीद की किरण में बदल देते हैं. जबकि कुछ लोग उसी प्रतिकूल स्थिति को घोर निराशा की सर्दी बना देते हैं.
सभी राज्यों की सरकारों को चाहिए कि कोरोना संकट के बाद अपने यहां से विजय सखारे, अखिल अरोड़ा, विकास भाले, तेजस्विनी गौतम, शिव प्रसाद और देविका तोमर जैसे लोगों की अलग सूची तैयार करें. यही वो खुश्बू है जो चारों ओर बहकर हमें अपनी सुगन्ध से भर देती है.
यदि इस महक को संजोकर रखना है तो हमें उस बगीचे में पानी देना होगा और खरपतवार को वहां से हटाना होगा. हमें केवल गंदगी को ही नहीं हटाना बल्कि समाज की अच्छाई को भी एकजुट करना है.
लॉकडाउन तो सत्रह मई को खुल जायेगा. किंतु हमें अपने दिमाक के लॉकडाउन को खोलना है. शिक्षा और स्वास्थ्य के लॉकडाउन को खोलना है. सरकार की नीतियों और प्राथमिकताओं को गौर से देखना है.
लेखक बंजारों के जीवन पर शोध कर रहे हैं।