बिहार में लेफ्ट का राज्यव्यापी धरना: ‘प्रवासी मजदूरों को मुफ्त घर पहुंचाए सरकार’

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विश्व सर्वहारा के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स की 202वीं जयंती के अवसर पर बिहार में वाम दलों के संयुक्त आह्वान पर आज पूरे राज्य में वामपंथी कार्यकर्ताओं ने अपने घरों और पार्टी कार्यालयों पर धरना दिया. यह धरना प्रवासी मजदूरों को घर पहंचाने के सवाल पर केंद्र व राज्य सरकार द्वारा भ्रम की स्थिति बनाए रखने के खिलाफ आयोजित किया गया था.

इस धरने के जरिये अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मजदूरों से भाड़ा वसूलने के घोर अमानवीय आचरण के खिलाफ आवाज उठाई गई. यह धरना सभी प्रवासियों को पीएम केयर फंड की राशि से मुफ्त में तत्काल घर पहुंचाने, सभी मजदूरों के लिए 10 हजार लॉकडाउन भत्ता देने, बिना कार्ड वाले सहित सभी गरीबों को 3 महीने का राशन देने, काम की गारंटी करने और इस बीच मारे गए मजूदरों के लिए 20 लाख रुपया मुआवजा देने की मांग पर आयोजित की गई थी.

राज्यव्यापी धरने का आह्वान भाकपा-माले के अलावा सीपीआई, सीपीएम, फारवर्ड ब्लॉक व आरसपी ने संयुक्त रूप से किया था. पटना के अलावा भोजपुर, पटना ग्रामीण के विभिन्न प्रखंडों, सिवान, जहानाबाद, अरवल, गया, दरभंगा, समस्तीपुर, गोपालगंज आदि जिला केंद्रों, प्रखंड केंद्रों व सैंकड़ों गांवों में वामपंथी कार्यकर्ताओं ने धरना दिया.

भाकपा माले पार्टी राज्य कार्यालय में माले राज्य सचिव कुणाल, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, ऐपवा की बिहार राज्य अध्यक्ष सरोज चैबे, माले के केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमैन बृजबिहारी पांडेय, समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर, ऐक्टू नेता रणविजय कुमार आदि नेताओं ने शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए धरना दिया.

माले राज्य कार्यालय में सबसे पहले नेताओं ने कार्ल मार्क्स की जयंती पर उनके जीवन व संघर्षों को याद किया. पार्टी के राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि मार्क्स का जीवन सामाजिक-आर्थिक गुलामी से मजदूर वर्ग की मुक्ति के संघर्ष में बीता था. आज हम अपने देश में देख रहे हैं कि भाजपा और कॉरपोरेट घराने प्रवासी मजदूरों के साथ किस प्रकार का अमानवीय रवैया अपना रहे हैं.

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माले राज्य सचिव कुणाल ने आगे कहा कि जनांदोलनों के दवाब में केंद सरकार प्रवासी मजदूरों और छात्रों को घर भेजने पर तो सहमत हुई लेकिन अपने आधिकारिक नोटिफिकेशन में वह छलावा कर गई. सिर्फ उन्हीं मजदूरों को वापस आने की इजाजत मिली है जो अचानक हुए लॉकडाउन के कारण देश के दूसरे हिस्से में फंस गये थे. जो पहले से वहां काम कर रहे हैं, उनको नहीं लाया जाएगा. सच्चाई यह है कि लॉकडाउन के बाद फैक्ट्री बंद हो गए और पहले से काम कर रहे मजदूर भी सड़कों पर आ गए और वे तमाम तरह की परेशानी झेल रहे हैं. समझ से बाहर है कि सरकार इन्हें क्यों लाना नहीं चाहती? आखिर वे क्या करेंगे!

वहीं चितकोहरा में पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य व खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा, ऐपवा की बिहार राज्य सचिव शशि यादव, मुर्तजा अली, आबिदा खातून; अपने आवास पर वरिष्ठ पार्टी नेता केडी यादव, कुर्जी में अनीता सिन्हा आदि नेताओं ने धरना दिया.

इस मौके पर धीरेंद्र झा ने कहा कि नीतीश कुमार द्वारा प्रवासी मजदूरों के लिए किराया देने वाला बयान भ्रामक और छलावा है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि दूसरे राज्यों से आने के बाद मजदूरों को क्वारंटाइन सेंटर में रखा जाएगा और क्वारंटाइन के बाद जब मजदूर घर जाने लगेंगे, उस समय ट्रेन से आने में हुआ खर्च उन्हें दिया जाएगा. मतलब, जो मजदूर अपने पैसे से बिहार लौटेंगे, उनका पैसा ही वापस होगा. जिनके पास पैसा नहीं होगा, वे कैसे लौटेंगे? आज मजदूर दूसरे राज्यों में दाने-दाने को मोहताज हैं. उनसे किराया का पैसा जुटाने को कहना उनके साथ क्रूर मजाक है. केंद्र व राज्य के बीच 85 बनाम 15 प्रतिशत किराया देने की घोषणा का भी कोई नोटिफिकेशन नहीं है.

अन्य नेताओं ने कहा कि बिहार के 40 लाख से ज्यादा मजदूर देश के अन्य दूसरे हिस्से में काम करते हैं. खुद बिहार सरकार 29 लाख मजदूरों के बाहर होने की बात स्वीकार कर रही है. आज वे बेहद नारकीय जीवन जी रहे हैं, लगातार कोरोना के संक्रमण के शिकार हो रहे हैं, लेकिन इसकी चिंता सरकारों को बिल्कुल नहीं है. कर्नाटक में उन्हें कोरोना बम कहा जा रहा है. ये मजदूर अपने राज्य लौटना चाहते हैं, आखिर सरकार उन्हें क्यों नहीं लौटने दे रही है? ऐसा लगता है कि मजदूर आदमी नहीं बल्कि पूंजीपतियों के बंधुआ हैं. यह न केवल मजदूरों का बल्कि बिहार का भी अपमान है. नेताओं ने कहा कि ‘डबल इंजन’ की सरकार का क्या हुआ? जब दिल्ली-पटना में एक ही गठबंधन की सरकार थी, तब तो मजूदरों को घर पहुंचाने में कोई दिक्कत ही नहीं होनी चाहिए थी.

राजधानी पटना के दीघा में रामकल्याण सिंह, वशिष्ठ यादव, मीना देवी आदि नेताओं के नेतृत्व में धरना दिया गया. पटना जिले धनरूआ, फतुहा, फुलवारी, मसौढ़ी, दुल्हिजनबाजार, विक्रम, पालीगंज, बिहटा आदि प्रखंडों के सैंकड़ों गांवों में धरना हुआ. धनरूआ में कार्यक्रम का नेतृत्व खेग्रामस के बिहार राज्य सचिव गोपाल रविदास ने किया.

भोजपुर में माले जिला कार्यालय में विधायक सुदामा प्रसाद, जिला सचिव जवाहर लाल सिंह के नेतृत्व में धरना दिया गया. तरारी प्रखंड के विभिन्न गांवों में भी धरना हुआ. पीरो, शाहपुर के बेलवानिया, सहार प्रखंड मुख्यालय, गड़हनी प्रखंड कार्यालय व काउप सहित अन्य गांवों, उदवंतनगर, तरारी के गंगटी, उदवंतनगर के छोटकी सासाराम, अगिआंव, कोइलवर, संदेश, बिहिया आदि तमाम प्रखंड मुख्यालयों व गांवों में भी का धरना हुआ.

मोतिहारी में माकपा जिला कार्यालय पर भाकपा-माले व अन्य वाम दलों के नेताओं ने धरना दिया. इसमें माले नेता भैरव दयाल सिंह व विष्णुदेव यादव ने भाग लिया. समस्तीपुर के ताजपुर में भाकपा-माले नेताओं सहित इनौस व किसान सभा के भी नेता धरना में शामिल हुए. उन्होंने उपर्युक्त मांगों के अलावा किसानों की बर्बाद फसलों के मुआवजे की राशि व अन्य मांगों को भी उठाया.

अरवल में अरवल जिला कार्यालय पर माले जिला सचिव महानंद, कलेर में राज्य कमिटी सदस्य जितेन्द्र यादव और करपी में खेग्रामस नेता उपेन्द्र पासवान के नेतृत्व में धरना दिया गया. जहानाबाद में माले जिला कार्यालय पर रामजतन शर्मा, रामबलि सिंह यादव, श्रीनिवास शर्मा आदि नेताओं ने भाग लिया. निघवां में किसान सभा के राज्य सचिव रामाधार सिंह ने धरना दिया. गया में निरंजन कुमार व रीता वर्णवाल ने धरना दिया. नवादा में सावित्री देवी के नेतृत्व में धरना हुआ. नालंदा के सिलाव व अन्य प्रखंड मुख्यालयों पर धरना हुआ.

मुजफ्फरपुर में जिला कार्यालय सहित बोचहां, गायघाट व मुसहरी प्रखंड मुख्यालय सहित गांवों में धरना दिया गया. बेगूसराय पार्टी जिला कार्यालय पर तथा मधुबनी जिला कार्यालय व रहिका प्रखंड मुख्यालय पर धरना हुआ. दरभंगा में जिला कार्यालय सहित बहादुरपुर प्रखंड कार्यालय पर भी धरना हुआ. भागलपुर में मूसलाधर बारिश के बावजूद धरना हुआ. जमुई, कैमूर आदि जिला केंद्रों पर भी धरना हुआ. पूर्णिया, अररिया, सुपौल, गोपालगंज, रोहतास, बक्सर, सारण, वैशाली, औरंगाबाद आदि जिला केंद्रों सहित गांवों में भी धरना दिया गया.


(विज्ञप्ति पर आधारित)


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