केरल के पलक्कड़ ज़िले में एक गर्भवती हथिनी की दुखद मृत्यु को लेकर रिपोर्ट में कुछ ग़लतबयानी को लेकर एनडीटीवी की पत्रकार शैलजा वर्मा ने माफ़ी माँगी है। ट्विटर पर यह माफ़ीनामा उन्होंने छापा है। एनडीटीवी की वेबसाइट के मुताबिक शैलजा ने यह ख़बर संपादित की थी, जबकि ख़बर लिखी थी स्नेहा मैरी कोशी ने।
लेकिन इन पत्रकारों की इस ग़लती ने एक बड़े वर्ग को न सिर्फ़ केरल सरकार पर निशाना साधने का बल्कि सोशल मीडिया पर ज़हर फैलाने का मौक़ा भी दे दिया।
दरअसल, रिपोर्ट में कहा गया था कि यह घटना मल्लापुरम ज़िले की है (जो वास्तव में पलक्कड़ से करीब 80 किलोमीटर दूर है।) दूसरी ग़लती ये थी कि इसमें लिखा था कि किसी ने जानबूझकर विस्फोटक भरा अनन्नास गर्भवती हथिनी को खिला दिया।
बहरहाल, मौका मिल चुका था। हथिनी को हिंदू पहचान से जोड़ने में आईटी सेल के वीरों को देर नहीं लगी। उन्मादी राजनीति के पुरोधा ये बताने में जुट गये कि चूंकि मल्लापुरम मुस्लिम बहुल ज़िला है तो यह सीधे-सीधे हिंदू-मुस्लिम मामला बन गया। कनाडा में बैठे पाकिस्तानी मूल के तारेक फतेह अली अक्सर ऐसे मौक़ों पर काम आते हैं और उन्होंने निराश नहीं किया।
बहरहाल, ज़्यादा दिलचस्प मामला तो मेनका गाँधी का रहा। बीजेपी की सांसद मेनका इस बार तो मोदी कैबिनेट में जगह नहीं पा सकीं लेकिन पिछले कार्यकाल में उनके पास महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय था। लॉकडाउन के दौरान हज़ारों महिलाओं और बालकों की सैकड़ो किलोमीटर भूखे-प्यासे पदयात्रा के करुण दृश्यों पर चुप्पी साधे बैठीं मेनका गाँधी का पशुप्रेम अचानक जाग उठा। मल्लापुरम की ‘विशिष्टता’ और इस बहाने अपने भतीजे राहुल गाँधी को कोसने के लिए वे मैदान में उतर पड़ीं थीं। या कहिये कि न्यूज़ एजेंसी को पता था कि किसका बयान बीजेपी की ज़रुरतों के लिहाज से बेहतर होगा, लिहाज़ा संवाददाता मेनका गाँधी के घर पर था।
#WATCH Forest Secretary should be removed, the minister (for wildlife protection), if he has any sense, should resign. Rahul Gandhi is from that area, why has he not taken action? : Maneka Gandhi on elephant’s death in Malappuram, Kerala after being fed cracker-stuffed pineapple pic.twitter.com/DmRYa6lq36
— ANI (@ANI) June 3, 2020
इस बीच न जाने कितने व्हाट्सऐप संदेश डिजिटिल संसार में प्रवाहित होने लगे जहाँ हथिनी को मां बताते हुए आंसू बहाया जा रहा था। तमाम हिंदू संगठन इस मुद्दे पर कूद कर सामने आ गये। बीजेपी के व्हाट्सऐप ग्रुपों ने इसे आग की तरह फैला दिया। बिलकुल वैसे ही जैसे कभी अमित शाह ने कहा था कि हमारे आईटी योद्धा किसी भी ख़बर को पल भर में देश में फैला सकते हैं, सही हो या ग़लत। इस प्रचार में हथिनी के गर्भवती होने की बात विशेष रूप से दर्ज की गयी थी। गाय के बाद अब हथिनी भी ‘माँ’ हो गयी थी।
दरअसल, केरल सरकार ने जिस तरह से कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी है, उसकी प्रशंसा पूरी दुनिया में हो रही है। केरल की राज्य सरकार के सामने केंद्र की मोदी सरकार इस मामले में पिद्दी साबित हुई है। इसलिए मौका केरल सरकार की प्रतिष्ठा को भी धूसरित करना था। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए भी एक हथिनी मां की हत्या की जिम्मेदार कम्युनिस्ट सरकार अच्छा कथानक था।
बहरहाल, यह जानबूझकर की गयी घटना नहीं थी। जंगली जानवरों से अपनी फसल की रक्षा के लिए पूरे देश में विस्फोटकों का इस्तेमाल होता है। केरल में भी अनन्नास में विस्फोटक भर के किसान खेत की बाड़ के पास रख देते हैं ताकि जानवरों का पैर पड़ने पर विस्फोट हो और वे बिना फ़सल को नुकसान पहुँचाये भाग जायें। यह हथिनी भी अनजाने में ऐसे ही किसी विस्फोटक की चपेट में आ गयी, न कि किसी ने उसे खिलाया। बहरहाल, केरल सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया है और कार्रवाई की बात कर रही है। शैलजा वर्मा ने मुख्यमंत्री पिनयारी विजयन के कई ट्वीट रीट्वीट किये हैं जो यही बताते हैं। ये शायद उनका पश्चाताप है।
लेकिन अफ़सोस, इस देश को सांप्रदायिक दावानल के हवाले करने की फ़िराक़ में रहने वालों को ऐसा कोई पश्चाताप नहीं होगा। वे आपदा को अवसर में बदलने में माहिर हैं। वरना ऐसा किसी हाथी या हथिनी की मौत पर ऐसा शोर कब हुआ है। सच्चाई ये है कि हाथियों के लिए सुरक्षित वनक्षेत्रों में मनुष्यों की कारगुजारी हर साल सैकड़ों हाथियों की बलि लेती है। पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मतुाबिक 2009 से 2017 के बीच 655 हाथियों की मौत हुई थी। करीब 80 हाथी प्रति वर्ष। इसमें जहर की वजह से 44 हाथी मरे थे। शिकारियों की वजह से 101, ट्रेन एक्सीडेंट से 120 और बिजली के तारों की चपेट में आकर 390 हाथियों की मौत हुई थी। बीती 18 फरवरी उड़ीसा विधानसभा में दिये गये एक जवाब के मुताबिक तो राज्य हाथियों का कब्रगाह ही बन गया है। बीते तीन साल में 247 हाथी मारे गये।
हाथीदाँत के शौकीन देश में हाथियों की मौत कभी मुद्दा नहीं रहा जब तक की कम्युनिस्टों की सरकार वाले केरल के एक मुस्लिम बहुल ज़िले में ऐसी घटना के होने का दुष्प्रचार नहीं हुआ। शर्म उनको मगर नहीं आती जिन्होंने सैकड़ों मज़दूरों की मौत पर ज़ंग खा रही ज़बान स हथिनी की मौत के नाम पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने में रिकॉर्ड तोड़ दिया।