2019 का आम चुनाव दुनिया के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे महंगा, CMS की विस्‍फोटक रिपोर्ट

विवेक पाठक
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देश की जनता ने भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट करते हुए 2014 में नरेंद्र मोदी को भारी बहुमत के साथ जनादेश देते वक्‍त यह उम्मीद की थी कि व्यवस्था परिवर्तन होगा और पारदर्शिता बढ़ेगी। 2019 आते-आते ये सारी बातें बेमानी साबित हो गईं। लोकसभा चुनाव 2019 दुनिया के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे महंगा चुनाव साबित हुआ है। इसमें प्रति लोकसभा सीट पर औसतन 100 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, जबकि प्रति वोटर 700 रुपये का खर्च गिरा है।

सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (CMS) की 2019 के चुनावी खर्च पर सोमवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में 55 से 60 हज़ार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इसमें से केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले गठबंधन ने अकेले 45-55 फीसदी खर्च किया है जबकि कांग्रेस गठबंधन ने 15-20 फीसदी खर्च किया है। CMS के मुताबिक पिछले 20 साल में आम चुनाव में होने वाला खर्च छह गुना यानी 9000 करोड़ रुपये से बढ़कर 55000 करोड़ रुपये हो गया है। दिलचस्प बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी, जिसका खर्च 1998 के चुनाव में कुल खर्च का 20 फीसदी हुआ करता था, वो बढ़कर 45-55 फीसदी हो गया।

CMS की इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसमें बताया गया है कि वोटिंग के ऐन पहले किस तरह मतदाताओं को नकद बांटा गया। यह पैसा मतदाताओं को प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर सीट और प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों की प्रोफाइल देखकर बांटा गया। मतदाताओं से बातचीत पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक कुछ सीटों पर 100-500 रुपये, कुछ पर 500-1000 रुपये और कुछ पर हज़ार से ज्यादा प्रति वोट दिए गए।

मतदाताओं को सीधे नकद थमाने के अलावा बड़े पैमाने पर राजनीतिक बिचौलियों का इस काम में सहारा लिया गया। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें कई ऐसे बिचौलिए भी थे जो दूसरे राजनीतिक दलों से संबंधित थे लेकिन पैसे की एवज में काम दूसरी पार्टी के लिए कर रहे थें। बिचौलियों से प्रभावित सीटों की संख्या 100 से 200 बताई जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक 10 से 12 फीसदी मतदाताओं ने माना कि उन्हें सीधे नकद मिला जबकि दो-तिहाई मतदाताओं का कहना था कि उनके इर्द-गिर्द अन्य मतदाताओं को पैसे बांटे गए। इस तरह कुल 12 से 15 हजार करोड़ रुपये सीधे मतदाताओं पर खर्च हुए।

इस चुनाव में आंध्र प्रदेश एक मिसाल के तौर पर सामने आया है जहां लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए, लिहाजा मतदाताओं को अन्य राज्यों के मुकाबले दोनों जगह मतदान के लिए पैसे मिले। रिपोर्ट के मुताबिक टीडीपी ने 10 हज़ार करोड़ रुपये खर्च किए। आरोप यह भी लगे हैं कि जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाइएसआर कांग्रेस को तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की टीआरएस की तरफ से 1000 करोड़ रुपये जबकि भारतीय जनता पार्टी की तरफ से 500 करोड़ रुपये मिले। रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र प्रदेश की हाइ प्रोफाइल 13 सीटों पर 45 से 60 फीसदी मतदाताओं को 500 से 4000 रुपये तक बांटे गए।

इसके अलावा विभिन्न राज्यों में कुछ लोकसभा सीटों पर जरूरत से ज्यादा खर्च हुए। इसमें उत्तर प्रदेश की अमेठी, सहारनपुर, कानपुर आजमगढ़; मध्यप्रदेश की गुना, जबलपुर, भोपाल; महाराष्ट्र की नागपुर, बारामती, नांदेड़; राजस्थान की जोधपुर, जयपुर, धौलपुर सीटें शामिल हैं। इसमें हैरानी की बात नहीं कि ये सीटें हाइ प्रोफाइल सीटें थीं जिन पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सपा के मुखिया अखिलेश यादव, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह व प्रज्ञा, नितिन गडकरी, सुप्रिया सूले और अशोक चव्हाण सरीखे दिग्गज अपनी किस्मत आजमा रहे थे।

मतदाताओं को सीधे नकदी देने के अलावा सरकारी योजनाओं के माध्यम से बड़ी चालाकी से मतदान के ऐन पहले वोटरों के खाते में सीधे पैसे भी ट्रांसफर किए गए। इसमें केंद्र की प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना एक है, जिसके तहत किसानों को 2000 रुपये की तीन किस्तों में सालाना कुल 6000 करोड़ रुपये का वितरण तय है। इस योजना की घोषणा हालांकि मोदी सरकार ने अनुपूरक बजट में ही कर दी थी, जिसकी पहली किस्त (लगभग 2 करोड़ रुपये) किसानों को मार्च में मिली जबकि जिन किसानों का पंजीकरण चुनावी अधिसूचना जारी होने से पहले हो गया था, उन्हें अप्रैल और मई में पहली और दूसरी किस्त दी गई। इसके अलावा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सरकारों ने भी विभिन्न योजनाओं के तहत वोटिंग से पहले मतदाताओं के खाते में पैसे ट्रांसफर किए।

जहां एक तरफ 20 साल में चुनावी खर्च 6 गुना हुआ है, वहीं 2014 के मुकाबले 2019 में चुनावी खर्च दोगुना हुआ है। इस में भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा सबसे बड़ा है। हैरान करने वाली बात यह है कि 2014 में विपक्षी पार्टी रही भारतीय जनता पार्टी ने सत्ताधारी कांग्रेस के मुकाबले 15 फीसदी ज्यादा खर्च किया था। चुनाव सुधार पर काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की नवंबर 2018 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भारतीय जनता पार्टी को कुल चंदे का 95 फीसदी हिस्‍सा मिला था।

17वीं लोकसभा में 88 फीसदी सांसद करोड़पति हैं। ये जनप्रतिनिधि अपनी जनता के लिए उम्मीद की किरण नहीं, धोखा हैं क्योंकि इन्हें चुनाव लड़ाने में पार्टी का तंत्र काम कर रहा होता है। लिहाजा यह मान लिया जाना चाहिए कि अब जनादेश हासिल नहीं किया जा रहा, बल्कि खरीदा जा रहा है। बड़े-बड़े कॉरपोरेट इस जनादेश को खरीदने में राजनीतिक दलों की मदद कर रहे हैं और अगले पांच साल सरकारों से मनमाफिक तरीके से सूद समेत अपना खर्च वसूल रहे हैं।

नीचे देखिए सेंटर फॉर मीडिया स्‍टडीज़ की आज जारी रिपोर्ट

CMS Report_31May2019_final

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