ओलंपिक हॉकी में मिले कांसे पर अपने प्रचार का सुनहरा पानी चढ़ाने के चक्कर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ये भी भूल गये कि महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर पहले से राष्ट्रीय पुरस्कार घोषित है। यही नहीं, मनमोहन सरकार के समय से उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। इसी दिन राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार और ध्यानचंद जीवनगौरव पुरस्कार जैसे सम्मान खिलाड़ियों को दिये जाते रहे हैं।
ध्यानचंद के नाम पर पहले से घोषित राष्ट्रीय पुरस्कार को आधिकारिक रूप से ‘खेलों में जीवनगौरव ध्यानचंद पुरस्कार’ कहा जाता है। जो खिलाड़ी मैदान और मैदान से रिटायर होने के बाद भी खेलों के विकास में बड़ी भूमिका निभाते हैं, उन्हें पाँच लाख रुपये का यह पुरस्कार दिया जाता है। भारत सरकार के खेल एवं युवा मंत्रालय की ओर से 2002 से यह पुरस्कार दिया जाता है और 2017 तक 51 खिलाड़ियों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है।
लेकिन हॉकी ओलंपिक में भारतीय टीम के काँस्य पदक जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद के नाम पर करने का ऐलान कर दिया। सवाल है कि क्या उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि पहले से ही मेजर ध्यानचंद के नाम पर राष्ट्रीय पुरस्कार स्थापित है। अब साल में दो बार ध्यानचंद पुरस्कार का ऐलान होगा तो क्या भ्रम नहीं होगा और क्या ऐसा करना उचित था?
रही बात हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को सम्मान न देने की तो भूलना नहीं चाहिए कि भारत में हर साल, 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। 29 अगस्त मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन है और मनमोहन सरकार के फ़ैसले के तहत 2012 में इस दिन को पहली बार राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया गया था। इस दिन देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाडियों को राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन पुरस्कार, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया जाता रहा है। लेकिन अब राजीव का नाम काटकर मोदी जी ने ध्यानचंद लिख दिया है, यानी इस सूची में ध्यानचंद के नाम पर दो पुरस्कार हो गये।
सोशल मीडिया में पीएम मोदी के इस फ़ैसले पर तीखी प्रतिक्रिया देखी गयी है। पिछले दिनों ही अहमदाबाद स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम और फ़ीरोज़ शाह कोटला स्टेडियम का नाम अरुण जेटली स्टेडियम किया गया है। इसलिए केवल राजीव का नाम हटाने का क्या मतलब है? राजनेताओं के नाम पर सभी खेल स्टेडियम, पुरस्कार, सम्मान आदि का नाम बदला जाना चाहिए। यही क्यों, सभी खेल संघों से राजनेताओं और उनके बेट-बेटियों को बाहर करना चाहिए। उनकी जगह खिलाड़ियों को रखा जाना चाहिए।
वैसे, राजीव गाँधी सिर्फ राजनेता या प्रधानमंत्री भर नहीं थे। वे ऐसे नेता थे जिन्होंने देश के लिए कुर्बानी दी थी। बारूदी गंध से लिपटे इन कपड़ों को देश तो नहीं भूल पायेगा, मोदी जी चाहे भूल गये हों। शहादत के खेल से उनका या उनके दल का इतिहास के किसी दौर में कोई लेना-देना नहीं रहा है।