शेषनारायण सिंह
छुट्टा सांड उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में बहुत नुक्सान कर रहे हैं. सरकार की पशुओं के प्रति नीति इस दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार है . जहां 2014 में मोदी लहर थी ,वहां आज इस एक कारण से केंद्र और राज्य सरकार की निंदा हो रही है . दिल्ली में बैठे जो ज्ञाता जातियों के आधार पर हिसाब किताब लगाकर उत्तर प्रदेश के 2019 के नतीजों का आकलन कर रहे हैं ,उनको कुछ नहीं मालूम.
अजीब बात यह है कि 325 विधायक और 70 के करीब लोकसभा के सदस्य अपने नेताओं को बता नहीं पा रहे हैं कि उनकी पार्टी की हालत इन आवारा पशुओं के कारण कितनी खराब है . मेरे अपने क्षेत्र में हज़ारों की संख्या में ऐसे जानवर घूम रहे हैं जो किसी के नहीं हैं , झुण्ड के झुण्ड के आ जाते हैं और बस कुछ मिनट में फसलों को बेकार करके चले जाते हैं .
कल खबर आई है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़े तामझाम से मेरे क्षेत्र के गजापुर गाँव में 52 बीघे ज़मीन में सरकारी गौशाला बनवाने का काम शुरू किया है . इस गौशाला में कितने जानवर बंद किये जा सकेंगें यह लखनऊ में बैठे अफसरों को नहीं मालूम है. अगर उनको यह उम्मीद है कि इसके बाद आवारा जानवरों की समस्या ख़त्म हो जायेगी तो वे सच्चाई को शुतुरमुर्गी स्टाइल में समझ रहे हैं . इस खबर में यह भी बताया गया है कि जो लोग अपने जानवर छुट्टा छोड़ रहे हैं उनके खिलाफ सरकार कार्रवाई करेगी यानी बीजेपी के कुछ वोटर और नाराज़ किये जायेंगें और उनको पुलिस के वसूली तंत्र का शिकार बनाया जाएगा .
मेरे लिए अभी यह अंदाज़ा लगा पाना असंभव है कि 2019 में बीजेपी का कितना नुकसान होगा लेकिन यह तय है कि बड़ी संख्या में किसान बीजेपी के खिलाफ वोट कर सकते हैं और उनकी जाति कुछ भी हो सकती है . 2014 में बीजेपी के कट्टर समर्थकों से भी बात करके यही समझ में आता है कि नाराज़गी बहुत ज्यादा है . अभी करीब सौ दिन बाकी हैं मतदान शुरू होने में. क्या इतने दिनों में ऐसा कुछ कर पायेंगे कि वोटों में होने वाले निश्चित नुक्सान को कम किया जा सके?
रमा शंकर सिंह
किसी को अच्छा या बुरा लगता रहे, भावनायें आहत होतीं रहे पर यह चाहे आज मान लें या कल कि अगले पाँच दस सालों में गाँवों के वे लोग जो पशुपालक रहे हैं ,सदैव से हैं ,वे संगठित होकर लाठी बल्लम लेकर गोगुंडों का मुक़ाबला करते हुये ट्रकों में भरकर खुद अपने या सबके अनुपत्पादक पशुधन को खुद ले जाकर वहॉं छोड़ देंगे या बेच देंगे जहॉं वैज्ञानिक रीति से उन्हें डिब्बा बंद कर निर्यात कर दिया जायेगा।
अभी वे लोग जो गाँवों की डूबती अर्थव्यवस्था से कतई अनभिज्ञ रहे हैं वे एक्सपर्ट बनकर गोनीति बनाते रहे हैं। बाबा, महंत , संत, शंकराचार्य टाइप लोग कुछ मेहनत कर कमाते तो हैं नहीं, बस दूसरों के पैसे से बकबास करना जानते है। आज यूपी के गाँवों में जायें और गोरक्षा की बात करके देखें। किसान सबसे पहले अपनी फ़सल को बचायेगा जो नज़र हटते ही आवारा पशु नष्ट कर रहे हैं। ज्यादा हिंदुत्व बघारेंगें तो वह भी नहीं बचेगा जो अभी हाथ में है। गॉंव के कारण ही तुम्हारा धर्म अभी तक बचा है। वही हाथ से निकाल दोगे तो ठनठन गोपाल रह जाओगे, जो देश के लिये तो अच्छा ही होगा पर ऐसी ऐतिहासिक चीज़ होगी कि प्रचारकों से ही मूल चीज़ नष्ट हुई। योगी जैसे क्रिमिनल और धर्मांध जीवन भर चढ़ावे पर मौज करते रहे हैं, उनके लिये गाय एक राजनीतिक धार्मिक पशु है, वोट कबाड़ने का आसान ज़रिया, पर बहुत दिनों तक यह रहने वाला नहीं है । अब नौबत यह आ गई कि गो का मुद्दा ही राजनीतिक नहीं रह जायेगा।
दूसरा, मैं पहले ही कह चुका हूँ यदि किसी भी कारण से मंदिर के सवाल पर भी भाजपा चुनाव नहीं जीत सकी तो सदैव के लिये न सिर्फ मंदिर का सवाल बल्कि आपके इस मुद्दे की अपराजेयता पर भी प्रश्नचिन्ह लग जायेगा! क्या ये इसके लिये तैयार है ? ज़ाहिर है कि ऐसा ही है, इन्हें सिर्फ चुनाव से मतलब है। हिंदुओं का सबसे बडा दुश्मन आज हिंदुत्व ही बन गया है।
गांधी को याद करें। गोरक्षा नहीं गोसेवा के पक्षधर थे गांधी। आज भूखे गो परिवार को किन तत्वों ने आवारा भटकने को मजबूर कर दिया है ?
दोनों टिप्पणियाँ फ़ेसबुक से साभार।