13 प्वाइंट रोस्टर पर सुप्रीम फ़ैसले से मीडिया को ‘राहत’, पर बहुजनों का ग़ुस्सा बन न जाए आफ़त!


उच्च शिक्षा संस्थान सामाजिक न्याय की कब्रगाह बन चुके हैं।


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कैंपस Published On :


उच्च शिक्षा संस्थानों में विभागवार 13 प्वाइंट रोस्टर के आधर पर आरक्षण को उचित ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई है। आज शाम चार बजे दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस सेंंट्रल लाइब्रेरी लॉन में इस संबंध में एक मीटिंग होगी जिसमें आगे की रणनीति तय होगी। यह मुद्दा अगले चुनाव पर जोरदार तरीके से असर डालने जा रह है, लेकिन मीडिया बहुजन समाज पर नकारात्मक असर डालने वाले इस फैसले को राहत की तरह पेश कर रहा है जो हैरानी की बात नहीं है। पढ़िए, इस आंदोलन में शुरु से समर्पित लक्ष्मण यादव का लेख- संपादक

लक्ष्मण यादव

सुप्रीम कोर्ट ने 200 प्वाइंट रोस्टर पर MHRD और UGC द्वारा दायर SLP को 22 जनवरी को खारिज कर दिया। इससे यह बात स्पष्ट हो गई है कि 5 मार्च 2018 का लेटर लागू हो गया है और 13 प्वाइंट रोस्टर लागू हो गया है। बस एक नोटिस आने की देर है कि अब 19 जुलाई 2018 का वह लेटर ‘नल-एंड-वाइड’ हो रहा है। अब नियुक्तियाँ 13 प्वाइंट रोस्टर पर शुरू की जाएँ।

मनुवादी रोस्टर लागू होने पर मीडिया का रुख देखने लायक है। वे इसे राहत की तरह पेश कर रहे हैं जबकि इससे बहुजन समाज को ऐसा नुकसान होने जा रहा है जिसकी कोई मिसाल नहीं है। जितनी “राहत” मीडिया में बैठे मनुवादी महसूस कर रहे हैं, उससे कई गुना ज्यादा “राहत” विश्वविद्यालयों में बैठे मनुवादियों को मिली है। अपने स्टाफ रूम से लेकर कैंपस के किसी भी प्रोफेसर से बात कीजिएगा, तो जाति पूछने की ज़रूरत न होगी। रोस्टर पर उसका स्टैंड चीखकर कहेगा कि वह कौन है।

वैसे, मनुवादी मीडिया जिस तरह पूरे मसले को पेश कर रहा है, उससे मुल्क के दलित, पिछड़े, आदिवासी तबके के “सोए” हुए लोगों को जाग ही जाना चाहिए। माना कि हमारी लड़ाई बहुत बड़ी है और हमारे अपने ही लोग सोए और बिखरे हैं, फिर भी हम लड़ेंगे। हम देश भर के विश्वविद्यालयों में ‘ज़िंदा’ लोगों को साथ जोड़ेंगे, लड़ेंगे और जीतेंगे।

उच्च शिक्षा में आरक्षण के नाम पर हुए नाटक का सिलसिला कुछ यूँ बनता है-

1950 में SC-ST को मिला आरक्षण उच्च शिक्षा में औने-पौने तरीके से लागू हो पाया 1997 में।

1993 में OBC को मिला आरक्षण उच्च शिक्षा में, औने-पौने तरीके से लागू हो पाया 2007 में।

आरक्षण लागू न हो सके, इसके लिए दर्जनों कोर्ट केस। फिर भी लागू करना पड़ा तो रोस्टर गलत।

किसी तरह गलत तरीके से 200 प्वाइंट रोस्टर लागू हो सका, लेकिन शॉर्टफॉल बैकलाग खत्म।

5 मार्च 2018 को 200 प्वाइंट रोस्टर हटाकर विभागवार यानी 13 प्वाइंट रोस्टर कोर्ट के ज़रिए लागू हुआ।

सड़क से संसद तक भारी विरोध के चलते 19 जुलाई को नियुक्तियों पर रोक, सरकार द्वारा दो SLP दायर।

सरकार और यूजीसी की SLP पर सुनवाई टलती रही। मीडिया व संसद में मंत्री ने अध्यादेश की बात की।

22 जनवरी 2019 को दोनों SLP ख़ारिज। संसद के आख़िरी सत्र तक कोई अध्यादेश नहीं।

10% सवर्ण आरक्षण चंद घंटों में पास होकर चंद दिनों में ही लागू हो गया।


अब आप समझ गए होंगे कि मैं क्यों कहता हूँ उच्च शिक्षा संस्थान सामाजिक न्याय की कब्रगाह बन चुके हैं।

सरकार अध्यादेश लाने की बात कहकर धोखा दे चुकी है और कोर्ट ने खिलाफ़ फैसला सुना दिया है। लंबे संघर्ष के बाद उच्च शिक्षा में हासिल संवैधानिक आरक्षण कमोबेश खत्म कर दिया गया है। अब एक ही रास्ता बचा है कि हम सब सड़क पर उतरकर पूरी ताक़त से आंदोलन करें जिससे सरकार पर दबाव बने और सरकार अध्यादेश ले आए। वरना उच्च शिक्षा के दरवाजे अब मुल्क की बहुसंख्यक बहुजन आबादी के लिए बंद हो चुके हैं।

Tejashwi Yadav ने रोस्टर मामले पर समर्थन दिया है। मुल्क के बाकी नेताओं को जाने कब चेतना आएगी। हम दिल्ली विश्वविद्यालय में एक बड़ा सामाजिक न्याय सम्मेलन करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें तेजस्वी यादव समेत कई नेताओं के आने की बात चल रही है।

मुल्क के हर विश्वविद्यालय में आंदोलन तेज़ करना होगा। सड़कें जाम करनी होंगी। यही अंतिम मौक़ा है। अभी नहीं तो कभी नहीं।


लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक हैं।.

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