हम सब सब 18 नवम्बर 2018 को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे विद्यार्थियों पर अर्धसैनिक बलों और पुलिस के बर्बर हमले से सन्न हैं. छात्रावास की फीस में बेतहाशा बढ़ोत्तरी किसी भी आवासीय विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए वास्तविक चिंता का विषय है. अत्यंत दुखद बात है कि इन सरोकारों का जवाब विद्यार्थियों, शिक्षकों और पत्रकारों पर पाशविक हमले से दिया गया.
जेएनयू ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता बनाये रखने और नेतृत्व प्रदान करने में इसीलिये सफलता हासिल की क्योंकि इसने सभी विद्यार्थियों को, उनकी समाजार्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना, अध्ययन का खुला मंच प्रदान किया. किसी भी विश्वविद्यालय और उसके चरित्र में विद्यार्थियों का योगदान केवल उनके द्वारा दी गयी फीस से नहीं आंका जाना चाहिए. जेएनयू का विलक्षण शैक्षिक परिवेश उसके विद्यार्थियों की विविधता से बना है जिन्होंने इसके जन्म से ही इसे बनाने में अपना योग दिया है. विद्यार्थियों और अध्यापकों के सरोकारों का गला घोंट देने के लिए प्रशासन ने जो तानाशाही पूर्ण रवैया अपनाया है, उसका मकसद विश्वविद्यालयी शिक्षा के अवसर को तबाह कर देना है.
फीस वृद्धि, शिक्षा के स्ववित्तीकरण और कर्ज आधारित शिक्षा के कारण विचारों की दुनिया पर उन्हीं लोगों का कब्जा हो जाता है जो शिक्षा खरीद सकते हैं. इससे शिक्षा केंद्र व्यापारिक अड्डों में बदल जाएंगे और विचारों की दुनिया शिक्षा जगत और व्यापक सांस्कृतिक माहौल में दरिद्रता व्याप्त हो जाएगी. हम ऐसे निजीकरण के अभियान से चिंतित हैं जिससे सांस्कृतिक भविष्य पर कालिख पुत जाएगी. हम विद्यार्थियों, अध्यापकों और उन अन्य तबकों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करते हैं जो शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के लिए संघर्षरत हैं और शिक्षा पर धन खर्च करने को टैक्स देने वालों के धन का उचित उपयोग मानते हैं.
जे एन यू के विद्यार्थियों को लगी चोटें सरकारी अनुदान से मिलाने वाली शिक्षा पर चोट हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाने, विश्वविद्यालय परिसर में और उसके आस-पास अर्ध सैनिक बलों की मौजूदगी, प्रदर्शनकारियों पर बर्बर हमले तथा सरकार द्वारा निजीकरण के पक्ष में ऊपर से फैसला थोप देने की हम कड़ी निंदा करते हैं.
हम मांग करते हैं:
१: विश्वविद्यालय से जुड़े सभी लोगों की चिंताओं पर विश्वविद्यालय प्रशासन ध्यान दे.
२: शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों, जिनमें एक दृष्टिबाधित विद्यार्थी भी था, पर हमला करने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्यवाही की जाय.
३: कूपमंडूक मीडिया के एक हिस्से द्वारा जे एन यू व उसके विद्यार्थियों की छवि धूमिल करने की कोशिशों पर तत्काल रोक लगाई जाय जो निहित राजनीतिक तत्वों के साथ मिलकर सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को तबाह करने पर आमादा हैं.
४: सरकार सुखद सांस्कृतिक भविष्य के लिए निजीकरण की नीतियों को त्याग कर उसके बदले में शिक्षा पर सरकारी खर्च बढाए.
जारीकर्त्ता:
1. हीरालाल राजस्थानी, दलित लेखक संघ
2. अनुपम सिंह, जन संस्कृति मंच
3. अली जावेद, प्रगतिशील लेखक संघ
4. मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, जनवादी लेखक संघ
5. इंडियन राइटर्स फोरम
6. संजय जोशी, प्रतिरोध का सिनेमा
7. सुभाष गाताडे, न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव
शिक्षा के निजीकरण के अभियान के ख़िलाफ़ जेएनयू आंदोलन के पक्ष में यह बयान इंडियन राइटर्स फोरम, दलित लेखक संघ, न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव, प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच और सिनेमा ऑफ रेसिस्टेंस ने जारी किया है। वे इस बयान में संगठन के बतौर और व्यक्तिगत रूप से भी आपकी सहभागिता चाहते हैं। आप इस लिंक पर जाकर अपना और अपने संगठन का नाम जोड़ सकते हैं। आप साथ आएंगे तो जेएनयू समेत देश भर के छात्रों को ताकत मिलेगी।
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