सरकारी पत्रकारिता संस्‍थान पर वीसी कुठियाला का संघी कुठाराघात

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने 11 फरवरी को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कैलेंडर का विमोचन किया। इस मौके पर कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला भी उपस्थित थे। यह पहला मौका होगा किसी विश्‍वविद्यालय का सरकारी कैलेंडर हिंदूवादी संगठन आरएसएस के मुखिया ने लोकार्पित किया होगा। कैलेंडर की सामग्री भी दिलचस्‍प है जिसका लेना-देना पत्रकारिता या आधुनिक ज्ञान के किसी भी क्षेत्र से कतई नहीं है। बारह पन्‍ने के कैलेंडर में चार वेदों की व्याख्या के साथ उपनिषद्, रामायण, महाभारत और गीता को रेखांकित किया गया है। इसके साथ ही प्राचीन भारत के शिक्षा के चार केंद्र नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला एवं सांदीपनी आश्रम का उल्लेख हैं। कैलेंडर में भारतीय तिथियों को भी दर्शाया गया है। महत्वपूर्ण तीज-त्यौहारों के साथ शासकीय अवकाश की भी जानकारी कैलेंडर में शामिल की गयी है।

इस घटना पर प्रस्‍तुत है वरिष्‍ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की एक फेसबुक टिप्‍पणी:

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय मध्यप्रदेश सरकार का संस्थान है और राजधानी भोपाल में है। संस्थान पत्रकारिता की पढ़ाई कराता है और अपना कैलेंडर छपवाता है। 12 महीने के 12 या छह पेज के कैलेंडर छपाई के लिहाज से महंगे और उपयोग या प्रचार के लिहाज से इतने अनुपयोगी होते हैं कि सरकारी संस्थान ही ऐसे कैलेंडर छपवाते हैं – चाहे केवीआईसी हों या राष्ट्रीयकृत बैंक। निजी और व्यावसायिक कंपनियों के कैलेंडर लगातार कम हो रहे हैं। निजी क्षेत्र की कंपनी में कैलेंडर छपवाने बंटवाने के धंधे में लगे लोगों का कहना है कि जिन्हें कैलेंडर मिलता है वो तो अपना अधिकार मानते हैं और जिन्हें नहीं मिलता है वे नाराजगी पाल लेते हैं। इसलिए, नहीं छपवाना अच्छा रहता है।

इसके बावजूद मध्य प्रदेश सरकार का पत्रकारिता विश्वविद्यालय ना सिर्फ कैलेंडर छपवाता है, उसका विमोचन भी होता और उसमें राजनीति इतनी कि सरसंघचालक विमोचन करते हैं। मध्य प्रदेश सरकार के संस्थान में भाजपा समर्थक या समर्थित लोग रहें तो कोई बड़ी बात नहीं है। उसपर मैं ध्यान भी नहीं देता। लेकिन कोई पत्रकारिता संस्थान आज के जमाने में कैलेंडर छपवाए और उसका बाकायदा विमोचन हो (लगभग 40 दिन निकलने के बाद) तो संस्थान के बारे में बात करने के लिए क्या बचा है। खासकर तब जब संस्थान का मुख्य उद्देश्य देश में मास मीडिया के क्षेत्र में बेहतर शिक्षण और प्रशिक्षण देना हो। अगर वाकई ऐसा है तो पत्रकारिता संस्थानों को राजनीतिज्ञों से दूर या अलग नहीं रखा जाना चाहिए?

इसके बावजूद अच्छी नौकरी है, वेतन किसी ना किसी को दिया ही जाना है तो वह सरकार समर्थक हो, संबंधित मंत्री का करीबी हो तो यह 67 साल से चला आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसका चाहे जितना विरोध करें अपनी पार्टी के लोगों को इससे रोक नहीं ही पाए। ऐसे में लगभग लुकछिप कर (या बगैर शोर शराबे के) जो चल रहा है उसे नजरअंदाज किया जा सकता है। पर पत्रकारिता संस्थान का कैलेंडर, उसका भी लोकार्पण, वह भी 40 दिन बाद और सरसंघचालक से कराना, बेशर्मी नहीं तो और क्या है। अव्वल तो विमोचन की जरूरत ही नहीं थी लेकिन वो कहते हैं ना, फोटो ऑपरचुनिटी या न्यूज वैल्यू – भाजपाइयों और संघियों के लिए यही मौका था अपना काम दिखाने का प्रचार पाने का। सो क्यों चूकते।

मैं सिर्फ बेशर्मी की बात कर रहा हूं। विमोचन से क्या होना था, किसी और से करा लेते। बिना विमोचन ही कैलेंडर बांट देते। कुलपति खुद कर देते, किसी मंत्री से करा देते पर नहीं – नंगई करेंगे। कोई क्या बिगाड़ लेगा। ऐसे विश्वविद्यालय में लोग अपने बच्चों को पढ़ने भेजेंगे। निष्पक्ष पत्रकार बनाएंगे। भविष्य में इनसे निष्पक्षता की उम्मीद की जाएगी। यह है भाजपा शासन या भाजपा की लोकप्रियता का सार संक्षेप। परिवर्तन लाएंगे।


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