मीडियाविजिल डेस्क
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में जो अधिकतम हो सकता था, होकर गुजर गया। जो हुआ, उसके शुरू होने से घंटे भर पहले शनिवार की शाम भगत सिंह छात्र मोर्चा नाम के संगठन ने अपने फेसबुक पेज पर एक कविता इस टिप्पणी के साथ पोस्ट की: ”आंदोलन अपने अंतिम चरण में है। तब तक एक संबंधित कविता”। यह दिलचस्प टिप्पणी थी जिस पर उसी वक्त हैरत हुई थी कि कैसे आंदोलनकारी ताकतों को पता होता है कि ”आंदोलन अपने अंतिम चरण में है”, लेकिन अंतिम सच तो यही था। परिसर में अवकाश घोषित कर दिया गया है। हॉस्टल कैदखाने बन चुके हैं। लड़कियों को जबरन घर भगाया जा रहा है। शाम तक परिसर को शायद खाली करवा लिया जाए।
आम तौर से बीएचयू में यह परंपरा रही है कि दुर्गापूजा की छुट्टियों में छात्र अपने-अपने घर निकल जाते हैं और छठ बीतने के बाद ही लौटते हैं। यह तकरीबन महीने भर का लंबा गैप होता है जब विश्वविद्यालय परिसर में सन्नाटा पसरा होता है। कल शाम छात्रों पर हुए लाठीचार्ज, हवाई फायरिंग, मारपीट, आंदोलन के दमन और दूसरे पक्ष की ओर से हुई पत्थरबाजी व आगजनी के बाद इतना तो तय हो चुका है कि छात्राओं की मांगें कूड़े के ढेर में डाल दी गई हैं और पूरे मामले को दूसरी दिशा दे दी गई है। एक कुलपति, जो पहले ही घंटे में छात्राओं की मांग पर उनके पास आकर बात कर सकता था और सीसीटीवी कैमरे लगवाने जैसी मामूली मांग को पूरा करने का आश्वासन दे सकता था, उसने मामले को यहां तक बढ़ने दिया।
अब कुलपति की जबान खुली है तो उसने कहा है कि शनिवार रात जो हुआ वह ”राष्ट्रविरोधी तत्वों” का किया-धरा है। यह बेहद चालाक, खतरनाक और धूर्त रणनीति थी जिसके तहत एक शांतिपूर्ण व तकरीबन अराजनीतिक प्रदर्शन को हिंसा तक जानबूझ कर लाया गया और उसके बाद ”राष्ट्रविरोधी” जुमले का सहारा लेकर चालू राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनाने की कोशिश की गई है। कुलपति जीसी त्रिपाठी जाहिर है ऐसा खुद के दम पर नहीं कर रहे। उनके ऊपर वरदहस्त है बनारस के सांसद का और संघ परिवार का, जिसके एक प्रतिनिधि नागेंद्रजी को वे स्थायी रूप से अपनी लटकन बनाए घूमते फिरते हैं और हर शंका समाधान के लिए फोन कर के सलाह लेने उन्हें बुला लेते हैं।
शनिवार रात लाठीचार्ज के बाद बिड़ला हॉस्टल के चौराहे पर जो दृश्य अचानक उभरा, वह स्वयं स्फूर्त नहीं था। मीडियाविजिल के सक्रिय सहयोगी वनांचल एक्सप्रेस के संपादक और पत्रकार शिवदा लगातार परिसर के भीतर मौजूद थे और रात सवा दो बजे तक वे फोन से संदेश भेजते रहे थे। फोन पर सुनी आवाज़ों, उनके भेजे वीडियो और हुई बातचीत के आधार पर आधी रात के घटनाक्रम की जो तस्वीर उभरती है, वह बताती है कि छात्राओं के आंदोलन को ”हाइजैक” करने की पूरी तैयारी थी और इसकी शुरुआत कुलपति आवास से ही हुई जहां छात्राओं और वीसी के बीच वार्ता चल रही थी।
वार्ता के बीच वीसी के कुछ निजी सुरक्षाकर्मियों ने छात्रों पर हाथ उठा दिया जिससे मामला भड़का। पहला सवाल यहीं खड़ा होता है कि आखिर निजी सुरक्षाकर्मियों को छात्रों पर हाथ उठाने का अधिकार किसने दिया? आखिरी वीसी की मौजूदगी में यह कैसे संभव हुआ? क्या त्रिपाठी खुद कोई प्लान बनाकर छात्राओं से मिलने गए थे और क्या इसके बाद जो कुछ हुआ, वह सब भी एक वृहद् योजना का हिस्सा था जिसकी जानकारी वीसी को थी?
कुलपति आवास पर सबसे पहले लाठीचार्ज हुआ। वहां से छात्रों को खदेड़ते हुए बिड़ला की तरफ भेज दिया गया। उधर इसी के समानांतर बीएचयू के सिंहद्वार पर भी लाठीचार्ज हुआ। यह एकदम औचक हुआ, जैसा कि वीडियो में देखा जा सकता है। पत्रकारों को आइकार्ड दिखाने का भी मौका नहीं दिया गया। अमर उजाला के फोटोग्राफर धीरेंद्र को काफी चोटें आईं और टूसर्कल डॉट कॉम के संपादक सिद्धांत मोहन को भी पुलिस की लाठियां पड़ीं। बिलकुल इसी के समानांतर महिला महाविद्यालय के चौराहे पर झड़प चालू हुई जबकि भीतर परिसर में पत्थरबाज़ी और आगज़नी शुरू हो चुकी थी। किसने पत्थर फेंके हॉस्टलों के भीतर से और किसने गाडि़यों में आग लगाई? क्या वे आंदोलनकारी छात्र थे या कोई और?
मौके पर मौजूद वरिष्ठ पत्रकार आवेश तिवारी बताते हैं कि छात्र गुरिल्ला तरीके से हमला कर रहे थे। वे अलग-अलग टोलियों में अलग-अलग जगहों पर छुपे हुए थे। शिवदास बताते हैं कि अस्पताल के पास नरिया गेट की ओर कुछ छात्रों का जमावड़ा था और पुलिस उन्हें देख रही थी लेकिन उन्हें उसने हाथ नहीं लगाया। ठीक ऐसे ही लंका पर जब हज़ारों पुलिसवालों की भीड़ थी, जाने कहां से कुछ लड़कों का हुजूम आया और दो गाडि़यां फूंक कर गायब हो गया। रात दो बजे के आसपास शिवदास से फोन पर बातचीत करते हुए हमें धमाकों की आवाज़ सुनाई दी। उस वक्त वे बिड़ला चौराहे से 200 मीटर पीछे थे जब उन्होंने एक के बाद एक आठ धमाके होने की पुष्टि की। इनके अलावा आंसू गैस के गोले दागे जाने की भी आवाज़ें आ रही थीं।
पुलिस की समूची कार्रवाई डीएम और एसपी सिटि की मौजूदगी में हो रही थी। फिर दो बजे के आसपास कमिश्नर मौके पर पहुंचे और पीएसी की कंपनियां पहुंचीं। विश्वविद्यालय में इनके प्रवेश से तय हो गया था कि अब सिलसिलेवार तरीके से हॉस्टल खाली कराए जाएंगे। भीतर वीसी से पुलिस की वार्ता हुई, उसके बाद बिड़ला चौराहे पर पीएसी की तैनाती हो गई। शिवदास बताते हैं कि गाडि़यों का काफिला इतना लंबा था कि महिला महाविद्यालय से लेकर बिड़ला चौराहे तक गाडि़यां ही गाडि़यां थीं।
अधिकतर पत्रकार तीन बजे तक लौट चुके थे क्योंकि उन्हें परिसर में घुसने से मना कर दिया गया था। तीन बजे के बाद क्या हुआ और क्या नहीं, इसकी प्रामाणिक सूचना किसी के पास नहीं है हालांकि कहा जा रहा है कि हॉस्टल खाली कराने की कार्रवाई को रोक दिया गया था। सुबह से ही छात्राओं को उनके घर भेजे जाने की कवायद शुरू हुई। छात्राओं के साथ थोड़ी मारपीट सुबह भी देखने को मिली।
पत्रकार शिवदास, आवेश तिवारी और सिद्धांत मोहन के सहयोग से
आवरण चित्र साभार rediff.com