देश की राजधानी दिल्ली में प्रतिष्ठित केंद्रीय दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्राएं पिछले 27 फरवरी से अपनी कुछ मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन कर रही हैं. छात्राओं का कहना है कि छात्रावास के अंदर कर्फ्यू टाइमिंग, फीस स्ट्रक्चर सहित तमाम ऐसी समस्याएं हैं जिनको लेकर प्रशासन से कई बार बातचीत करने की कोशिश की गई लेकिन कोई हल नहीं निकला. मजबूरन छात्राओं ने धरना प्रदर्शन का रास्ता अपनाया. अभी भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया है और ना ही उनकी सुध लेने अभी तक कोई आया.
क्या हैं मुख्य मांगें
पिछले आठ दिनों से दिल्ली विश्वविद्यालय के राजीव महिला छात्रावास कॉम्प्लेक्स की छात्राएं छात्रावासों के अंदर कुछ बुनियादी सुविधाओं को लेकर धरने पर हैं. उनकी मांगे निम्न हैं-
1- छात्रावास परिसर के अंदर यूजीसी की गाइडलाइन, सक्षम कमेटी की रिपोर्ट तत्काल प्रभाव से लागू हो.
2- महिला छात्रावासों से कर्फ्यू टाइमिंग हटाई जाए.
3- सुरक्षा के नाम पर लड़कियों की मॉनिटरिंग और उनपर प्रतिबंध लगाने बंद किए जाएं.
4- छात्रावासों में SC/ST/OBC/PWD आरक्षण को पूरी तरह से लागू किया जाए.
5- छात्रावास आवंटन के समय इंटरव्यू की व्यवस्था खत्म की जाए जिसमें लड़कियों की मॉरल पोलिसिंग होती है.
6- छात्रावासों में स्वास्थ्य सुविधा का समुचित प्रबंध किया जाए.
7- छात्रावास का आवंटन पूरे अकादमिक सत्र के लिए किया जाए और छुट्टियों में छात्रावास खाली न कराया जाए.
8- छात्रावासों के प्रोवोस्ट और वार्डेन का चुनाव पारदर्शी हो.
9- छात्रावासों का फीस स्ट्रक्चर पारदर्शी बनाया जाए.
अमीषा नंदा, लॉ फर्स्ट ईयर जो कि अंबेडकर- गांगुली छात्रावास में रहती हैं, उनका कहना है कि ये पहली बार हुआ है कि पांच गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों ने मिलकर अपनी मांगों के लिए एक साथ लड़ाई शुरू की है.अगर हमारी मांगों को ध्यान से देखा जाए तो उसके केंद्र में महिलाओं का शोषण है. किताबों में स्वतंत्रता, समानता और आजादी की बड़ी -बड़ी परिभाषाएं पढ़ने से कुछ नहीं होगा अगर हम उसे जमीन पर नहीं उतारेंगे.
आपको बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय के महिला छात्रावासों का यह कॉम्प्लेक्स मुखर्जी नगर में है जिसके अंदर पांच हॉस्टल हैं. छात्राओं का कहना है कि छात्रावास के अंदर पिछले कई सालों से लड़कियों के ऊपर प्रतिबंध लगाने के लिए अजीबोगरीब नियम कानून बना दिए गए हैं. हॉस्टल में रहने वाली आकांक्षा बताती हैं कि हॉस्टल की प्रोवोस्ट और वार्डेन बहुत हद तक पितृसत्तात्मक सोच से बंधी हुई हैं. लड़कियों के ऊपर व्यक्तिगत छींटाकशी और उनके कपड़ों पर कमेंट्स करना आम है.
मेस के अंदर अगर आप बिना बताए खाना नहीं खाते हैं तो पहली बार सौ रूपए फाइन देना पड़ता है जबकि दूसरी बार ऐसा करने पर पांच सौ रूपए तक फाइन देना पड़ेगा.अगर आपको हॉस्टल लौटने में देर होती है तो एप्लीकेशन के साथ आपको सौ रूपए भी देने होंगे तभी आपकी इंट्री होगी. हम जानना चाहते हैं कि आखिर ये कौन सी गाइडलाइन है जिसमें हर बात पर छात्राओं से पैसे वसूलना लिखा हुआ है. छात्राओं का ये भी कहना है कि वो जब भी अपनी शिकायतें लेकर वार्डेन ता प्रोवोस्ट के पास जाती हैं तो उन्हें यह कह कर वापस कर दिया जाता है कि उनके पास को अथॉरिटी नहीं है. हलांकि जब हमने अंबेडकर- गांगुली छात्रावास की वार्डेन के. रत्नावली से फोन पर बात की तो उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया.
पल्लवी जो कि MA पॉलिटिकल साइंस की छात्रा हैं उनका कहना है कि पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर हॉस्टल अथॉरिटी लगातार छात्राओं को डरा धमका रही है। खुद मुझे व्यक्तिगत नोटिस जारी किया गया है और हॉस्टल प्रेसीडेंट्स को भड़का कर हम लोगों के ऊपर एफ़आईआर करने का दबाव बनाया जा रहा है।ऐसे में सभी छात्रायें डरी हुई हैं जिस वजह से ज़्यादातर खुल कर सामने नहीं आ रही हैं। वर्ना इन नियम क़ानूनों के ख़िलाफ़ पूरे कैम्पस में भरपूर ग़ुस्सा भरा पड़ा है।
छात्राओं का ये भी कहना है कि उनकी लाइब्रेरी को चौबीस घंटे खोला जाए. हॉस्टल की फीस में लड़के और लड़कियों में भेदभाव किया जाता है. लड़कों की फीस लगभग चालीस हजार रूपए और लड़कियों की फीस लगभग एक लाख रूपए तक वसूली जाती है. छात्राओं ने हॉस्टल प्रशासन पर ये आरोप लगाया है कि उनके घरों में लेटर भेजकर और फोन करके डराने-धमकाने की कोशिश की जा रही है. धरने पर बैठी लड़कियों से ये भी कहा जा रहा है कि वे सब पढ़ने- लिखने वाली लड़कियां नहीं हैं. इनका तो काम ही धरना प्रदर्शन करना और कैंपस में अव्यवस्था फैलाना है.
गौरतलब है कि 27 फरवरी से छात्राएं दिन-रात हॉस्टल के मेन गेट के पास सड़क पर खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठी हैं. इस दौरान छात्राएं बारिश में भी खुले आसमान के नीचे बैठने को मजबूर हैं. छात्राओं की सुरक्षा के नाम पर सिर्फ दो पुलिसकर्मी कैंपस में मौजूद रहते हैं. 8 मार्च को भारत सहित पूरी दुनिया में जोर-शोर के साथ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाएगा. बड़े – बड़े स्तंभ लेख, सफलता की कहानियाँ और तमाम प्रेरणा दायक किस्सों से अखबार, पत्रिकाएं, टीवी चैनल भरे पड़े होंगे. सरकार तमाम विज्ञापनों और ट्विटर हैंडल्स पर भर-भर कर बधाई देती नजर आएगी लेकिन छात्राओं की इन मांगों पर विश्वविद्यालय प्रशासन कब सुध लेगा ये देखना बाकि है.