भारत के संविधान का अपराधी है मीडिया! बेंगलुरु में शुरू हुआ जन-अभियान

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वायरस-काल में पत्रकारों को संविधान का अनुच्छेद 51[ए][एच] पढ़ना ज़रूरी है 

 

पूरी दुनिया पर आज कोविड-19 और कोरोना वायरस का साया है. अनिश्चितता और दहशत के इस माहौल में वायरस से ज्यादा मीडिया ने आमजन को  आतंकित कर दिया है. महामारी का साम्प्रदायीकरण किया जा रहा है. एक हिंदी अखबार ने तो कोरोना वायरस के लिए तबलीगी जमात को जिम्मेदार ठहराते हुए, पिछले 15 दिनों में 156 खबरें, 8 सम्पादकीय और 5 कार्टून प्रकाशित कर दिए. अधिकांश इलेक्ट्रोनिक मीडिया साम्प्रदायिकता की आग उगल रहा है. सोशल मीडिया द्वारा आग में घी डाला जा रहा है. ऐसे विषैले माहौल में भी अनेक लोग इस संकट को न सिर्फ सही परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं अपितु मीडिया को चेता भी रहें हैं. 

बैंगलोर स्थित सामाजिक कार्यकर्ताओं, अभिभावकों, वकीलों और शिक्षाविदों  द्वारा ‘ कैम्पेन फॉर एथिकल मीडिया रिपोर्टिंग’ नाम से एक अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान का मुख्य उद्देश्य मीडिया को पत्रकारिकता के उच्चतम मानदंडों, सिद्धांतों और नैतिकता के अनुरूप बनाना है. इस अभियान द्वारा कोरोना वायरस के संकट का मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा साम्प्रदायीकरण करने के खिलाफ एक अपील जारी की गई है. हालांकि यह अपील स्थानीय कन्नड़ और अंग्रेजी मीडिया को संबोधित है, पर कमोवेश न सिर्फ कर्नाटक में अपितु पूरे देश में मीडिया का यही हाल है.

इस अपील के माध्यम से मीडिया को संविधान के अनुच्छेद 51 [ए][एच] के पुनर्पाठ का सुझाव दिया गया है. 

अनुच्छेद 51 [ए][एच] के अनुसार हर भारतीय नागरिक का मौलिक कर्तव्य है कि वह मानववाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा ज्ञानार्जन एवं सुधार की भावना का विकास करे.

नागरिक समाज की इस अपील हर मीडियाकर्मी को गौर करना चाहिए –

 ‘कोविड-19 जैसी महामारी से निपटने के लिए, समस्त वैश्विक संसाधनों को जोड़ कर, परस्पर सहयोग की भावना के साथ जुटने की आवश्यकता है, यह वायरस राष्ट्रीयता, जातीयता अथवा धर्म की सीमाओं को नहीं पहचानता. भारतीय मीडिया शायद इस मूल वैज्ञानिक तथ्य को भूल रहा है कि हर वायरस की तरह इस वायरस का भी कोई धर्म नहीं है.’ 

‘13-14 मार्च को दिल्ली में तबलीगी जमात द्वारा आयोजित सभा के बाद कोविड-19 के मामलों में आई वृद्धि के बाद भारतीय मीडिया की अत्यन्त परेशान करने वाली प्रवृति सामने आई. दुर्भाग्य से अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषायी मीडिया ने इसे साम्प्रदायिक रंग दे दिया.’

‘मीडिया के कुछ वर्गों ने इस वायरस के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय को ‘करोना-अपराधी’ और ‘करोना-जिहादी ’ घोषित कर उसके ही मत्थे सारा दोष मढना शुरू कर दिया. टी.वी. एंकरों और राजनेताओं द्वारा आधारहीन आरोप लगाये जाने लगे कि लॉकडाउन को असफल बनाने के लिए वायरस को जानबूझकर फैलाया जा रहा है. इस तरह की रिपोर्टिंग ने महामारी को एक खतरनाक साम्प्रदायिक रंग दे दिया है.’

‘यह सच है कि इस प्रकार के संदेशों को क्षेत्रीय भाषा के इलेक्ट्रोनिक मीडिया के साथ-साथ कुछ अंग्रेजी मीडिया चैनलों ने भी बार-बार दोहराया है. पहले से ही वायरस के खौफ से आतंकित, भयभीत और भ्रमित जनता के बीच, इन चैनलों के माध्यम से इस प्रकार के सन्देश प्रसारित किये जा रहे हैं जैसे कि इस वायरस का भी कोई विशेष धर्म है और इसे भारत के खिलाफ़ किसी युद्ध-सामग्री के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.’

‘मीडिया की नैतिकता जैसे मुद्दे पहले ही बहुत पीछे छूट चुके हैं. ऐसी रिपोर्टिंग के बाद सोशल मीडिया भी आग में घी का काम करने लगता है. सोशल मीडिया पर मुस्लिम समुदाय के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार के सन्देश वायरल हो रहे हैं. परिणाम स्वरुप, ठेले वाले, ढाबा-मालिक और अन्य कई किस्म के रोज़गारों में लगे मुसलमानों की रोज़ी-रोटी छिन रही है.’

‘आपसी सामाजिक एकजुटता तार- तार हो रही है. इस संकट की घडी में राहत के काम में जुटे मुस्लिम कार्यकर्ताओं को काम करने से रोका जाने लगा है. प्रचारित किया जा रहा है कि उनकी सामाजिक उपस्थिति से वायरस के प्रसार का खतरा बढ़ सकता है. इस प्रकार के बहिष्कार का परिणाम यह हुआ कि बंगलुरु के दशरल्ली इलाके में एक हिन्दू दक्षिणपंथी संगठन ने स्वराज अभियान के एक कार्यकर्ता ज़रीन ताज के परिवार के चार सदस्यों पर क्रिकेट के बल्लों से, उस समय हमला कर दिया जब वे लॉकडाउन के दौरान ज़रूरतमंदों के बीच राहत-सामग्री बाँट रहे थे. इस हमले से चारों बुरी तरह से घायल हो गये.’ 

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायरस के प्रसार को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण करने की आवश्यकता पर बल दिया है. अगर एक समुदाय को वायरस-प्रसारक घोषित कर उनका अपराधीकरण कर दिया जाएगा तो पूरी सम्भावना है कि ऐसे लोग भूमिगत होना शुरू कर दें. हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में 5 अप्रेल को एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली. बताया जा रहा है कि  गाँव वाले उसे लगातार ताने दे रहे थे कि दिल्ली में तबलीगी जमात के जलसे के बाद ही कोरोना फैला है. इस घटना से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि नफरत फैलाने के परिणाम कितने घातक हो सकते हैं.’

‘इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना पत्रकारिता के माध्यम से तथ्यात्मक रिपोर्टिंग, बीमारी और महामारी की वैज्ञानिक समझदारी, जन-स्वास्थ्य, सामाजिक एकजुटता के साथ-साथ स्वास्थ्य के अधिकार की संवैधानिक गारंटी, को नष्ट करने का एक शक्तिशाली नुस्खा तैयार कर दिया गया है.’ 

‘इस प्रकार की रिपोर्टिंग ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51[ए][एच] की भावना को तार-तार कर दिया है. इस अनुच्छेद के अनुसार सभी नागरिकों का ‘मौलिक कर्तव्य’ है कि वे ‘ वैज्ञानिक-दृष्टिकोण’ और ‘मानवतावाद’ विकसित करें. जो टी.वी.एंकर कोविड-19 का सारा दोषारोपण एक विशेष धार्मिक समुदाय पर कर रहें हैं वे इस वायरस के प्रसार सम्बन्धी वैज्ञानिक ज्ञान की अनदेखी कर रहें हैं.’

‘ ‘कोरोना अपराधियों’ को दण्डित करने का आह्वान मानवतावाद पर चोट है. इस वायरस से संक्रमित लोग मरीज़ हैं, अपराधी नहीं. वे सब भी संविधानप्रदत्त स्वास्थ्य के अधिकार की गारंटी के हकदार हैं.’

‘मुस्लिम-समुदाय के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार के पीछे स्वास्थ्य आधारित क्या औचित्य या तर्क है और वह मानवता की किस कसौटी पर खरा उतरता है;  यह दृष्टिकोण आपसी एकजुटता और सामाजिक भाईचारे के लिए भी विघटनकारी और विनाशकारी है.’ 

‘अवैज्ञानिकता और नफरत से भरा यह प्रचार-प्रसार  सरकार द्वारा जारी सन्देश के भी खिलाफ है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने ब्यान जारी किया है कि मुस्लिम समुदाय सहयोग कर रहा है और सबको हिदायत दी जाती है कि कोई भी इसके खिलाफ किसी तरह की बात न करे. एक छोटी सी घटना के लिए पूरे समुदाय के जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि ऐसा करने वालों के विरुद्ध कारवाई की जायेगी.’

‘बैंगलोर पुलिस आयुक्त द्वारा घृणित संदेशों के प्रसार की निंदा करने वाला बयान भी सही दिशा में एक स्वागत-योग्य कदम है.’ 

‘महाराष्ट्र, केरल, आंध्र-प्रदेश और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों ने महामारी का साम्प्रदायीकरण किये जाने की कड़ी निंदा करते हुए सन्देश दिए हैं. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने ‘फर्जी ख़बरों’ और ‘साम्प्रदायिक घृणा’ के वायरस से होने वाली सामाजिक क्षति के बारे में ट्वीट किया है.’ 

‘केरल के मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह वायरस संक्रमित करने से पहले व्यक्ति का धर्म नहीं देखता. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि सब को इस वायरस को साम्प्रदायिक रंग देने से बचना चाहिए. आंध्र-प्रदेश के मुख्यमंत्री का बयान आया है किसी विशेष समुदाय को दोष देना गलत है.’

‘लॉकडाउन की अवधि के दौरान मीडिया को अत्यधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है. यह एक असाधारण स्थिति है. इस अवधि में सभी का सामुदायिक तौर पर मिलना-जुलना संभव नहीं है. सोशल-डिसटेंसिंग के चलते सामाजिक दूरी पहले से ही बन गई है. ऐसी स्थिति में, दूसरे [जाति, धर्म इत्यादि] लोगों के बारे में संदेह, उत्पीडन की आशंका के विचार जंगल की आग की तरह फ़ैल सकते हैं. लॉकडाउन के कारण लगाए गए प्रतिबंधों से लोग हैरान-परेशान हैं. जब मीडिया ही एक समुदाय को लक्ष्य बनाएगा तो निश्चित रूप से वह लक्षित समुदाय को आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक, और मनोवैज्ञानिक संकटों की ओर ही धकेलेगा.’

‘हम जन-प्रतिनिधियों, इलेक्ट्रॉनिक-मीडिया और सोशल-मीडिया कर्मियों से अनुरोध करते हैं कि कृपया इस प्रकार की  पूर्वाग्रहपूर्ण रिपोर्टिंग न करें और कोरोना पाजिटिव मरीजों पर दोषारोपण बंद करें. इस तरह की रिपोर्टिंग से आप कोरोना के खिलाफ लड़ाई को कमज़ोर ही कर रहें हैं.  कोविड-19 से निर्णायक लड़ाई लड़ने के लिए आज समाज को आपसी भाईचारे की सबसे ज्यादा ज़रुरत है.’

‘हम चाहते हैं कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया के हमारे मित्र, वैज्ञानिक चेतना, मानवतावाद, और सामाजिक एकजुटता की भावना विकसित करने में मदद करें. कोविड-19 के संकट से जागरूक नागरिकों, जिम्मेदार मीडिया और उत्तरदायी सरकारों के सामूहिक प्रयासों के माध्यम से ही पार पाया जा सकता है. देश की आबादी के किसी खास हिस्से को कलंकित कर सारा दोष उस पर डाल देने का दृष्टिकोण और प्रयास  कोविड-19 के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई से भटकाकर पूरे देश को खतरे में डाल देगा.’    


इंडियन जर्नलिज़्म रिव्यूु से साभार।

अनुवाद- कुमार मुकेश 


 


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