भाजपा की मजबूरी है, सहयोगी ज़रुरी है
भारत की केंद्रीय सत्ता पर छह सालो से काबिज भारतीय जनता पार्टी को भलीभांति पता है कि उसके लिए इसी बरस नवम्बर तक सम्भावित बिहार विधान सभा चुनाव अपने बूते पर जीतना बिल्कुल संभव नहीं है.यही कारण है कि उसने आगामी चुनाव मे मौजूदा मुख्यमंत्री एवम जनता दल-यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार को ही अपना चेहरा घोषित कर रखा है.
भाजपा के चुनावी गठबंधन, नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस
(एनडीए) के बिहार में विस्तार की अन्तर्निहित सीमाएं हैं। इसमें लम्बे अर्से से कोई नया बड़ा दल शामिल नहीं हुआ है। यही कारण है कि भाजपा की चुनावी रणनीति एनडीए को बिखरने से बचाने की है। इसका स्पष्ट प्रमाण लोकसभा चुनाव-2019 में तब मिला था जब भाजपा ने चुनावी ‘मौसम विज्ञानी’ कहे जाने वाले केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की राजनीतिक सौदेबाजी के सामने बड़ी तेजी घुटने टेक दिये। तब भाजपा, बिहार की 40 में से 22 लोकसभा सीटों पर काबिज थी। भाजपा ने आम चुनाव-2019 के लिए खुद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल-यूनाइटेड के लिए 17-17 तथा एलजेपी के वास्ते शेष छह सीटें छोड़ने की घोषणा कर दी। एलजेपी ने एनडीए में बने रहने के लिए उसकी शर्तै पूरी करने के वास्ते भाजपा को अल्टीमेटम दिया था। भाजपा ने अल्टीमेटम की अवधि पूरी होने से पहले ही उसकी शर्तों के अनुरूप एलजेपी को लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में से 6 सीटें आवंटित करने के साथ ही असम से अपने ‘कोटा‘ की एक राज्यसभा सीट देने की भी सार्वजनिक घोषणा कर दी।
चिराग पासवान
कई राजनीतिक टीकाकारों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि भाजपा ने आम चुनाव की घोषणा से पहले ही ऐसा क्यों किया। ख़ास कर तब जबकि एलजेपी नेता चिराग पासवान ने राफ़ेल युद्धक विमान खरीद मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच की विपक्षी माँग का समर्थन करके मोदी सरकार को परेशान कर दिया था। एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में चिराग पासवान ने कहा था कि अगर कहीं गड़बड़ नहीं हुई तो जेपीसी जाँच में बुराई क्या है। उन्होंने नोटबंदी के औचित्य को लेकर भी सवाल उठाए। वह पासवान सीनियर के पुत्र हैं और एलजेपी संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं। एलजीपी की चुनावी दिशा, चिराग पासवान ही तय करते है। उन्हीं के दबाब में 2014 के आम चुनाव से ऐन पहले एलजेपी ,एनडीए में शामिल हुई थी।
भाजपा की चुनावी रणनीति
भाजपा की चुनावी रणनीति ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की है। इसलिए वह सहयोगी दलों के साथ नरम पड़ गई है। वह चाहती है कि सीटों के बंटवारे में ऐसा कुछ न हो कि उसे बिहार की गठबंधन सरकार से फिर बाहर जाना पड़े। उसकी यह स्पष्ट चुनावी रणनीति है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड , विपक्षी महागठबंधन की तरफ न छिटके। जेडी-यू और एलजेपी, एनडीए का ही हिस्सा बन चुनाव लड़ें।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लोकसभा और सभी राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने के “एक राष्ट्र -एक चुनाव” के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं। लेकिन बिहार विधान सभा के नए चुनाव, लोकसभा चुनाव-2019 के साथ नहीं कराये गये.
दरअसल भाजपा, नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध पिछ्ली लोकसभा के मानसून सत्र में पेश अविश्वास प्रस्ताव गिर जाने के बाद से नये लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लग गई थी. स्पष्ट संकेत मिल गये थे कि 17वीं लोकसभा चुनाव निर्धारित समय पर होंगे। यह संकेत खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के जवाब में दिए। उन्होंने तंज में कहा कि विपक्ष को अब अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का अगला मौक़ा 2023 में मिल सकता है.
उपेंद्र कुशवाहा
लोकसभा के 2014 के चुनाव के वक़्त और फिर उसके बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के उपरांत एनडीए में कुल मिलाकर 43 दल शामिल हो गए थे। इनमें से राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) समेत करीब एक दर्जन दल एनडीए से बाहर निकल चुके है। आरएलएसपी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने पांच राज्यों की विधान सभा के चुनावों के परिणामों की घोषणा के एक दिन पहले एनडीए छोड दी. उन्होंने नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भेंट करने के बाद केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया। बाद में वह नई दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कान्फ्रेंस में कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो गए। इसमें यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (यूपीए) अध्यक्ष सोनिया गांधी के निजी सचिव एवं कांग्रेस कोषाध्यक्ष अहमद पटेल के अलावा राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव भी मौजूद थे।
पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव के परिणामों के बाद भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों में अफरातफरी मच गई थी। यह अफरातफरी इन राज्यों – छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश,मिजोरम, तेलंगाना और राजस्थान में ही नहीं अन्यत्र भी थी.चुनाव परिणाम निकलने के एक दिन पहले केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने मंत्री पद और संसद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया. उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी केंद्र में भाजपा के नेत्रित्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) गठबंधन में शामिल थी, जिससे वह बाहर आकर महागठबंधन में शामिल हो गई .
शरद यादव
बिहार से सांसद रहे शरद यादव का नवगठित ‘लोकतांत्रिक जनता दल’ पहले से महागठबंधन में शामिल है। उसके लिए कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में एक-एक सीट छोड़ी थी।
तेजस्वी यादव
पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव राष्ट्रीय जनता दल की बागडोर संभाले हुए हैं। वह राज्य के उस पूर्ववर्ती महागठबंधन सरकार में उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं जिसके मुख्यमंत्री नितीश कुमार थे। तेजस्वी अभी विधान सभा में विपक्ष के नेता हैं। राजद, अभी भी सदन में सबसे बड़ी पार्टी है। तेजस्वी यादव भाजपा विरोधी महागठबंधन की धुरी के रूप में उभरे हैं।
अमित शाह
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार की 11-12 जुलाई 2018 की अपनी बिहार यात्रा के दौरान पटना में कहा था कि नए चुनाव के लिए निर्धारित समय नहीं बढ़ाये जाएंगे। तभी से एनडीए को चुस्त-दुरुस्त करने के प्रयास बढ़ रहे थे। अमित शाह उसी के लिए बिहार गए थे। भाजपा अध्यक्ष ने बिहार यात्रा में मुख्यमंत्री नितीश कुमार के साथ उनके राजकीय आवास पर रात्रि भोजन के दौरान बातचीत पूरी कर ली। फिर उन्होंने ऐलान किया कि दोनों दल आम चुनाव साथ लड़ेंगे। उन्होंने खुल कर नहीं बताया था कि गठबंधन में शामिल दलों में से कौन कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। अलब त्ता, अमित शाह ने जोर देकर कहा था कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का ‘चेहरा‘ हैं।
वह जुलाई 2017 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व में जनता दल-यूनाइटेड और भाजपा की गठबंधन सरकार बनने के बाद पहली बार बिहार गए थे। पिछली बार भाजपा ने 30 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये थे, जिनमें से उसने 22 जीती थी।
बिहार में एलजेपी और आरएलएसपी 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा के संग लड़े थे। एलजीपी 7 सीटों पर चुनाव में उतरी थी. पर एक सीट हार गई। आएलएसपी, तीन सीटों पर चुनाव लड़ी थी. उसने तीनों जीती थी। वह एनडीए के बाकी दलों की रजामंदी के बगैर सबसे ज्यादा सीटें जेडीयू के लिए छोड़ने की पेशकश के खिलाफ थी। आएलएसपी के कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि के अनुसार बिहार के सिर्फ 1.5 प्रतिशत मतदाता नीतीश की पार्टी के साथ हैं।
एनडीए इतिहास
एनडीए, संसद के बाहर सिर्फ बिहार में कायम है. इसका एक लंबा इतिहास है। बिहार से सांसद रहे जॉर्ज फर्नांडीस (अब दिवंगत) और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव, एनडीए के कन्वीनर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव-2014 में जनता दल-यूनाइटेड, एनडीए में शामिल नहीं था. तब उसने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी को एनडीए का दावेदार घोषित करने के विरोध में एनडीए से किनाराकसी कर ली थी। जनता दल -यूनाइटेड ने 2014 का लोकसभा चुनाव एनडीए के संग लड्ने के बजाय अपने दम पर लड़ा था। तब उसने सिर्फ दो सीटें जीती थी। वह मोदी सरकार में शामिल नहीं है.
जनता दल यूनाइटेड ने राज्य विधान सभा का 2015 में हुआ पिछ्ला चुनाव, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बना कर भाजपा के खिलाफ लड़ा था। लेकिन बाद में 2017 में जनता दल यूनाइटेड ने राजद और कांग्रेस की जगह भाजपा को साथ लेकर नई साझा सरकार बना ली। पिछली बार जेडीयू ने बिहार की कुल 40 सीटों में से दो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिए छोड़ 38 पर उम्मीदवार खड़े किये थे। वह सिर्फ दो जीत सकी. भाकपा, कोई भी सीट नहीं जीत सकी थी।
बहरहाल देखना यह है कि बिहार में एनडीए को बचाने के बाद अब भाजपा्, विपक्षी महागठबंधन को आगामी विधान सभा चुनाव में कितनी सीटों पर परास्त करने में कामयाब होती है।
वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा का मंगलवारी साप्ताहिक स्तम्भ ‘चुनाव चर्चा’ लगभग साल भर पहले, लोकसभा चुनाव के बाद स्थगित हो गया था। कुछ हफ़्ते पहले यह फिर शुरू हो गया है। मीडिया हल्कों में सी.पी. के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं। सी.पी. आजकल बिहार में अपने गांव में हैं और बिहार में बढ़ती चुनावी आहट और राजनीतिक सरगर्मियों को हम तक पहुँचाने के लिए उनसे बेहतर कौन हो सकता था- संपादक