माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर घमासान मचा हुआ है। एक ओर कुछ जाति समूहों के प्रभावशाली लोग इस सोशल मीडिया मंच को “जातिवादी” ठहराने के लिए हैशटैग चला रहे हैं, तो दूसरी ओर कुछ प्रगतिशील, उदार और सेकुलर लोग यहां से पलायन कर रहे हैं। इधर बीच तमाम लेखक, पत्रकार और बौद्धिक समुदाय के लोगों ने अब ट्वीट का ठिकाना बदलना शुरू कर दिया है। अब ट्वीट का विकल्प उपलब्ध हो गया है− टूट। इसके समानांतर ट्विटर को “ब्राह्मणवादी” और “नंगा” करार देने का हैशटैग अभियान भी जारी है।
आज से तीन साल पहले शुरू किए गए और कम चर्चित ओपेन सोर्स प्लेटफॉर्म मास्टोडॉन पर कुछ लोग बहुत तेजी से शिफ्ट कर रहे हैं। माना जा रहा है कि पिछले दिनों दो बार सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े का ट्विटर खाता प्रतिबंधित किए जाने का यह असर है। पहली बार हेगड़े का खाता एक ट्वीट के चलते बंद किया गया। दोबारा शुरू हुआ तो एक कविता पोस्ट करने के चलते बंद कर दिया गया। मास्टोडॉन पर खाता खोलने वाले प्रभावशाली ट्विटर यूजर्स का मानना है कि मास्टोडॉन एक सेकुलर और उदार चरित्र का मंच है, ट्विटर की तरह नस्ली नहीं जो नफ़रत भरे पोस्ट को प्रश्रय देता हो।
ट्विटर के नीले निशान में सामाजिक न्याय स्थापित करने के लिए चलाये जा रहे हैशटैग आंदोलन से जुड़े लोग हालांकि वहीं रह कर जातिगत समानता की मांग कर रहे हैं। मास्टोडॉन पर इनके पलायन की खबर नहीं है। बीते हफ्ते भर से चलाया जा रहा यह हैशटैग अभियान दरअसल ट्विटर पर ब्लू टिक दिए जाने की कथित पक्षपातपूर्ण व्यवस्था के विरोध में शुरू हुआ था।
शुरुआती हैशटैग में ट्विटर को ब्राह्मणवादी ठहराते हुए अभियान चलाया गया जिसका तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि ट्विटर ने आंदोलन खड़ा करने वाले पत्रकार दिलीप मंडल को नीला निशान दे डाला। इसके बाद मंडल ने जब यह निशान हटाने को कहा और एक बार फिर नयी मांग लेकर आए कि कम से कम 500 बहुजनों को नीला निशान दिया जाए, तो कंपनी ने आजिज़ आकर यह व्यवस्था ही ठप कर दी। दिलचस्प है कि इसके बाद भी हैशटैग चलाए गए। पहले कंपनी को “जातिवादी” ठहराया गया, फिर “नंगा” ठहराते हुए हैशटैग चलाए गए। इस बीच कई लोगों के निशान गए और आए। इसी बीच कुछ मुसलमानों की ओर से भी ब्लू टिक की मांग करने वाला हैशटैग चलाया गया। इस बीच भीम आर्मी के कुछ लोगों ने ट्विटर के दफ्तर पर धावा बोल दिया और बाकायदे वार्ता के दौर चले।
नस्लवाद के आरोप ट्विटर पर बहुत पहले से लगते रहे हैं। गौर से देखें तो इधर भारत में लगाए गए जातिवाद के आरोप और पश्चिम में लगाए गए नस्लवाद के आरोप एक ही सिक्के के दो पहलू हैं हालांकि दोनों में एक बुनियादी फ़र्क है। इन आरोपों के केंद्र में ट्विटर पर ब्लू टिक देने की व्यवस्था रही है जिसे पाकर यूजर खुद को महत्वपूर्ण समझने लगता है क्योंकि कंपनी उसे वेरिफाइड खाते का नाम देती है।
भारत में ब्लू टिक हासिल करने का बाकायदे एक जाति समूह के वर्चस्वशाली लोगों द्वारा आंदोलन चलाया गया, हालांकि पश्चिम का इतिहास इससे अलग है। ट्विटर ने 2017 में नीले निशान की व्यवस्था को इसी तरह के एक विवाद के बाद समाप्त कर दिया था। यह अस्थायी तौर से किया गया था। दरअसल, उस वक्त एक श्वेत वर्चस्वशाली नेता जेसन केस्लर को दिए गए ब्लूटिक के बाद कंपनी की जिस पैमाने पर अमेरिका में आलोचना हुई, उसने उसे यह व्यवस्था बंद करने को बाध्य कर दिया था। इस बार भारत से आए विरोध के चलते यह हुआ है।
There’s been a lot of discussion this week about Twitter's perceived bias in India. To be clear, whether it's the development of policies, product features, or enforcement of our Rules, we are impartial and do not take action based upon any ideology or political viewpoint.
— X India (@XCorpIndia) November 7, 2019
इस विवाद और संतोष हेगड़े का अकाउंट बंद करने को लेकर उठे विरोध, दोनों का असर अलग−अलग रहा है। अव्वल तो ट्विटर ने ब्लू टिक ही बंद कर दिया, दूसरे उसने एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए आरोपों का सिरे से खंडन किया। इसके बाद से मास्टोडॉन की ओर सेकुलर और लिबरल लोगों का पलायन शुरू हुआ।
मास्टोडॉन चूंकि ओपेन सोर्स नेटवर्क है, लिहाजा यहां किसी एक के हाथ में कमान नहीं है। यहां यूजर खुद अपना सर्वर बनाता और चलाता है। यह विकेंद्रीकृत सोर्स है। इससे होता यह है कि जो सोशल नेटवर्क कायम होता है, वह कई सर्वरों से मिलकर बना होता है और हर एक के अपने नियम होते हैं। ट्विटर के पास 30 करोड़ यूजर हैं जबकि मास्टोडॉन के पास सभी कुल 22 लाख के आसपास यूजर हैं।