रेल हादसा- पैदल, महाराष्ट्र से मध्य प्रदेश जा रहे, 16 प्रवासी श्रमिकों की मौत..सवाल किससे करना है?

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
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प्रवासी मज़दूरों के अपने घर वापस पहुंचने की जद्दोजहद में सिर्फ उनके पैदल चलते जाने, भूख से बेहाल होने और रास्ते में दम तोड़ देने की कहानियां जैसे कम थी – शनिवार की सुबह एक और त्रासद हादसा इस में जुड़ गया है। टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज़ चल कर शांत होने लगी है और औरंगाबाद में उन रेल पटरियों के पास मौत का सन्नाटा पसरा है, जहां ये हादसा हुआ है। आपके टीवी स्क्रीन्स पर विदेश से हवाई जहाज़ और जलपोतों में भर कर लाए जा रहे प्रवासी भारतीयों की ख़बरें धीरे-धीरे जगह बनाने लगी होंगी। ख़बर है कि औरंगाबाद में एक मालगाड़ी की चपेट में आने से कम से कम 16 प्रवासी श्रमिकों की मौत हो गई है।

हादसे के बाद रेल ट्रैक पर बिखरा सामान

ये हादसा महाराष्ट्र के औरंगाबाद में गढ़े जलगांव गांव के पास हुआ और इसके शिकार बने हैं 16 प्रवासी मज़दूर। देश के तमाम प्रवासी श्रमिकों की ही तरह, रेलवे ट्रैक के साथ-साथ सफ़र तय कर रहे ये श्रमिक अंधेरा होने पर थककर ट्रैक के ही पास सो गए। देश भर के तमाम प्रवासी मज़दूरों की ही तरह ही ये 19 मज़दूर भी पैदल ही अपने घर जाने के लिए चल पड़े थे। देश के तमाम प्रवासी कामगारों की ही तरह, जालना की किसी फैक्ट्री में काम करने वाले ये मज़दूर जब बेरोज़गार हो गए और सभी की तरह, उनको घर वापस जाने के सिवा कोई चारा नहीं दिखा – न ही घर वापस पहुंचने का साधन तो वे पैदल ही निकल पड़े। जहां, सुबह 5.30 के आसपास निकली एक खाली मालगाड़ी की चपेट में ये लोग आ गए।

 

बताया जा रहा है कि ये प्रवासी मज़दूर मध्य प्रदेश के निवासी थे और ये किसी तरह पैदल भुसावल पहुंचना चाहते थे। भुसावल से इनको उम्मीद थी कि इनको मध्य प्रदेश जाने के लिए रेल मिल जाएगी। चूंकि हाईवे और सड़क के रास्ते से इनको लॉकडाउन की बंदिशों का और साथ ही पुलिस का सामना करना पड़ता, तो इनमें से ज़्यादातर प्रवासी देशभर में ट्रेन की पटरियों के साथ ही सफर कर रहे हैं। ये सभी लोग, जिनमें बच्चे भी थे – अंधेरा होने पर थक कर रेल की पटरियों के नज़दीक ही सो गए। इनको ये भी यक़ीन रहा होगा कि क्योंकि रेलों का परिचालन बंद है तो शायद कोई ट्रेन पटरी पर नहीं आएगी। लेकिन सुबह साढ़े पांच बजे, इनकी आंख खुलने से पहले ही एक मालगाड़ी उस ट्रैक से गुज़री और बताया जा रहा है कि 19 में से 16 लोगों की जान चली गई है। इनमें कुछ बच्चे भी हैं। 2 लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की भी ख़बर है।

कहां से चले थे मज़दूर , कहां जा रहे थे..

पूरे देश में प्रवासी मज़दूर इसी तरह अपने घर और गांव की ओर वापस लौट रहे हैं। इसके पहले हमने ऐसे ही मज़दूरों के साथ हुए सड़क हादसे की ख़बर भी सुनी थी। सवाल ये है कि आख़िर इस स्थिति को कैसे संभाला जाएगा। ये मज़दूर जालना से जिस भुसावल के लिए निकले थे, वह सड़क पर कार के द्वारा सफर करने पर 157 किलोमीटर की दूरी पर है और कार से वहां पहुंचने में साढ़े 4 घंटे लगते हैं। लेकिन चूंकि ये ट्रेन की पटरियों के सहारे आगे बढ़ रहे थे तो ये सफ़र उससे भी ज़्यादा हो गया था। बताया जा रहा है कि ये 45 किलोमीटर की दूरी तय कर चुके थे। हम सवाल कर सकते हैं कि ये रेल की पटरियों के नज़दीक क्यों सो गए। लेकिन फिर हमको ये भी सवाल करना होगा कि क्या हम कभी 200 किलोमीटर केवल ट्रेन पकड़ने के लिए पैदल चले हैं? अगर नहीं, तो इनको क्यों चलना पड़ रहा है…


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