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आदिवासी सेंगेल अभियान (असा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि असा बंगाल चुनाव में सरना धर्म कोड विरोधी भाजपा का जोरदार विरोध करेगी। चूंकि ये आदिवासियों को जबरन हिन्दू बनाने पर आमादा हैं। अतः असा TMC को सहयोग कर सकती है। ज्ञातव्य हो कि TMC ने सरना धर्म कोड का समर्थन कर दिया है। कैबिनेट में प्रस्ताव भी पारित कर केंद्र को प्रेषित कर दिया है। TMC सांसद पार्लियामेंट में भी इसको उठाने वाले हैं।
सालखन मुर्मू ने बताया कि हम बंगाल में सरना धर्म कोड को लेकर विभिन्न जनसभाओं को सम्बोधित करेंगे, जिसमें 24 फरवरी को हुगली जिला के गुड़ाप में, 25 फरवरी को बिहार के कटिहार में, 26 फरवरी को नार्थ दिनाजपुर के इस्लामपुर में, 27 फरवरी को दक्षिण दिनाजपुर के बालुरघाट और 28 फरवरी को मालदा ज़िला के गाजोल शामिल हैं। वहीं 7 मार्च को गाजोल में करीब एक लाख लोगों की विशाल सरना धर्म कोड जनसभा का आयोजन कर ममता बनर्जी का समर्थन भी किया जा सकता है।
बता दें कि हाल में 19, 20, 21 फरवरी को सालखन मुर्मू ने बंगाल के पश्चिम मेदनीपुर और झाड़ग्राम जिलों में 3 सरना धर्म कोड जनसभाओं को संबोधित किया है। ये इलाके चुनाव को प्रभावित करते हैं।
इसके साथ ही आदिवासी सेंगेल अभियान के अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा है कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा हार्वर्ड के ऑनलाइन कान्फ्रेंस और नीति आयोग की बैठक में पीएम को आदिवासियों के संदर्भ में बताई गई चिंता पर उनकी अभिव्यक्ति बिल्कुल सही हैं व स्वागत योग्य है। सालखन मुर्मू कहते हैं कि हम मानते हैं कि आदिवासियों की दुर्दशा के लिए केंद्र सरकारें बिल्कुल दोषी हैं। जिन्होंने संविधान सम्मत नीतियों और प्रावधानों को अबतक पूर्णत: लागू नहीं किया है। वहीं दूसरी तरफ झामुमो ने भी झारखंड प्रदेश में पांच बार मुख्यमंत्री और हमेशा विरोधी दल के नेता बनने के बावजूद आदिवासी हितों में नीतिगत कोई भी काम नहीं किया है। केवल वोट और सत्ता के लिए बोलना और आदिवासियों को भावनात्मक रूप से छलने का काम किया है।
सालखन कहते हैं कि झामुमो चाहती तो अब तक झारखंड में संविधान सम्मत स्थानीयता और रोजगार नीति लागू हो जाती। हिंदी के साथ संताली झारखंड की प्रथम राजभाषा बन जाती। TAC कार्य करती। सरना धर्म कोड को लटकाने- भटकाने की जगह जोरदार जन आंदोलन कर भाजपा की केंद्र सरकार को मजबूर कर देती। बाकी सीएनटी-एसपीटी कानून को खुद तोड़ने की जगह लागू कर देती। पेसा पंचायत कानून 1996, समता फैसला 2007, वन अधिकार कानून 2006 आदि को खुद लागू कर झारखंडी जन को विस्थापन पलायन आदि से मुक्ति दिला सकती। तिलका मांझी, सिद्धु-कान्हु और बिरसा मुंडा के वंशजों के लिए ट्रस्ट बना सकती। जिनके बलिदानों का प्रतिफल है एसपीटी-सीएनटी कानून।
सालखन मुर्मू ने कहा कि झामुमो आदिवासी समाज को केवल अपनी वोट और सत्ता सुख के लिए उपयोग करती रही है। अन्यथा आदिवासी समाज में व्याप्त नशापान, अंधविश्वास, ईर्ष्या द्वेष, वोट की खरीद-बिक्री (राजनीतिक कुपोषण) और आदिवासी स्वाशासन पद्धति में व्याप्त अव्यवस्था और कुरीतियां आदि को दूर करने का सघन काम कर सकती। जो झामुमो ने अब तक नहीं किया है। खैर हेमंत सोरेन की अभिव्यक्ति से आदिवासी विरोधियों को जलन स्वाभाविक है मगर अभिव्यक्ति को व्यवहार में उतारने की जरूरत ज्यादा है।
विशद कुमार, स्वतंत्र पत्रकार हैं।