कुंभ स्नान से मोक्ष प्राप्ति का विश्वास लिए लाखों श्रद्धालु संगम तट पर पहुँचते हैं। हिंदू धर्म की मान्यता के मुताबिक यह स्नान आवागमन के चक्र से मुक्त करता है। ज़ाहिर है, इसमें तमाम कुविचारों से मुक्ति भी शामिल है। लेकिन जिस अर्धकुंभ को ‘दिव्य कुंभ’ कहा जा रहा है, वहाँ नफ़रत की नदी भी बहाई जा रही है। और यह सब हो रहा है ‘हिंदू जागृति’ के नाम पर।
कुंभ के दौरान पंडालों का एक पुूरा शहर ही बस जाता है। जगह-जगह प्रवचन होते हैं। तरह-तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। लेकिन वहां ऐसे पंडाल भी लगे हैं जहाँ मुसलमानों के खिलाफ़ घृणा का प्रचार किया जा रहा है। हद तो यह है कि मीडिया इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है।
ऐसे ही एक पंडाल में मीडिया विजिल प्रतिनिधि का जाना हूआ। झूँसी की ओर से समुद्रकूप वाले रास्ते से संगम की ओर बढ़िए। शास्त्री पुल से ठीक पहले दाईं तरफ उतरिये। फिर एक बायां घुमाव लीजिए। संगम की रेती पर ‘हिन्दू जन जागृति समिति’ का बड़ा सा कैम्प पड़ेगा।
इस पंडाल के बाहर उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ता मिलेंगे। लेकिन अंदर महाराष्ट्र और कर्नाटक के लोग। अंदर एक चित्र प्रदर्शनी लगी है। इसमें बताया गया है कि हिंदुओं पर मुस्लिम किस-किस प्रकार का अत्याचार करते हैं। उनका अंग-भंग कैसे करते हैं। यह सब आज भी हो रहा है। इसका बदला लिया जाना चाहिए।
ज्यादातर पोस्टर मुस्लिमों को आतंकवादी और वीभत्स रूप में पेश करते हैं। ऐसे वीभत्स चित्र हैं जिन्हें छापा भी नहीं जा सकता। इस पंडाल में पाँच मिनट की एक फ़िल्म दिखाई जाती है जो पूरी तरह बदले की भावना, घृणा और हिंसा को उकसाती है।
पहले परेड ग्राउंड में केवल विश्व हिन्दू परिषद का कैम्प लगता था। वहाँ भी इतने भड़काऊ पोस्टर नहीं लगते थे। इस बार इस तरह के कैम्प संगम नोज से लेकर बघाड़ा तक देखे जा सकते हैं।
यह कुम्भ को हिंसा और घृणा के मेले में तब्दील करने की कोशिश है। हैरानी की बात यह है कि वहाँ राममंदिर को लेकर कोई उत्साह नहीं है। कार्यकर्ता कहते हैं कि एक मंदिर बन जाने से क्या होगा। असली काम मुसलमानों से बदला लेना है।