मीडियाविजिल प्रतिनिधि / कुमाऊँ
कारोबारी कांग्रेसी नेता नवीन जिंदल के भतीजे प्रतीक जिंदल द्वारा उत्तराखड के नानीसार में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय बैक्लॉरेट स्कूल के ज़मीन विवाद के सिलसिले में दो साल पहले उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी की अगुवाई में आंदोलन छेड़ने वाले ग्रामीणों की अदालत में बड़ी जीत हुई है। बीते 18 जुलाई को अलमोड़ा के विशेष न्यायाधीश डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार शर्मा की अदालत ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी, रेखा धस्माना और नानीसार बचाओ आंदोलन से जुड़े पांच ग्रामीणों को अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम और अन्य आरोपों से मुक्त कर दिया। जज ने अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए गवाहों को अविश्वसनीय करार देते हुए कार्यपालक मजिस्ट्रेट और न्यायिक मजिस्ट्रेट की भूमिका पर भी टिप्पणी की।
यह मामला 2016 का है जिसकी उत्तराखण्ड में काफी चर्चा हुई थी और हरीश रावत सरकार की काफी भद्द पिटी थी लेकिन उसके चलते पीसी तिवारी और उनके साथियों को काफी जुल्म झेलना पड़ा था और जेल में कई दिन बिताने पड़े थे। उत्तराखण्ड के रानीखेत-अल्मोड़ा मार्ग पर तकरीबन बीच में स्थित डीडा द्वारसो नाम के एक गांव में प्रतीक जिंदल की हिमांशु एजुकेशनल सोसायटी को हरीश रावत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्कूल बनाने के लिए ज़मीन दी थी। गांव वाले उस ज़मीन के खिलाफ़ आंदोलन कर रहे थे जिसके चलते 23 जनवरी 2016 को हिंसक संघर्ष हुआ और ग्रामीणों समेत आंदोलनकारियों पर जिंदल का फर्जी मुकदमा कायम हुआ। इस स्कूल का उदघाटन खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत और भाजपा के सांसद मनोज तिवारी ने किया था।
जिंदल, जमीन और हरीश रावत के बीच घोटाले का त्रिकोण!
सात हेक्टेयर की ज़मीन पर सोसायटी जो स्कूल बनाने जा रही थी, उसके लिए शासन को सोसायटी ने जो प्रस्ताव दिया उसमें साफ़ दर्ज था कि इस स्कूल में कौन पढ़ सकता है। गांव वालों के गुस्से का एक बड़ा कारण यह प्रस्ताव था, जो छात्रों की सात श्रेणियां गिनाता है- कॉरपोरेट जगत के बच्चे, एनआरआइ बच्चे, उत्तर-पूर्व के बच्चे, माओवाद प्रभावित राज्यों के बच्चे, गैर-अंग्रेज़ी भाषी देशों के बच्चे, भारत में रहने वाले विदेशी समुदायों के बच्चे और वैश्विक एनजीओ द्वारा प्रायोजित बच्चे। स्कूल की सालाना फीस 22 लाख रुपये बताई गई थी। स्कूल वास्तव में कारोबारी खानदान जिंदल का ही था। फर्क इतना था कि यह कांग्रेसी नेता नवीन जिंदल का नहीं, देवी सहाय जिंदल समूह का स्कूल था जो नवीन जिंदल के चाचा थे. सोसायटी के उपाध्यक्ष प्रतीक जिंदल नवीन जिंदल के भतीजे हैं।
नैनीसार की जो सात हेक्टेयर जमीन हिमांशु एजुकेशन सोसायटी को दी गई, उस संबंध में जिलाधिकारी कार्यालय (अल्मोड़ा) द्वारा उपजिलाधिकारी (रानीखेत) को 29 जुलाई 2015 को भेजे गए एक ”आवश्यक” पत्र में तीन बिंदुओं पर संस्तुति मांगी गई थी: 1) प्रस्तावित भूमि के संबंध में संयुक्त निरीक्षण करवाकर स्पष्ट आख्या; 2) ग्राम सभा की खुली बैठक में जनता/ग्राम प्रधान द्वारा प्राप्त अनापत्ति प्रमाण पत्र की सत्यापित प्रति; 3) वन भूमि न होने के संबंध में स्पष्ट आख्या. ज़मीन के बारे में डाली गई आरटीआई के जवाब में गांव वालों को प्रधान द्वारा जारी एनओसी थमा दी गई। 14 अगस्त 2015 को शासन को जो पत्र भेजा गया, उसमें संयुक्त निरीक्षण का परिणाम यह बताया गया कि कुल 7.061 हेक्टेयर प्रस्तावित जमीन वन विभाग के स्वामित्व की नहीं है. उस पर 156 चीड़ के पेड़ लगे हैं लेकिन वे ”वन स्वरूप में नहीं हैं.” आकलन के मुताबिक इस भूमि का नज़राना 4,16,59,900.00 रुपये बनता था और वार्षिक किराया 1196.80 रुपये. जवाब में ग्राम सभा की खुली बैठक का कोई जि़क्र नहीं है.
यह ज़मीन ग्राम सभा की बैठक किए बगैर सोसायटी को दी गई थी। इसके लिए आवेदित आरटीआई के जवाब में गांव वालों को प्रधान द्वारा जारी एनओसी थमा दी गई थी जिस पर न तो तारीख थी और न ही वह सत्यापित प्रति थी। गांव वालों को जब इस बात का पता कि उनके फर्जी दस्तखत के सहारे उनके साथ धोखा हुआ है. तब वे आंदोलन पर उतर गए। अपनी ज़मीन छीने जाने का विरोध करने पर डीडा द्वारसो गांव के 32 लोगों को नामजद करते हुए 382 ग्रामीणों के खिलाफ 22 अक्टूबर 2015 को मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पूरा गांव यहां दोषी बना दिया गया, जबकि गांव वालों की बार-बार दी गई तहरीर के बावजूद एक भी एफआईआर ग्राम प्रधान से लेकर भ्रष्ट अधिकारियों पर दर्ज नहीं हो सकी।
इसी का नतीजा हुआ कि आंदोलन और उग्र हो गया। 23 जनवरी 2016 को आंदोलनकारियों और ग्रामीणों के साथ जिंदल के गुंडों ने हिंसक मारपीट की और उनके ऊपर फर्जी एससी/एसटी केस लगाकर जेल में डलवा दिया। इसी मामले में दो साल बाद अल्मोड़ा की अदालत का फैसला आया है जिसमें न्यायाधीश ने स्पष्ट कह दिया कि जिंदल कंपनी ने प्रशासन की मिलीभगत से एससी/एसटी मामले का दुरुपयोग किया है।
पूरा फैसला नीचे पढ़ा जा सकता है:
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