हाईकोर्ट ने महंगाई भत्ता रोकने पर केंद्र और राज्य सरकार से माँगा जवाब

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कोरोना काल में कर्मचारियों के महंगाई भत्ते और मंहगाई राहत रोके जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा है। मंगलवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकारों के वित्त मंत्रालयों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इस मामले में अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी।

हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति जस्टिस जेजे मुनीर की पीठ ने लोकमंच के प्रवक्ता अनिल कुमार और सुरेंद्र राही द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता की और से अधिवक्ता रमेश कुमार ने और राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता एम सी चतुर्वेदी ने बहस की।

याचिकाकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के 24 अप्रैल 2020 के उस आदेश को गैर कानूनी और असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी है, जिसके द्वारा सभी सरकारी कर्मचारियों और पेंशन भोगियों को दिया जाने वाला महंगाई भत्ता और महंगाई राहत के भुगतान पर जनवरी 2020 से जून 20121 तक के लिए रोक लगा दी है।

दरअसल सरकार का कहना है कि कोविड 19 से उत्पन्न वित्तीय संकट के चलते सभी सरकारी कर्मचारियों (शिक्षण संस्थानों, शहरी निकायों ) व पेंशन भोगियों के अनुमान्य महंगाई भत्ते महंगाई राहत की किश्तों का भुगतान नहीं किया जाएगा।

हाईकोर्ट में हुई बहस में कर्मचारियों की ओर से अधिवक्ता रमेश कुमार ने कहा कि मंहगाई भत्ता (डीए) और मंहगाई राहत (डीआर ) के भुगतान को रोकने का अधिकार सरकार को वित्तीय आपात काल लगाकर संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत ही प्राप्त हो सकता है और इस बाबत राष्ट्रपति के द्वारा यह आदेश पारित कराया जा सकता है। बिना वित्तीय आपातकाल लगाये केवल शासनादेश द्वारा मंहगाई भत्ते व मंहगाई राहत पर रोक असंवैधानिक है।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 11 मार्च 2020 को नोटिफिएड डिजास्टर (अधिसूचित आपदा) घोषित किया जा चुका है और वित्तीय संकट का समाधान डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 के प्राविधानों में निहित होना चाहिए, लेकिन इस एक्ट में सरकार को डीए और डीआर पर रोक का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। ऐसे में सरकार द्वारा कर्मचारियों व पेंशनरों के मंहगाई भत्ते और मंहगाई राहत पर रोक का शासनादेश संविधान और कानून के प्रावधानों के विरुद्ध है ।

रमेश कुमार ने कोर्ट से कहा कि सरकार के आदेश के द्वारा प्रदेश के 16 लाख से अधिक राज्य कर्मचारियों और लाखों पेंशन भोगियो के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। किसी शासनादेश अथवा राजाज्ञा के द्वारा अथवा प्रशासनिक आदेश से इस प्रकार के आदेश नही जारी किए जा सकते हैं ।

उन्होंने कहा कि योगी सरकार का आदेश कानून के शासन और संवैधानिक व्यवस्था व संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 21 का उल्लंघन भी है।

लोकमोर्चा के संयोजक अजित यादव ने कहा कि चौथे वेतन आयोग की रिपोर्ट में मंहगाई भत्ते पर अलग से चैप्टर दिया गया है। संविधान में भी वेतन के साथ भत्तों का भी जिक्र है। इससे समझा जा सकता है कि संविधान निर्माताओं ने वेतन के साथ भत्तों को महत्वपूर्ण माना था। बिना आर्थिक आपातकाल लगाए सरकार मंहगाई भत्ते को नहीं रोक सकती। कोरोना महामारी के संकट के समय में जबकि ज्यादातर कर्मचारी कोरोना वॉरियर की भूमिका में जीवन का रिस्क लेकर जनता के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे समय में कर्मचारियों व उनके परिजनों को आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है। पेंशन भोगियों के पास तो आय का कोई और जरिया भी नहीं है। सभी साठ वर्ष से अधिक उम्र के हैं जो हाई रिस्क के दायरे में आते हैं।

शिक्षक कर्मचारी नेता ने कहा कि लोकमोर्चा के द्वारा कर्मचारियों-शिक्षकों के हितों के लिए संघर्ष जारी रहेगा, जरूरत हुई तो उच्चन्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता के के राय भी कर्मचारियों की ओर से बहस करेंगे। उन्होंने उम्मीद जाहिर की है कि माननीय उच्चन्यायालय कर्मचारियों शिक्षकों को न्याय देगा और सरकार के शासनादेश को रद्द कर देगा।


 


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