हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियों पर गंभीर सवाल उठाते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियों पर ‘परिवारवाद और जातिवाद’ का आरोप लगाया है. जस्टिस पाण्डेय ने लिखा है कि न्यायपालिका दुर्भाग्यवश वंशवाद व जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त है.यहां न्यायाधीशों के परिवार का सदस्य होना ही अगला न्यायाधीश होना सुनिश्चित करता है.
Collegium fraught with opaqueness, favouritism: Allahabad High Court judge writes scathing letter to PM Narendra Modi @narendramodi @PMOIndia https://t.co/lnGndpv59T
— Bar and Bench (@barandbench) July 2, 2019
जस्टिस रंगनाथ पांडे ने पीएम मोदी को लोकसभा चुनाव में जीत पर बधाई देते हुए खत में लिखा है,’भारतीय संविधान भारत को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र घोषित करता है तथा इसमें सबसे अहम न्यायपालिका (उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय) दुर्भाग्यवश वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त हैं.
जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने लिखा है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों का चयन बंद कमरों में चाय की दावत पर किया जाता है.इन दावतों में जो डिस्कशन होता है. उसमें मुख्य आधार जजों की पैरवी और उनका पसंदीदा होना ही है. जस्टिस पांडेय ने पीएम मोदी को लिखे पत्र में न्यायपालिका की गरिमा फिर से बहाल करने की मांग की है. जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने चिट्ठी में लिखा है, ‘पिछले दिनों माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों का विवाद बंद कमरों से सार्वजनिक होने का प्रकरण हो, हितों के टकराव का विषय हो, अथवा सुनने की बजाय चुनने के अधिकार का विषय हो, न्यायपालिका की गुणवत्ता और अक्षुण्णता लगातार संकट में पड़ने की स्थिति रहती है. आपके स्वयं के प्रकरण में री-ट्रायल का आदेश सभी के लिए अचंभित करने जैसा रहा.’
Allahabad High Court judge Rang Nath Pandey has written a letter to PM Narendra Modi, alleging “nepotism and casteism” in the appointment of judges to High Courts & Supreme Court. pic.twitter.com/hA1PGyeFIg
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) July 3, 2019
जस्टिस पांडेय ने कहा कि 34 साल के सेवाकाल में उन्हें कई बार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को देखने का अवसर मिला. उनका विधिक ज्ञान संतोषजनक नहीं है. जब सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग की स्थापना का प्रयास किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था. जस्टिस पांडेय ने पिछले 20 साल में हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विवाद और अन्य मामलों का हवाला देते हुए नरेंद्र मोदी से अपील की है कि न्यायपालिका की गरिमा को पुर्नस्थापित करने के लिए न्याय संगत कठोर निर्णय लिए जाएं.
जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने आगे लिखा, ‘महोदय क्योंकि मैं स्वयं बेहद साधारण पृष्ठभूमि से अपने परिश्रम और निष्ठा के आधार पर प्रतियोगी परीक्षा में चयनित होकर न्यायाधीश और अब उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त हुआ हूं. अतः आपसे अनुरोध करता हूं कि उपरोक्त विषय को विचार करते हुए आवश्यकता अनुसार न्याय संगत तथा कठोर निर्णय लेकर न्यायपालिका की गरिमा पुनर्स्थापित करने का प्रयास करेंगे. जिससे किसी दिन हम यह सुनकर संतुष्ट होंगे कि एक साधारण पृष्ठभूमि से आया हुआ व्यक्ति अपनी योग्यता परिश्रम और निष्ठा के कारण भारत का मुख्य न्यायाधीश बन पाया.’
बीते वर्ष जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों ने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उनके कामकाज के तरीके पर सवाल उठाए थे. वह स्वतंत्र भारत की एक अभूतपूर्व घटना हुई थी जब 12 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी. इन चारों जजों ने सीजेआई के काम करने के तरीकों पर सवाल उठाए थे. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल रहे चार में से तीन जज-जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस कुरियन जोसफ और जस्टिस मदन लोकुर-रिटायर्ड हो चुके हैं.वहीं, जस्टिस रंजन गोगोई अब सीजेआई बन चुके हैं.
बीते महीने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के मुख्य न्यायाधीशों के एक सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने स्वतंत्रता को न्यायपालिका की आत्मा बताते हुए कहा है कि उसे लोकलुभावन ताकतों के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और संवैधानिक मूल्यों का अनादर किये जाने से इसकी रक्षा की जानी चाहिए. न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर लोकलुभावन ताकतों का मुकाबला करने के लिए न्यायपालिका को और मजबूत करना होगा.