ऐपवा का पीएम को पत्र : लॉकडाउन में महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा पर रोक लगाएं

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
ख़बर Published On :


अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने लॉकडाउन में महिलाओं पर बढ़ती यौन हिंसा पर रोक लगाने और पीएनपीडीटी एक्ट को कमजोर करके भूर्ण निर्धारण परीक्षण पर लगी रोक को जून तक हटा लेने संबंधी फैसले को तत्काल वापस लेने की मांग की है. ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव, महासचिव मीना तिवारी और राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ये मांग की है.

ऐपवा नेताओं ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि यह आश्चर्यजनक है कि सरकार ऐसे फैसले ले रही है जो महिलाओं के साथ भेदभाव को स्थापित करते हैं. अखबारों में हम यह पढ़कर हतप्रभ हैं कि सरकार ने जून महीने तक के लिए पीएनपीडीटी एक्ट के प्रावधानों को ढीला कर दिया है जिसे सीधे शब्दों में कहा जाए तो भ्रूण निर्धारण परीक्षण पर लगी रोक को हटा दिया है. इस निर्णय के पीछे लॉकडाउन के दौर में अल्ट्रासाउंड कराने वाली महिलाओं, डाक्टरों, अस्पतालों, प्राइवेट क्लिनिकों का समय बचाने जैसा हास्यास्पद तर्क दिया गया है. हम तत्काल इस निर्णय को वापस लेने की मांग करते हैं. हम मांग करते हैं कि पीएनपीडीटी एक्ट के प्रावधानों को कड़ाई से लागू रखने का निर्देश स्वास्थ्य मंत्रालय को दिया जाए. ये भी निर्देश दिया जाए कि हर जिला प्रशासन इस पर विशेष निगरानी रखे.

पत्र में कहा गया है कि लॉकडाउन में महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा से बचाव व राहत के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. हम मांग करते हैं कि हर जिले में 24×7 काम करनेवाली हॉटलाइन बनाई जाए और मदद चाहने वाली महिलाओं तक पहुंचने के लिए विशेष टीमें गठित की जाएं. जरूरत हो तो महिला संगठनों के प्रतिनिधियों की मदद भी ली जा सकती है.

ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा है कि कोरोना महामारी को रोकने के लिए 3 मई तक लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा की गई है. हमें उम्मीद थी कि विगत 21 दिनों के लॉकडाउन में महिलाओं को हुई परेशानियों को ध्यान में रख कर उसके समाधान के लिए उचित कदम उठाये जायेंगे. लेकिन, अफसोस कि प्रधानमंत्री के भाषण में ऐसा कुछ नहीं था. वहीं जो गाइडलाइन जारी किए गये हैं उसमें 20 अप्रैल से कुछ सीमित आर्थिक गतिविधि शुरू करने की बात है लेकिन इस गाइडलाइन में भी महिलाओं की अनदेखी की गई है.

मीना तिवारी ने कहा कि विगत 25 दिनों में महिलाओं के भयावह जीवन स्थिति की कई घटनाएं सामने आई हैं. बिहार के जहानाबाद में इलाज और एम्बुलेंस के अभाव में एक मां बेबस होकर अपने बच्चे को मरते हुए देखती रही. बिहार के ही गया जिले में पंजाब से लौटी और क्वारेंनटाईन वार्ड में भर्ती एक टीबी की मरीज महिला का बलात्कार और उसकी मृत्यु (जांच में कोरोना निगेटिव पाई गई) की खबर आई. ‘कोरोना योद्धा’ महिलाओं पर देश भर से हमले की खबर आ रही हैं.

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में ऐपवा नेताओं ने कहा कि 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने वक्तव्य में कहा कि देश में अन्न और दवा की कमी नहीं है फिर लोग भूख से क्यों मर रहे हैं? यहां तक कि आंगनबाड़ी केन्द्रों से जिन बच्चों, गर्भवती और धात्री माताओं को पोषण आहार मिलता था, आधा अप्रैल बीत जाने के बाद भी अधिकांश जगहों पर उन्हें पोषाहार नहीं मिला है. कुछ राज्यों में जैसे बिहार में सरकार ने आहार के बदले लाभार्थियों के खाते में राशि देने की बात की है और आंगनबाड़ी सेविकाओं को इनकी सूची बनाने के लिए इनका खाता, मोबाइल नंबर, आधार नंबर जमा करने के काम में लगाया गया है.

आंगनवाड़ी केन्द्रों से सबसे बदतर हालत में रहने वाली महिलाओं और बच्चों को पोषाहार मिलता है. तब सरकार कैसे उम्मीद कर रही है कि इनके पास ये सारे नंबर मौजूद होंगे? दूसरे, भोजन और पोषाहार की जरूरत तत्काल होती है. तीसरे इन्हें अन्न के बदले सरकारी दर पर राशि मिलेगी और बाजार से इन्हें मंहगा खरीदना पड़ेगा. इसलिए हम मांग करते हैं कि तत्काल पोषाहार का वितरण हो और पहले जितना दिया जाता था उससे दोगुना दिया जाए क्योंकि अभी इनका परिवार इनकी देखभाल के लिए कुछ भी खर्च करने की स्थिति में नहीं है.

ऐपवा ने कहा कि प्रधानमंत्री ने आम लोगों से अपील की है कि वे गरीबों को भोजन दें. बहुत सारे लोग, सामाजिक कार्यकर्ता, संगठन इस काम में पहले से ही लगे हुए हैं. (हालांकि प्रशासन द्वारा अब इन्हें कुछ जगहों पर रोका जा रहा है) लेकिन जरूरी है कि अब सरकार अपना कर्तव्य निभाए. गोदामों में अनाज को सड़ाने के बदले हर गरीब बस्ती में सरकारी सामुदायिक भोजनालय अगले तीन महीने तक के लिए तत्काल शुरू किया जाए और इसे प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊपर रखा जाए. लॉकडाउन के दौर में महिलाओं और बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकारी राशन दुकानों से सैनेटरी पैड और बच्चों के लिए दूध मुफ्त देने का इंतजाम किया जाए.

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा गया है कि ‘कोरोना योद्धाओं’ को सम्मानित करने की बात मजाक सी लगती है जब हम देखते हैं कि आशा, रसोइया और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को सरकार मास्क तक उपलब्ध नहीं करवा रही है. आपका ‘गमछा चैलेंज’ घर में रहने वाले लोगों के लिए तो ठीक है लेकिन कार्यक्षेत्र में जूझ रहे लोगों के लिए कारगर नहीं है. इसी तरह आंगनबाड़ी कर्मियों को आपने कोरोना बचाव के काम में लगा रखा है लेकिन उन्हें बीमा से बाहर रखा है.

हम मांग करते हैं कि आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सफाई कर्मियों को 3 महीने के वेतन के समतुल्य अतिरिक्त राशि या दस हजार रुपए सम्मान राशि के रूप में दिया जाए. आशा समेत सभी स्कीम वर्कर्स का स्वास्थ्य बीमा किया जाए. अन्य योद्धाओं-डाक्टर्स, नर्सेज, पुलिसकर्मियों आदि को उनके पद के अनुसार सम्मान राशि प्रदान की जाए. साथ ही देश में साम्प्रदायिक विभाजनकारी ताकतों और लूटतंत्र पर रोक लगाई जाए.


विज्ञप्ति: मीना तिवारी, महासचिव, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन द्वारा जारी