अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोशिएन (ऐपवा) और उससे संबद्ध स्वयं सहायता समूह संघर्ष समिति के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर देश भर में ‘कर्ज मुक्ति दिवस’ मनाया गया। इस कार्यक्रम में ग्राणीण महिलाओं से साथ-साथ रसोइया, जीविका व अन्य स्वंय सहायता समूहों ने पुरजोर तरीके से हिस्सा लिया। कार्यक्रम के जरिए छोटे कर्जदारों की कर्ज वसूली पर रोक लगाने की मांग की गई।
आज का कार्यक्रम सभी छोटे कर्जों की वसूली पर 31 मार्च 2021 तक रोक लगाने, स्वयं सहायता समूह से जुड़ी सभी महिलाओं के सामूहिक कर्ज माफ करने, एक लाख रुपये तक का निजी कर्ज चाहे वो सरकारी या माइक्रो फायनेंस संस्थानों अथवा निजी बैंकों से लिए गए हों, का लॉकडाउन के दौर की सभी किस्त माफ करने, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को रोजगार और उनके उत्पादों की खरीद सुनिश्चित करने, एक लाख रुपये तक के कर्ज को ब्याज मुक्त बनाने, शिक्षा लोन को ब्याज मुक्त करने, सामूहिक कर्ज के नियमन के लिए राज्य स्तर पर एक ऑथोरिटी बनाने, स्वरोजगार के लिए 10 लाख रुपये तक के कर्ज पर 0-4 प्रतिशत ब्याज दर निर्धारित करने, जिस छोटे कर्ज का ब्याज मूलधन के बराबर या उससे अधिक दे दिया गया हो उस कर्ज को समाप्त करने आदि मांगों के साथ आयोजित किया गया.
उपरोक्त मांगों पर पूरे देश में लाखों महिलाएं मास्क लगाकर,सड़कों पर उतरीं. बिहार, असम, प.बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पुदुचेरी, कर्नाटक, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में गांव, पंचायत,प्रखंड परिसरों में महिलाओं ने धरना प्रदर्शन किया और कर्ज मुक्ति दिवस मनाते हुए नई महाजनी व्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद की.
ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि 15 अगस्त को हम अपनी आजादी को याद करते हैं जिस आजादी को हासिल करने के लिए हर धर्म, समुदाय के लोगों ने शहादत दी थी. हमारे उन पूर्वजों ने उम्मीद की होगी कि आजाद भारत में जमींदारी-महाजनी व्यवस्था से मुक्ति मिलेगी. लेकिन आज 73 वर्षों के बाद हमारी सरकार माइक्रो फायनेंस संस्थानों, प्राइवेट बैंकों की नई महाजनी व्यवस्था को संरक्षण देने में लगी है. जो गरीब और जरूरत मंद महिलाओं को मनमाने सूद दर पर कर्ज देती है और इस महामारी के दौर में भी जबरन वसूल रही है.
मीना तिवारी ने कहा कि 31 अगस्त तक कर्ज या किश्त वसूली पर रिजर्व बैंक के निर्देश को भी नहीं माना. कोई महिला असमर्थता जताए तो कहीं कहा गया कि देह बेचकर दो तो कहीं महिला के घर का फर्नीचर उठा कर ले जाया गया. मीना तिवारी ने कहा कि हमारे लगातार आंदोलन के बाद कुछ जगह पर कर्ज वसूली पर 31अगस्त तक रोक लगी है लेकिन महामारी का दौर जारी है. गरीब परिवारों के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है. ऐसी स्थिति में इस पूरे वित्तीय वर्ष 31 मार्च 2021 तक कर्ज वसूली रोकी जाए.
ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव व राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने कहा कि देश में लाइवलीहुड योजना के तहत चलने वाले स्वयं सहायता समूहों के सामूहिक कर्ज माफ किए जाएं और महिलाओं के रोजगार व उनके उत्पादों की अनिवार्य खरीद सरकार करे.
ऐपवा नेताओं ने कहा कि माइक्रो फायनांस कंपनियों व प्राइवेट बैंकों द्वारा ग्रामीण महिलाओं को दिया जाने वाला कर्ज आज पूरी तरह उनके लिए गले का फंदा बन गया है, जिसके चक्र से महिलायें बाहर ही नहीं निकल पा रही हैं. ब्याज की दर इतनी अधिक है कि कई जगह वह मूलधन के बराबर हो गई है. यह सूदखोरी का नया रूप है. यदि केंद्र की सरकार बड़े काॅरपोरेटों के अरबों का कर्ज माफ कर सकती है और बेल आउट पैकेज दे सकती है तो छोटे कर्जदारों के कर्ज माफ क्यों नहीं किया जा सकता है.
बिहार की राजधानी पटना के साथ आरा, बेगूसराय, अरवल, जहानाबाद, गया, पटना ग्रामीण के विभिन्न केंद्रों, सिवान, दरभंगा, समस्तीपुर, मधुबनी, गया, नालंदा, नवादा, औरंगाबाद, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, जमुई आदि सभी जिलों में प्रदर्शन आयोजित किए गए. पटना में ऐपवा नेता सरोज चैब, शशि यादव, अनीता सिन्हा; गया में रीता वर्णवाल, नवादा में सावित्री देवी, सिवान में मातरी राम व सोहिला गुप्ता, आरा में इंदू सिंह व संगीता सिंह व शोभा मंडल, दरभंगा में शनीचरी देवी और मुजफ्फरपुर में मीरा ठाकुर ने कार्यक्रम का नेतृत्व किया.
पटना के चितकोहरा में महिलाओं के प्रदर्शन को संबोधित करते हुए ऐपवा की बिहार राज्य सचिव शशि यादव ने कहा कि तीन महीने से ऐपवा लगातार इन मांगों को उठा रहा है. रिजर्व बैंक ने निर्देश जारी किया था कि 31 अगस्त तक कर्ज वसूली पर रोक रहेगी, लेकिन इस दौर में भी माइक्रो फायनांस संस्थान और प्राइवेट बैंक कर्ज के किस्त वसूल रहे हैं. हमारे आंदोलन के बाद कुछ जगहों पर ये पीछे हटे हैं. लेकिन, कई जगहों पर अभी भी महिलाओं को धमकाकर जबरन वसूली कर रहे हैं. एक जगह तो असमर्थता जताने पर कहा गया कि शरीर बेच कर जमा करो! कहीं कोई महिला अगर किस्त जमा करने की स्थिति में नहीं है तो उसके घर का सामान उठा कर ले जा रहे हैं. लाॅकडाउन व कोरोना ने ऐसे ही लोगों की कमर तोड़ दी है, ऐसे में महिलायें कहां से किश्त जमा कर पायेंगी. चितकोहरा में उनके अलावा आबिदा खातून व अन्य महिलायें शामिल थीं.
ऐपवा राज्य कार्यालय में आयोजित प्रतिवाद में ऐपवा की बिहार राज्य अध्यक्ष सरोज चैबे ने कहा कि लॉकडाउन अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. छोटे रोजगार, काम-धंधे बंद हैं. लॉकडाउन से पहले महिलाओं ने जो भी कर्ज लिए हैं वो शौक से नहीं मजबूरी में लिए हैं. आज जबकि भोजन का इंतजाम कठिन है तब लोन की किस्त कहां से जमा करें? इसलिए हमारी मांग है कि हम महिलाओं से कर्ज वसूली बंद की जाए. इसमें विभा गुप्ता भी शामिल हुईं.
ऐपवा के देशव्यापी कार्यक्रम के तहत पटना में ऐपवा नेता अनिता सिन्हा, अनुराधा सिंह, राखी मेहता, माले के वरिष्ठ नेता जितेन्द्र कुमार, पूनम देवी, सविता देवी, करूणा, रेणु, सुनीता, मंजू, रीना आदि नेताओं ने प्रखंड विकास पदाधिकारी के समक्ष प्रदर्शन किया और कर्ज माफी से संबंधित अपना आवेदन भी सौंपा.
विज्ञप्ति पर आधारित