सरकार ने खेती के संकट के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया, धनकुबेरों के कर घटाये हैं : AIKSCC

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अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की 24 अगस्त को हुई बैठक में केन्द्र सरकार द्वारा, अर्थव्यवस्था को गहराते संकट से ‘उभारने’ के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों का मूल्यांकन किया गया। जहां वित्त मंत्री ने सुपर अमीर तबकों के कर घटाए हैं, बैंकों में पैसा डाला है, घरों व मोटर वाहनों की खरीद बढ़ाने के लिए पैसे की उपलब्धता बढ़ाई है, जीएसटी के लाभ दिये हैं, उन्होंने खेती के संकट को हल करने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया है।

वर्किंग ग्रुप की राय में सरकार के ये सभी कदम कारपोरेट तथा विदेशी कम्पनियों को मदद देने के लिए उठाए गए हैं। ये कदम इस संकट के मुख्य कारक, यानी अत्यधिक उत्पादन तथा खरीददारों का अभाव, को सम्बोधित नहीं करते। सरकार की विकास करने की दिशा घरेलू व विदेशी कारपोरेटों का निवेश बढ़ाने की है, साथ में उनका अपने संसाघनों व बाजारों पर और अधिक कब्जा कराने की और इस तरह से माल के उत्पादन को और बढ़ाने की है। वे भारतीय बाजारों की घटती खरीद क्षमता को सुधारने की जरूरत पर कोई ध्यान नहीं दे रहे, जो इस संकट का असली कारण है और जो तभी सुधर सकता है जब किसानों और मेहनतकश लोगों की बचत व आमदनी बढ़ाई जाए।

निवेष आधारित विकास इस संकट को न तो हल है, न ही ये संकट को हल करेगा। भारतीय बाजारों के संकट का सबसे बढ़ा कारण है कि देश की जनसंख्या का 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा, भारतीय किसान व खेतिहर मजदूर, या तो कुछ नहीं कमा पाते, या बहुत कम कमा पाते हैं और वे कर्जों में फंसे हैं। संकट का एकमात्र हल है कि किसानों की आमदनी बढ़ाई जाए, ताकि उनकी बढ़ी हुई खरीद क्षमता से घरेलू बाजार और भारतीय उद्योग जीवित हों। निवेश आधारित ‘पुनःप्रवर्तन’ विफलता का नुस्खा है और इससे और अधिक मात्रा में भारत सरकार का धन कारपोरेट के हाथों में कैद हो जाएगा।

सम्पूर्ण कर्ज माफी और कुल लागत, सी2 के डेढ़ गुना न्यनतम समर्थन मूल्य की अपनी दोनों मांगों को, व इनसे संबंधित दोनों कानून पारित कराने की मांगें दोहराते हुए, एआईकेएससीसी के विर्किंग ग्रुप ने सरकार द्वारा ग्रामांचल में बिजली के दाम बढ़ाने, डीजल के दाम बढ़ाने, सरकारी कल्याण योजनाओं पर खर्च घटाने पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है। इन कदमों से किसानों, कृषि क्षेत्र व छोटे उत्पादकों की बरबादी और बढ़ जाएगी।

वर्किंग ग्रुप एआईकेएससीसी ने तय किया है कि वह किसानों की मांग पर उपरोक्त कानून पारित कराने ंके लिए सरकार पर दबाव बनाने हेतु अपना संघर्ष तेज करेगी। जहां आरएसएस-भाजपा सरकार यह दावा करती रही है कि वह 2022 तक किसानों की आमदनी को दो गुना कर देगी, यह स्पष्ट है कि उसका ऐसा कोई इरादा नही है, बल्कि वह खेती को और बरबाद करने तथा किसानों से खेती छुड़वाने पर तुली हुई है।

वर्किंग ग्रुप एआईकेएससीसी ने तय किया है कि वह केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा वनों से आदिवासियों को जबरदस्ती उजाड़ने तथा किसानों से उनकी जमीन छीनने के सभी कदमों का विरोध करेगी और वन अधिकार कानून 2006 को सख्ती से अमल करने की आदिवासियों की मांग का समर्थन करेगी।

एआईकेएससीसी राज्य स्तर पर देशव्यापी अभियान ले रही है और ये समस्याएं यदि हल नहीं हुईं तो वह अपने संघर्ष को और तेज करेगी।


प्रेस विज्ञप्ति : वीएम सिंह , संयोजक, एआईकेएससीसी द्वारा जारी 


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