कोरोना की आड़ में पड़ी ‘निगरानी राज्य’ की नींव, आज़ादी ख़तरे में: फ़्रीडम हाउस


रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी से पहले भी भारत की बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली ‘आधार‘ की सुरक्षा खामियों के कारण डेटा उल्लंघनों से जुड़े कई मामले सामने आए हैं। भारत वर्तमान में एक राष्ट्रव्यापी चेहरा-पहचान कार्यक्रम (फेसियल रिकाॅग्निशन प्रोग्राम) ला रहा है। गोपनीयता के पक्षधर लोगों का कहना है कि इससे दमन और भेदभाव की आशंका है। ‘फ्रीडम हाउस‘ के शोधकर्ताओं के अनुसार अक्टूबर 2019 और जून 2020 की दो रिपोर्टों से पता चला है कि भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ सरकारी स्पाइवेयर तैनात किए गए थे।


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वाशिंगटन स्थित मानवाधिकार संगठन ‘फ्रीडम हाउस‘ की एक रिपोर्ट इन दिनों चर्चा में है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर की विभिन्न सरकारों ने अपने नागरिकों, राजनीतिक विरोधियों और आंदोलनकारियों पर ‘निगरानी‘ के लिए कोविड-19 महामारी का फायदा उठाया है। एड्रियन शाहबाजी और एली फंक की इस रिपोर्ट में भारत के ‘आरोग्य सेतु‘ पर भी विस्तार से लिखा गया है। इस रिपोर्ट में 65 देशों का डेटा शामिल किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान विभिन्न देशों की सरकारें आने वाले समय के लिए ‘निगरानी राज्य‘ की नींव रख रही हैं। नागरिकों के स्मार्टफोन में ऐप इंस्टाल करके काॅन्टेक्ट ट्रेसिंग को स्वचालित करने तथा स्वास्थ्य डेटा लेने के जरिए बायोमेट्रिक और भौगोलिक डेटा एकत्र किया जा रहा है। सरकारी एजेंसियां और प्राइवेट एजेंसियां ऐसे डेटा तक बड़े पैमाने पर पहुंच रही हैं, जबकि इनका रोकने के लिए समुचित सुरक्षा उपाय नहीं है। इस क्रम में पुलिस और प्राइवेट एजेंसियां सार्वजनिक रूप से नागरिकों की निगरानी के लिए उन्नत तकनीकों के उपयोग में तेजी ला रही हैं। इसमें चेहरे की पहचान, थर्मल स्कैनिंग और भविष्य बताने वाले उपकरण शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश देशों ने अभी तक सरकार और प्राइवेट एजेंसियों द्वारा नागरिकों के बायोमेट्रिक डेटा का संभावित दुरूपयोग रोकने संबंधी सार्थक कानून नहीं बनाए हैं। जबकि विगत दो दशकों के तेजी से तकनीकी परिवर्तन ने शासन और वाणिज्यिक गतिविधि के लगभग हर पहलू में ‘निगरानी‘ को लागू कर दिया है। इस तरह खतरनाक मात्रा में जानकारी तैयार की जा सकती है। सरकारों तथा गैर-सरकारी एजेंसियों द्वारा इनका विभिन्न रूप में दुरूपयोग किया जा सकता है।

‘फ्रीडम हाउस‘ की रिपोर्ट के अनुसार इतिहास ने दिखाया है कि संकट या आपातकाल के दौरान सरकारें नई शक्तियाँ हासिल कर लेती हैं। अमेरिका में 11 सितंबर के आतंकवादी हमले के बाद दुनिया भर में कानूनी एजेंसियों के सैन्यीकरण में तेजी लाई। इस दौरान राज्य एजेंसियों ने ‘निगरानी‘ का व्यापक जनादेश प्राप्त कर लिया। इसके कारण कमजोर तबको और हाशिए पर रहने वाली आबादी के खिलाफ संदेह और भेदभाव को बढ़ावा मिला। कोविड-19 महामारी भी ऐसा माहौल बना सकती है। चिंता की बात है कि कई देशों ने महामारी का लाभ उठाकर निगरानी के नए तरीके अपनाए हैं। ऐसा करके नागरिकों के जीवन में और अधिक दखल देने वाले की नई शक्तियां प्राप्त की हैं।

इस रिपोर्ट में शामिल 65 देशों में से 54 देशों में नागरिकों के स्मार्टफोन में ऐप इंस्टाॅल कराए गए हैं। कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग या क्वारंटाइन अनुपालन सुनिश्चित करने के नाम पर ऐसा किया गया है। हालांकि ऐसे ऐप्स का दुरूपयोग करके यह पता लगाना आसान हो सकता है कि उस व्यक्ति ने किसके साथ कितनी देर बातचीत की। ऐसे ऐप का व्यापक पैमाने पर उपयोग होने से नागरिकों की गोपनीयता, व्यक्तिगत सुरक्षा और मानवाधिकारों पर बड़ा जोखिम है।

रिपोर्ट के अनुसार ये स्मार्टफोन प्रोग्राम स्वचालित रूप से संवेदनशील जानकारी इकट्ठा करते हैं। उपयोगकर्ता कहाँ और किसके साथ रहते हैं, उनकी दैनिक दिनचर्या, उनकी आकस्मिक बातचीत इत्यादि रिकाॅर्ड करते हैं। कई ऐप उपयोगकर्ता की पहचान, जनसांख्यिकीय और अन्य डेटा लेकरएक केंद्रीकृत सर्वर पर भेजते हैं। शोधकर्ताओं ने प्रदर्शित किया है कि ये डेटा आसानी से लीक हो सकते हैं। साइबर अपराधियों और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा इनका दुरूपयोग किया जा सकता है। कुछ प्रोग्राम अतिरिक्त निगरानी तकनीक से भी जुड़ते हैं। जैसे, चेहरे की पहचान, इलेक्ट्रॉनिक रिस्टबैंड इत्यादि। इनके जरिए लोगों की गतिविधियों पर अधिक बारीकी से निगरानी संभव है।

रिपोर्ट में भारत के ‘आरोग्यसेतु‘ ऐप को मानवाधिकारों को जोखिम में डालने वाला बताया गया है। ‘फ्रीडम हाउस‘ की रिपोर्ट के आरोग्य सेतु एक क्लोज-सोर्स ऐप है, जिसे पांच करोड़ से अधिक भारतीयों ने डाउनलोड किया है। यह उपयोगकर्ताओं को कोरोना से खतरे का पता लगाने के लिए ब्लूटूथ और जीपीएस ट्रैकिंग से जोड़ता है। साथ ही, उनके संक्रमण के जोखिम की रेटिंग के लिए एक कलर-कोड हेल्थ स्टेटस दिखाता है। इस सरकारी ऐप से एकत्र की गई जानकारी को एक केंद्रीकृत डेटाबेस में संग्रह किया जाता है। वहां इसे स्वास्थ्य संस्थानों और अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ साझा किया जाता है। इस ऐप को डाउनलोड करने में विफल होने वाले व्यक्ति पर आपराधिक आरोप भी लग सकते हैं।

रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में एक अन्य क्लोज-सोर्स ऐप ‘क्वारंटाइन वॉच‘ का उल्लेख किया गया गया है। इसे कर्नाटक राज्य सरकार के साथ साझेदारी में विकसित किया गया है। यह जीपीएस डेटा सहित व्यक्तिगत जानकारी एकत्र करता है। इसमें उपयोगकर्ताओं को अपने भौगोलिक स्थान पर मेटाडेटा के साथ अपनी तस्वीरें भेजनी पड़ती है, ताकि यह साबित हो सके कि वह क्वारंटाइन या अलगाव का अनुपालन कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने मजाक में कहा है कि हर घंटे एक सेल्फी भेजते रहो, तो पुलिस आपसे दूर ही रहेगी।

‘फ्रीडम हाउस‘ की रिपोर्ट ने भारत के संदर्भ में भयावह खतरों की ओर संकेत किया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्तमान में डेटा-सुरक्षा बिल पर विचार कर रहा है, यानी अब तक डेटा सुरक्षा का कोई ठोस तरीका मौजूद नहीं है। भारत में साइबर सुरक्षा के मानक ढीले हैं और नए ऐप द्वारा बनाए गए संवेदनशील कोविड-19 डेटाबेस पहले ही ‘भंग‘ हो चुके हैं। एक प्रमुख दूरसंचार प्रदाता ‘जियो‘ द्वारा विकसित एक लक्षण-जांच ऐप (सिम्पटोम चेकर ऐप) के लाखों व्यक्तिगत रिकॉर्ड एक ऑनलाइन डेटाबेस पर बगैर पासवर्ड दिख गए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी से पहले भी भारत की बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली ‘आधार‘ की सुरक्षा खामियों के कारण डेटा उल्लंघनों से जुड़े कई मामले सामने आए हैं। भारत वर्तमान में एक राष्ट्रव्यापी चेहरा-पहचान कार्यक्रम (फेसियल रिकाॅग्निशन प्रोग्राम) ला रहा है। गोपनीयता के पक्षधर लोगों का कहना है कि इससे दमन और भेदभाव की आशंका है। ‘फ्रीडम हाउस‘ के शोधकर्ताओं के अनुसार अक्टूबर 2019 और जून 2020 की दो रिपोर्टों से पता चला है कि भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ सरकारी स्पाइवेयर तैनात किए गए थे।

मूल रिपोर्ट को आप नीचे के लिंक को क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

Abusive Surveillance in the Name of Public Health


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