चीन के आक्रामक रवैये और बीस जवानों की शहादत के बाद मोदी सरकार सवालों के घेरे में है। लेकिन इस बीच सोशल मीडिया पर आईटी सेल की ओर से ऐसी प्रचार सामग्री ठेली जा रही है जिसमें सरकार पर सवाल उठाने वालों पर निशाना साधा जा रहा है। ऐसे लोगों को राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा है जो संकट के समय सरकार या सेना पर सवाल उठा रहे हैं। टीवी पर आने वाले बीजेपी प्रवक्ताओं का रुख भी कुछ ऐसा ही है।
यह एक तरह से संकट की दुहाई देकर लोकतंत्र को स्थगित करने की माँग है। वरना 1962 के समय बीजेपी के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री यानी नेहरू जी की आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। सेना और उसकी तैयारियों पर भी जमकर सवाल उठाये थे। राज्यसभा की बैठक बुलाने के लिए सरका को मजबूर किया था, लेकिन किसी ने उनसे यह नहीं कहा कि सरकार पर सवाल उठाना देश का विरोध है। उलटा पं.नेहरू ने उनकी राज्यसभा की बैठक बुलाने की मांग मानने में कोई कोताही नहीं की। राज्यसभा में जब वे बोल रहे थे तो किसी ने टोका तक नहीं।
चीन ने भारत पर 20 अक्टूबर 1962 को हमला किया। यह लड़ाई 21 नवंबर तक चली। यानी एक महीने एक दिन। पर चीन की ओर से पहली झड़प तो 5 सितंबर को ही हो गयी थी जो उसके खतरनाक इरादों का पता दे गयी थी। वाजपेयी ने इस बीच सरकार की ओर से तैयारी न करने को बड़ा मुद्दा बनाया।
सीमा पर युद्ध जारी था, लेकिन वाजपेयी सरकार को घेर रहे थे। उन्होंने पं.नेहरू से मुलाकात की और राज्यसभा की बैठक बुलाने की मांग की। नेहरू ने विपक्ष के युवा नेता की इस बात को पूरी तवज्जो दी और 9 नवंबर को राज्यसभा की बैठक बुला ली गयी।
आइये ज़रा उन सवालों पर ग़ौर करें जो वाजपेयी ने अपने भाषण के दौरान उठाये थे। और यह भी याद रखना चाहिए कि सत्ता पक्ष ने उन्हें टोका नहीं। वे अपने खास अंदाज़ में पं.नेहरू और कांग्रेस सरकार को कोसते रहे।
वाजपेयी ने पूछा–
क्या पं.नेहरू को पता था कि सेना अरुणाचल नेफा (अब अरुणाचल) में चीनी हमले का सामना करने के लिए तैयार है?
चीन ने 5 सितंबर और 20 अक्टूबर को हमला किया। भारत ने बीच के इतने दिनों मे तैयारी क्यों नहीं की ?
नेफा पर सरहद की सुरक्षा के लिए पर्याप्त सैनिकों को क्यों नही लगाया गया और जो थे, वे जरूरी हथियारों और अन्य चीजों से लैस क्यों नही थे?
विदेश से लौटने के बाद प.नेहरू ने चीन से बढ़ते तनाव को लेकर सरकार के फैसलों के बारे में सबको जानकारी क्यों नहीं दी..?
मुझे शक़ है कि सरकार चीन के इरादों को समझ पायी वरना सीज़ फायर (5 सितंबर के बाद) पर चर्चा के लिए राजी न होती ?
आज के हालात में कोई विपक्षी नेता ऐसे सवाल करे तो ट्रोल आर्मी उसका क्या हश्र करेगी, ये किसी से छिपा नहीं है। जबकि लोकतंत्र का अर्थ ही है जवाबदेही। अफसोस कि बीेजेपी वाले मोदीमोह में वाजपेयी ही नहीं लोकतंत्र के बुनियादी स्वरूप को भी भूल गये जो किसी को भी सवालों से परे नहीं मानता।
और हाँ, प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ब्रिटिश पार्लियामेंट लगातार बैठकें करती रही थी। सरकार को हर सवाल का जवाब ठीक युद्ध के बीच देना पड़ रह था।